उत्तरप्रदेश राज्य के बहराइच जिला से शालिनी पांडेय ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि लोग अभी भी लड़कियों को बोझ क्यों मानते हैं? आज हम ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाने में विफल रहे हैं जिसमें हम विफल रहे हैं। लैंगिक समानता है, कभी-कभी लैंगिक समानता को उपहास के साथ देखा जाता है, लैंगिक असमानता भारत सहित दुनिया के कई देशों में देखी जाती है, जिसे विकसित माना जाता है। जहाँ तक भारत का संबंध है, दहेज प्रथा, विवाह, दुल्हन की विदाई, पितृसत्तात्मक समाज, अंतिम संस्कार के लिए बेटे की अनिवार्यता और कबीले को चलाने के लिए बेटे का मोह इसके मूल कारण हैं।

उत्तरप्रदेश राज्य के बहराइच जिला से शालिनी पांडेय ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि आज भी लड़कों की तुलना में लड़कियों को अधिक कैद में रखा जाता है। यह किसी गांव या शहर की बात नहीं है। भारत में, स्वतंत्रता के साथ, कई महिलाओं को सरकार और संविधान द्वारा समान अधिकार दिए गए थे, लेकिन घरों और परिवारों में, महिलाओं को अभी भी विभिन्न कारणों से समान अधिकार नहीं दिए गए हैं। ये परिवार में शामिल महिलाओं और पुरुषों की मानसिकता और सोच के आधार पर छूट और प्रतिबंधों के संबंध में निर्णय हैं। इसलिए खुद एक महिला होने के बावजूद महिलाओं को दबाया जाएगा, छोटी-छोटी गलतियां की जाएंगी, अपनी बेटी और बहू को अपमानित किया जाएगा, अगर किसी लड़की को लगता है कि उसे दबाया जा रहा है, तो उसे पहले अपने परिवार की महिलाओं से बात करनी चाहिए। अगर लड़की साक्षर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र है, तो किसी को सुनने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, कोई भी कमाने वाली या कामकाजी लड़की से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं करता है।

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हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है लेकिन लड़कियों को इसके लिए कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार घर के काम के बोझ के साथ स्कूल के बस्ते का बोझ उठाना पड़ता है तो कभी लोगों की गंदी नज़रों से बच-बचा के स्कूल का सफर तय करना पड़ता है। जैसे-तैसे स्कूल पहुंचने के बाद भी यौन शोषण और भावनात्मक शोषण की अलग चुनौती है जो रोज़ाना उनके धैर्य और हिम्मत की परीक्षा लेती है। ऐसे में लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन के साथ साथ समाज की भी है। तब तक आप हमें बताइए कि * -----लड़कियों के स्कुल छोड़ने के या पढ़ाई पूरी ना कर पाने के आपको और क्या कारण नज़र आते है ? * -----आपके हिसाब से हमें सामाजिक रूप से क्या क्या बदलाव करने की ज़रूरत है , जिससे लड़कियों की शिक्षा अधूरी न रह पाए।

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