नमस्कार दोस्तों , मैं आप सभी का सरस्वती बहराइच मोबाइल वाणी में स्वागत करता हूं । दोस्तों ने कहानी सुनाई है कि कैसे लीलावती नाम की एक महिला गाँव में रहती थी । लीलावती के पास एक बकरी थी । जब भी वह इसे चलाने जाती , कोई न कोई आता । एक दिन लीलावती ने अपनी बकरी को गाँव में ही पंडित दीनदयाल जी के खेत में छोड़ दिया , जब पंडित जी को पता चला कि लीलावती की बकरी उनके खेत में गई है , तो उन्हें बहुत गुस्सा आया । लीलावती को डांटने पर लीलावती ने कहा कि मेरे पास बकरी बांधने के लिए रस्सी नहीं है , मैं क्या करूं । पंडित जी ने लीलावती को बकरी बांधने के लिए रस्सी दी , लेकिन दो - तीन दिन बाद फिर वही हुआ । इस बार पंडित जी ने पंचायत बुलाई । बैत में उन्होंने बताया कि लीलावती की बकरी बार - बार मेरी फसल खा कर मुझे नुकसान पहुँचा रही है । लीलावती के कहने पर मैंने उसे बकरी बांधने के लिए रस्सी भी दी थी , फिर भी वह अपनी बकरी नहीं बांधती । लीलावती ने तुरंत कहा कि अगले ही दिन सड़ी हुई रस्सी तोड़ दी गई । मेरी बकरी को चौबीस घंटे तक बंद नहीं किया जा सकता है । पंडित जी को अपने खेत की देखभाल खुद करनी चाहिए । लीलावती बकरी को बांधने के लिए तैयार हो गई । पंचायत ने यह भी फैसला सुनाया कि आपको अपने खेत की देखभाल खुद करनी चाहिए । पंडित जी निराश होकर घर लौट आए । फसलों में कीटों और कीड़ों का प्रकोप बढ़ गया था , जिससे उनकी मृत्यु हो गई । फसलें खराब हो रही थीं । पंडित जी ने अपनी फसल पर अत्यधिक कीटनाशकों का छिड़काव किया । जब लीलावती की बकरी ने इस बार पंडित जी की फसल खाई , तो वह बीमार पड़ गई । लीलावती ने इसे ठीक करने के लिए डॉक्टरों को एक महीने तक दिखाया । लीलावती ने बकरी के इलाज में हजारों रुपये खर्च किए , लेकिन बकरी ठीक नहीं हुई और एक दिन भगवान को प्रिय हो गई । उन्होंने अपनी फसलों की रक्षा की लेकिन लीलावती ने अपनी बकरी की रक्षा नहीं की जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई । पंचायत ने पंडितजी को निर्दोष घोषित कर दिया और लीलावती ने अपना सिर हिलाया ।