साथियों , नमस्कार , मैं , सरस्वती , आप सभी बहराइच मोबाइल वाणी में स्वागत है । साथियों , आज मैं एक नई कविता लेकर आया हूँ । ताकी बहुत समझदार था और हमेशा शांतनु को सच्चाई और ईमानदारी का सबक सिखाता था । नतीजतन , जब शांतनु थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने छोटे - छोटे काम करने शुरू कर दिए । एक दिन वह मेले में गया और रास्ते में देखा कि वहाँ एक बड़ा पैकेट है , ओह ऐसा क्या लग रहा है कि कोई गिर गया है , चलो पास में एक घोषणा करते हैं । इस तरह सोचकर , वह वहाँ जाता है जहाँ माइक से घोषणाएँ हो रही थीं और कहता है । सुनो , किसी का पैकेट गिर गया है , क्या तुम एक घोषणा कर सकते हो , अरे , हाँ , तुम यह पैकेट क्यों नहीं लाते , मुझे दो , और मैं आपको दूँगा । जैसे ही तनु पैकेट देता है और आगे बढ़ता है , वह एक बूढ़े दादा को रोते हुए देखता है , वह पूछता है कि दादा का क्या हुआ , आप क्यों रो रहे हैं , बूढ़े दादा कहते हैं कि आज मेरी पोती की शादी हो रही है और मैं अपनी लापता भैंस पर हूँ । मैं यह पैसा लेने जा रहा था लेकिन अचानक मुझे चक्कर आया और वह पोटली कहीं गिर गई । संताना ने सोचा कि वह उसी पोटली के बारे में बात नहीं कर रहा था जो मुझे मेले में मिली थी । उन्होंने कहा , ' एक मिनट रुकिए । आया दौरे की घोषणा करने वाले व्यक्ति के पास जाती है और कहती है कि अंकल , मुझे वह पोटली दें , जो पोटली है , मेरे पास कोई पोटली नहीं है । शांतनु को यह समझ में नहीं आता कि यह बेईमानी है । उन्होंने एक समाधान के बारे में सोचा और कहा कि सुनो , मुझे एक ही तरह की एक और पोटली मिली है , इसलिए मैं देखना चाहता था कि क्या दोनों एक ही व्यक्ति की हैं । तो जैसे ही उसने वह गुड़िया दिखाई , शांतनु ने वह गुड़िया उस बूढ़े दादा को दे दी । उस बूढ़े दादा ने शांतनु को उनकी समझ और ईमानदारी के लिए बहुत धन्यवाद और आशीर्वाद दिया । बड़ा व्यापारी यह सब देख रहा था , उसने तुरंत शांतनु को अपने व्यवसाय में शामिल कर लिया और यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची ईमानदारी से बड़ा कोई फल नहीं है ।