इस कार्यक्रम में हम जानेंगे कि कैसे गाँव के लोग मिलकर अपने समुदाय को मजबूत बना रहे हैं। जल संरक्षण, ऊर्जा बचत और आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सामूहिक प्रयासों की ताकत को समझेंगे। साथ ही, यह भी जानेंगे कि कैसे छोटे-छोटे कदम मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं और गाँव के विकास में योगदान दे सकते हैं। क्या आपके समुदाय में ऐसे समूह हैं जो जल संरक्षण, आपदा प्रबन्धन या संसाधन प्रबन्धन पर काम करते हैं? अगर हाँ, तो हमें बताएं कि वे कैसे काम करते हैं? और अगर नहीं, तो इस कार्यक्रम को सुनने के बाद क्या आप अपने समुदाय में ऐसे सामूहिक प्रयास शुरू करने के लिए तैयार हैं?

साथियों गर्मी का मौसम आने वाला है और इसके साथ आएगी पानी की समस्या। आज की कड़ी में हम आपको बता रहे है कि बरसात के पानी को कैसे संरक्षित कर भूजल को बढ़ाने में हम अपना योगदान दे सकते है। आप हमें बताइए गर्मियों में आप पानी की कौन से दिक्कतों से जूझते हैं... एवं आपके क्षेत्र में भूजल कि क्या स्थिति है....

2016 में 14% छात्र औपचारिक शिक्षा से बाहर थे जो कि देश में 2023 में भयानक सुधार होने के बाद भी अब मात्र 13.2 फीसद बाहर हैं ... 2016 में 23.4 फीसद अपनी भाषा में कक्षा 2 का पाठ नहीं पढ़ पाते थे आज 2023 में अति भयानक सुधार के साथ ये आंकड़ा 26.4 प्रतिशत है ... देश के आज भी 50 फीसद छात्र गणित से जूझ रहे हैं ... मात्र 8 साल में गणित में हालात बद से बदतर हो गए ... 42.7% अंग्रेजी में वाक्य नहीं पढ़ सकते हैं... अगर आप सरकार से जवाब माँगिए , तो वे कहती है कि वो लगातार बैठकें कर रहे हैं लेकिन असर की रिपोर्ट बताती है कि ये बैठकें कितनी बेअसर हैं... तो विश्व गुरु बनने तक हमें बताइये कि *-----आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? *-----वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? *-----और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ?

लड़कियों के सपने सच में पुरे हो , इसके लिए हमें बहुत सारे समाजिक बदलाव करने की ज़रूरत है। और सबसे ज्यादा जो बदलाव की ज़रूरत है, वो है खुद की सोच को बदलने की। शिक्षा महिलाओं की स्थिति में बड़ा परिवर्तन ला सकती है लेकिन शिक्षा को लैंगिक रूप से संवेदनशील होने की जरूरत है। गरीब और वंचित समूह के बच्चों को जीवन में शिक्षा में पहले ही सीमित अवसर मिलते हैं उनमें से लड़कियों के लिए और भी कम अवसर मिलते हैं, समान अवसर तो दूर की बात है। सरकारी स्तर पर जितने ही प्रयास किये जा रहे हों, यदि हम समाज के लोग इसके लिए मुखर नहीं होंगे , तब तक ऐसी भयावह रिपोर्टों के आने का सिलसिला जारी रहेगा और सही शौचालय न होने के कारण छात्राओं को मजबूरी में स्कूल छोड़ने का दर्द सताता रहेगा। तब तक आप हमें बताएं कि *----- आपके गांव में सरकारी स्कूल में शौचालय है, और क्या उसकी स्थिति कैसी है? *----- क्या आपको भी लगता है कि सरकारी स्कूल में शौचालय नहीं होने से लड़कियों की शिक्षा से बाहर होने का बड़ा कारण है *----- शौचालय होने और ना होने से लड़कियों की शिक्षा किस प्रकार प्रभावित हो सकती है?

साथियों, आये दिन हमें ऐसे खबरे सुनने को और देखने को मिलती कि फंलाने जगह सरकारी स्कुल की छत गिर गई या स्कुल की दिवार ढह गई। यहाँ तक कि आजकल स्कुल के क्षेत्र में लोग पशु भी बाँधने लगते है, अभी ऐसी ही खबर दैनिक भास्कर के रांची सस्करण में छपी। रांची के हरमू इलाके में जहाँ कुछ लोग वर्षो सेअपने दुधारू पशु को स्कुल से सटे दीवाल में बाँध रहे है और प्रशासन इस पर मौन है। ये हाल झारखण्ड की राजधानी रांची के एक सरकारी स्कुल का है , बाकि गाँव का हाल तो छोड़ ही दीजिये। क्या आपको पता है कि शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत स्कुल में पीने का साफ़ पानी और शौचालय की बुनियादी सुविधा के अनिवार्य रूप से मुहैया करवाने की बात कही गयी है। और ये बेसिक सी चीज़े उपलब्ध करवाना सभी सरकारों का काम है। लेकिन जब 25 से 35 % स्कूलों का हाल ये हो तब किसे दोषी माना जाए ? सरकार को नेताओ को या खुद को कि हम नहीं पूछते??? बाक़ि हाल आप जान ही रहे है। तब तक, आप हमें बताइए कि ******आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में शौचालय और पानी की व्यवस्था कैसी है ? ****** वहां के स्कुल कितने शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है ? ****** साथ ही शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है , ताकि हमारे देश का भविष्य आगे बढे।

Transcript Unavailable.

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दोस्तों, सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा संपन्न प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करते हैं भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी? देश के छोटे से छोटे विकास खंड में सरकारी स्कूलों में करोड़ों खर्चे जाते हैं फिर भी उनका स्तर नहीं सुधरता। -------------तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? -------------वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? -------------और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ? दोस्तों इस मुद्दे पर अपनी बात को जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर या मोबाइल वाणी एप्प में ऐड का बटन दबाकर।

जब जुनून सवार होता है तो आदमी आसमान से भी तारे तोड़ ले आते हैं। ऐसा ही एक वाक्या बलवा गांव में हुई जंहा के ग्रामीणों ने श्रमदान कर टुटे तटबंध की मरम्मत की और हजारों एकड़ खेत में लगे धान की फसल को बर्बाद होने से बचा लिया।

बिहार के पटना में करबिगहिया इलाके से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसने राज्य की शिक्षा व्यवस्था के मुंह पर कालिख पोत दी है। दरअसल यहां एक साथ एक ही बिल्डिंग में 5 स्कूल चलाए जाते हैं। स्कूल के अंदर और बाहर भयंकर गंदगी, कैंपस के अंदर जलजमाव और एक बिल्डिंग जर्जर हालत में है। लिहाजा इसके बाद अब सिर्फ एक दो मंजिला भवन ही बचा है जहां से एक साथ 5 स्कूल चलते हैं। पहले स्कूल दो शिफ्ट में चलता था लेकिन अब एक ही शिफ्ट कर दिया गया हैं। जिससे परेशानी और बढ़ गयी है। 5 टीचर एक ही बोर्ड पर पढ़ाते हैं 5 विषय यहां कुल 400 बच्चे पढ़ते हैं लेकिन कम कमरे और ज्यादा स्कूल होने की वजह से एक ही क्लासरूम में अलग-अलग स्कूल के कुछ क्लास के बच्चे एक साथ बैठते हैं। लिहाजा मजबूरी में एक कमरे में 5 स्कूलों के 5 शिक्षक एक साथ पढ़ाते हैं। मजबूर शिक्षक एक ब्लैकबोर्ड को ही चॉक से 5 भाग मे बांटकर 5 टीचर 5 अलग-अलग विषय पढ़ाते हैं। इसको लेकर शिक्षकों ने कहा कि वे अपने-अपने छात्रों को पहचानते हैं, बच्चे भी अपने विषय के टीचर की तरफ देखकर सुनते हैं। लेकिन इस तरह पढ़ाने से काफी दिक्क़ते होती हैं। वहीं इसी भवन की एक क्लास में दो टीचर एक साथ पढ़ाते मिले। एक टीचर पांचवीं को तो दूसरे टीचर सांतवी क्लास के बच्चों को पढ़ा रहे थे। शौचालय में रखा जाता है खाने-पीने का सामान। इतना ही नहीं, यहां क्लासरूम में ही पीछे के हिस्से में दो स्कूलों का दो चूल्हे पर खाना बनता है। जगह की कमी होने के कारण शौचालय को खाने पीने की चीजों का स्टोर रूम बना दिया। खाने पीने की चीजें जैसे चावल की बोरियां शौचालय में रखी जाती हैं। दो स्कूल का स्टोर रूम दो शौचालय को बनाया गया है। इस शौचालय का इस्तेमाल अब इसी काम के लिए किया जाता है। एक NGO की तरफ से नया शौचालय बनाया जा रहा है, लेकिन सोख्ता पहले से जाम है, ऐसे में नया शौचालय भी किसी काम का नहीं होगा। छात्रों के लिए पीने का पानी भी नहीं स्कूल में पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है। बगल में एक मंदिर से पाइप के जरिये पानी स्कूल की छत पर बने टंकी तक लाने की व्यवस्था खुद शिक्षकों ने की थी। लेकिन मंदिर का मोटर जल गया जिसके बाद पानी नहीं आ रहा है। इस स्कूल में 11 महिला रसोईया हैं, इनके लिए खाना बनाने के लिए पानी दूर से लाना सबसे बड़ी समस्या है। इतना ही नहीं इनका 4 महीने से (1650 रुपए मासिक) वेतन भी बकाया है।