दीपावली दियों से या धमाकों से? अबकि दीवाली पर हमें यह सोचना ही होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे शहरों की हवा हमारे इस उत्साह को शायद और नहीं झेल पा रही है। हवा इतनी खराब है कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली इस मामले में कुछ ज्यादा बदनाम है। दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित जगहों में शामिल दिल्ली में प्रदूषण इतना अधिक है कि लोगों का रहना भी यहां दूभर हो रहा है।

राजकीय पक्षांच्या निधीचा स्रोत जाणून घेण्याचा अधिकार नागरिकांना नाही. सरकारच्या वतीने त्यांचे वकील म्हणजेच सॉलिसिटर जनरल आर रमाणी यांनी सर्वोच्च न्यायालयात ही माहिती दिली आहे. प्रश्न असा पडतो की जेव्हा सर्व काही ठीक आहे, तेव्हा देणग्यांशी संबंधित माहिती लोकांसोबत शेअर करायला काय हरकत आहे? एखाद्या राजकीय हितचिंतक आणि भ्रष्टाचारावर हल्ला करणाऱ्या राजकीय पक्षाचे सरकार आपल्या पक्षाला देणगी देणारे लोक कोण आहेत हे जनतेला सांगू शकत नाही, असे म्हटले तर? आज आमच्या सोबत विदर्भ राज्य आंदोलन समिति चे महासचिव नरेश निमजे सर सोबत एक अतिशय विशेष विषयावर आपले विचार मोबाइलवाणी वर सोपोले।

साथियों, आये दिन हमें ऐसे खबरे सुनने को और देखने को मिलती कि फंलाने जगह सरकारी स्कुल की छत गिर गई या स्कुल की दिवार ढह गई। यहाँ तक कि आजकल स्कुल के क्षेत्र में लोग पशु भी बाँधने लगते है, अभी ऐसी ही खबर दैनिक भास्कर के रांची सस्करण में छपी। रांची के हरमू इलाके में जहाँ कुछ लोग वर्षो सेअपने दुधारू पशु को स्कुल से सटे दीवाल में बाँध रहे है और प्रशासन इस पर मौन है। ये हाल झारखण्ड की राजधानी रांची के एक सरकारी स्कुल का है , बाकि गाँव का हाल तो छोड़ ही दीजिये। क्या आपको पता है कि शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत स्कुल में पीने का साफ़ पानी और शौचालय की बुनियादी सुविधा के अनिवार्य रूप से मुहैया करवाने की बात कही गयी है। और ये बेसिक सी चीज़े उपलब्ध करवाना सभी सरकारों का काम है। लेकिन जब 25 से 35 % स्कूलों का हाल ये हो तब किसे दोषी माना जाए ? सरकार को नेताओ को या खुद को कि हम नहीं पूछते??? बाक़ि हाल आप जान ही रहे है। तब तक, आप हमें बताइए कि ******आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में शौचालय और पानी की व्यवस्था कैसी है ? ****** वहां के स्कुल कितने शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है ? ****** साथ ही शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है , ताकि हमारे देश का भविष्य आगे बढे।

‘नागरिकों को राजनीतिक दलों के चंदे का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है’ सरकार की तरफ से पेश हुए उसके वकील यानी सॉलीसिटर जनरल आर. रमन्नी ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में कही है’। सवाल उठता है कि जब सबकुछ ठीक है तो फिर चंदे से जुड़ी जानकारी जनता से साझा करने में दिकक्त क्या है? राजनीतिक शुचिता और भ्रष्टाचार पर वार करने वाले राजनीतिक दल की सरकार अगर कहे कि वह जनता को नहीं बता सकती की उसकी पार्टी को चंदा देने वाले लोग कौन हैं, तो फिर इसको क्या समझा जाए।

भारतीय पुलिस व्यवस्था अंग्रेजों की देन है लेकिन उसके बाद बनी व्यवस्था और संस्थाएं, यहां की जरूरत के हिसाब से बनाई गईं। इन सभी का काम था कि अपराधों को रोकना और अपराधियों को पकड़ कानून के समक्ष पेश करना। इनको बनाने के पीछे के उद्देश्य अच्छा था, लेकिन हर बीतते दिन के साथ उजागर होते इनके कारनामे, अफसोस करने पर मजबूर करते हैं कि इनको बनाया ही क्यों गया, टेक्स देने वालों के पैसे की इस तरह बर्बादी क्यों? इन्हें काम अपने तो मालिकों के इशारे पर करना है, बजाए इसके जिसके लिए उन्हें बनाया गया है।

चुनाव का माहौल देखरकर जनता भी उत्साहित है कि वह एक बार फिर उसके अपने हितों के लिए काम करने वाली सरकार का चुनाव करेगी। जनता उत्साहित भले ही हो कि उसके लिए काम करने वाली सरकार का चुनाव हो रहा है, लेकिन इसमें उसकी भागीदारी नहीं के बराबर है। अगर भागीदारी होती तो राजनीतिक दल उनकी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारते, लेकिन यहां तो हालात ऐसे हैं कि जो भी चुनाव जिता सके उसे उम्मीदवार बना दिया जा रहा है।

'जैक औफ ऑल मास्टर ऑफ नन 'हर नए बनने वाले पत्रकार को सबसे पहले यह एक वाक्य सिखाया जाता है पत्रकार को आम मसले का जानकार होना चाहिए विदवान नहीं। तब जाकर ही वो आम नागरिक से जुड़े समस्याओं को पहचान पायेगा और उनके लिए काम कर पाएगा। सिद्धांतों में ये बात अच्छी है लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। इतनी की भारत की पत्रकारिता जगत के बड़े पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान जो जन्मग के बड़े हिस्से को प्रभावित करते हैं या कर सकते हैं वे भी इस लाइन को भूल गए हैं या जान बूझकर इसे याद नहीं रखा।

क्रिकेट के चाहने वालों के अलावा इस मैच की तैयारी करने वालों में वे लोग भी थे जो भारत और पाकिस्तान के नाम पर नफरत फैलाने का कारोबार करने से नहीं चूकते। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने यही किया, लेकिन पहले की तुलना में इस बार उनकी नफरत एक स्तर ऊपर थी। इस बार एक और नई चीज यह थी कि उन्होंने पाकिस्तान को नीचे दिखाने की हर संभव कोशिश जिसके लिए उन्होंने इसराइल फलिस्तीन के बीच पिछले हफ्ते शुरु हुए युद्ध को भी आधार बनाया

वर्षों से स्वतंत्र विदर्भ राज्य के मांग को लेकर कई वर्षों से आंदोलन समिति अपना आंदोलन कर रहे हैं। निरंतर मांगो, लोगों की मांग और जनता के समर्थन के बावजूद अभी भी राज्य,केन्द्र की सरकार इसे अनसुनी कर रही है, और एक प्रश्न चिन्ह बना हुआ है। सत्ता हो या विपक्ष हो दोनों ही इस पर कुछ भी बोलने से बचते हैं आज हमारे साथ विदर्भ राज्य आंदोलन समिति के महासचिव नरेश निमजे सर ने अपनी मांगो और आंदोलन के संबंध में जानकारी दी।

दोस्तों, सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा संपन्न प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करते हैं भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी? देश के छोटे से छोटे विकास खंड में सरकारी स्कूलों में करोड़ों खर्चे जाते हैं फिर भी उनका स्तर नहीं सुधरता। -------------तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? -------------वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? -------------और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ? दोस्तों इस मुद्दे पर अपनी बात को जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर या मोबाइल वाणी एप्प में ऐड का बटन दबाकर।