केले की खेती ने झरही नदी के तट पर स्थित जंगल नाहर छपरा गांव निवासी कृषक दीपनारायण यादव को अलग ही पहचान दिलाई है। केले की खेती से न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त हुए हैं। फिलहाल दीपनारायण यादव करीब 5 एकड़ जमीन पर केले की खेती किए हैं। प्रत्येक मंडा खेत में 20 से 25 हजार रुपये तक की आमदनी होता है। केला हर सीजन में अच्छे मूल्य पर बिकता है।        केले की खेती की प्रेरणा उन्हें जिले के पनियहवा क्षेत्र से मिली। अपने गांव से मदनपुर जाते समय रास्ते में धरनी पट्टी में केले की खेती देखकर बहुत ही अच्छा लगा। वहां पर किए गए केले की खेती की पूरी जानकारी प्राप्त की। तत्पश्चात केले का पौधा मंगाकर उन्होंने खेती की शुरुआत की।दीपनारायण यादव द्वारा किए गए केले की खेती का प्रचार-प्रसार अब धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में हो रहा है। अन्य किसान भी केले की खेती की ओर रुझान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कई किसान यहां से पौधा ले जाकर केले की खेती की शुरुआत कर रहे हैं,हालांकि दीपनारायण यादव  को कृषि विभाग द्वारा अभी तक कोई अनुदान भी प्राप्त नहीं हुआ है। वे टिशु कल्चर विधि के जी - 9 वैराइटी के शोधित 6500 केले के पेड़ पांच एकड़ में तैयार किए हैं। केले की फसल जून माह में रोपी जाती है। औसतन एक पौधा पर 50 रुपये खर्च होता है। 300 - 350 रुपये में एक घवद केले की फसल बिकती है। इस प्रकार करीब पांच गुना मुनाफा मिलता है। 6500 पेड़ में साढे सात लाख रुपये खर्च किए हैं। अब फसल से उन्हें करीब 20 लाख रुपये की आमदनी होगी।