नमस्कार साथियों, देश में एक ओर चुनावी तैयारियां चल रही हैं तो वहीं दूसरी ओर हजारों मतदाता अपने—अपने हक के लिए धरना दिए बैठे हैं. किसान इस बात से परेशान ​हैं कि सरकार उन्हें कॉरपोरेट के हाथों की कठपुतली बनाने की तैयारी कर रही है और गरीब इस बात से दुखी हैं कि उनकी थाली में राशन नहीं पहुंच रहा. इन सबके बीच मध्यम वर्ग में जीने वाला आदमी अब बढ़ती हुई महंगाई से त्रस्त हो गया है। विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें। 

देश में तमाम अस्थिरताओं के बाद भी चुनाव की प्रक्रिया जारी है. हाल ही में हमनें बिहार चुनाव देखे हैं. पश्चिम बंगाल में भी चुनाव की तैयारियां हैं पर इन सबमें खास है पंचायत चुनाव. जो बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में होने वाले हैं. पंचायत चुनाव इस बार इसलिए भी खास है क्योंकि कोरोना काल में बहुत से ग्रामीण वापिस अपने गांव पहुंचे हैं. उनके सामने राशन, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और अधिकार के मसले हैं. इसलिए जनता अपने मुखिया का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहती है. आगामी पंचायत चुनाव और मुखिया के लिए ग्रामीण जनता के क्या विचार हैं? आइए जानते हैं...

दोस्तों, कहते हैं कि अगर कर्म पूरी निष्ठा से किया जाए तो उसका फल जरूर मिलता है. हमें लग रहा है कि हमारी और आपकी कोशिशें रंग लाने लगी हैं. बीड़ी मजदूर और सुलगते सवाल अभियान ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. मोबाइलवाणी की पहल के बाद जमुई जिले के भीतर बीड़ी मजदूर कार्ड बनने लगे हैं. इसके साथ ही दूसरा सकारात्मक असर ये हुआ है कि मजदूरों को आवास योजना के तहत राशि का भुगतान होने वाला है... इस सफलता की कहानी आप खुद सुनें बीड़ी मजदूर यूनियन के जिलाध्यक्ष शंभू नाथ पांडेय की जुबानी

देश का आम बजट आ चुका है और हर बार की तरह इस बार भी आम आदमी को इस बजट में अपने लिए कुछ खास नजर नहीं आ रहा है. महंगाई अपनी जगह है, नौकरियां अब भी दूर की कौड़ी नजर आ रही हैं और खेती किसानी करने वालों के हाल क्या हैं...ये तो पूरी दुनिया देख रही है.विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर। 

मोबाइल वाणी पर सातो के साथ शौचालय और स्वच्छता पर चल रहा रहा यह अभियान अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। पिछले ३ महीनो में लोगो ने बढ़ चढ़ कर अपनी बातें रखीं। ज़्यादा जानने के लिए इस ऑडियो क्लिक करें

साथियों क्या आप जानते है कि जल संरक्षण से सम्बंधित काम जैसे तालाब,कुओं व नलकूप की खुदाई ,बरसात के पानी को जमा करना ये सब भी मनरेगा के तहत आता है? इसके अलावा सूखे की रोकथाम अंतर्गत वृक्षारोपण ,सरकारी भवनों,सार्वजनिक स्थानों ,स्कूल आदि में उद्यानों का निर्माण ,खेत के आसपास वृक्षारोपण ,बाढ़ नियंत्रण के तहत मेढ़ बनाना ,बांध निर्माण और आवास निर्माण आदि भी मनरेगा मज़दूरों के काम है। इसलिए आपके गांव या पंचायत में ऐसे कोई भी कार्य हो रहे है तो आप वहाँ अपने लिए रोज़गार की मांग कर सकते है। इसके लिए आपको अपने क्षेत्र में पंचायत कार्यालय जाकर पंजीयन करवाना होगा। मनरेगा के तहत पंचायत स्तर पर हर बुधवार को रोज़गार दिवस का आयोजन करना अनिवार्य है। अगर ऐसा नहीं होता है ,तो मज़दूर साथी अपने सरपंच से रोज़गार दिवस आयोजन करने की मांग करें .

दोस्तों, अगर आपके गांव की पंचायत मनरेगा के तहत रोजगार दिवस आयोजित नहीं कर रही है, तो ये आपका अधिकार है.. आप अपने गांव के मुखिया से गांव में हर बुधवार को रोजगार दिवस आयोजित करने की मांग कर सकते हैं. ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें

किसी के पास खाने को राशन नहीं है , तो किसी के पास काम नहीं होने के कारण पैसे । सरकार ने लॉकडाउन में मनरेगा में काम की मंजूरी देकर मजदूरों की जिंदगी पटरी पर लाने की कोशिश की। राष्ट्रीय औसत मजदूरी में 20 रुपए की बढ़ोत्तरी के साथ-साथ अपने गाँव पहुंचे प्रवासी मजदूरों को नए जॉब कार्ड बनाकर काम देने की कोशिश की , ताकि उनके सामने रोजी-रोटी का संकट दूर हो। मगर अभी भी बड़ी संख्या में मजदूर काम मिलने की आस लगाये बैठे हैं। प्रवासी मजदूर, दूसरे राज्य को छोड़कर अपने गॉँव की ओर इसलिए आ रहे है , ताकि उन्हें कभी खाने की समस्या ना हो, लेकिन लॉकडाउन के इस समय में इनके सामने सबसे बड़ी समस्या उनके रोज़ी-रोटी को लेकर ही आ रही है। बिहार , झारखंड , उत्तरप्रदेश और मध्य प्रदेश के 250 से ज्यादा पंचायत के मुखिया के अनुसार केवल 25-30 % मनरेगा जॉब कार्ड धरी को मनरेगा के तहत काम मिला है और बाकी लोगों के लिए रोज़गार के अवसर तलाशे जा रहे हैं, आखिर क्या है इन गाँवों की ज़मीनी हकीकत , सुनिए हमारी ये खास रिपोर्ट। साथ ही आप भी संविधान के मूल अधिकार ,जीवन के अधिकार को सुरक्षित और सुनिश्चित कीजिए और अपनी राय एवं क्षेत्र की वस्तुस्थिति को ज़रूर बताएं अपने फ़ोन में 3 नम्बर का बटन दबाकर

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