राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से समाज में कितने सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं, इस बात का प्रमाण हमें भारत की पूर्व महिला सांसदों के बारे में जान कर बाखूबी मिल सकता है। आज़ादी के बाद पहली लोकसभा में बिहार से दो महिला सांसद जीत कर पहुंची थीं। इनमें से एक थी भागलपुर दक्षिण से सुषमा सेन। उन्होंने बिहार में पर्दा प्रथा खत्म करने के लिए जोरदार अभियान चलाया। कैंब्रिज से शिक्षित सुषमा ने अपने राजनीतिक जीवन में बाल विवाह, दहेज प्रथा और जातिवाद की समाप्ति के लिए प्रयास किए। उन्होंने पटना में तीन बाल कल्याण केंद्र खुलवाए। सुषमा सेन का जन्म कोलकाता में 25 अप्रैल 1889 को हुआ था। उन्होंने लोरेटो हाउस कोलकाता, दार्जिलिंग और लंदन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। बंगाल विभाजन के बाद वे महात्मा गांधी के प्रभाव में आईं और उनके स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गईं। 1910 में लंदन में मताधिकार के लिए महिलाओं के आंदोलन में भी शिरकत की। वे चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, बिहार कौंसिल ऑफ वूमेन की भी अध्यक्ष रहीं। महिला अधिकार और बच्चों के लिए उन्होंने कई काम किए। तो श्रोताओं, इतिहास गवाह है कि महिलाएं राजनीति में आकर कितने सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं, फिर भी राजनीति की राह महिलाओं के लिए आसान नहीं है। आपके मुताबिक राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए ?