अधिकांश महिलाएं नामांकन की प्रक्रिया को जटिल और समय लेने वाली बताती हैं, और काम की सीमित उपलब्धता भी मनरेगा में महिलाओं के लिए कठिनाई को लगभग छब्बीस प्रतिशत तक बढ़ाती है। गाँव में ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें मनरेगा में काम करना है, लेकिन वे आवेदन करने में असमर्थ हैं क्योंकि वे आवेदन प्रक्रिया को पूरी तरह से नहीं समझती हैं और अगर गाँव की पच्चीस प्रतिशत महिलाएं काम करने में सक्षम नहीं हैं, विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

सरकार का दावा है कि वह 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन दे रही है, और उसको अगले पांच साल तक दिये जाने की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह भी दावा किया कि उनकी सरकार की नीतियों के कारण देश के आम लोगों की औसत आय में करीब 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान वित्त मंत्री यह बताना भूल गईं की इस दौरान आम जरूरत की वस्तुओं की कीमतों में कितनी बढ़ोत्तरी हुई है।

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80 वर्ष के बाद भी दादा जी को मिल रहा है मात्र ₹400 ही परंतु हर महीने नहीं दो-तीन महीने के बाद ही मिलता है जिसके कारण दादा जी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है इनका कहना है कि ₹400 से बढ़कर ₹1500 कर देना चाहिए ताकि हम लोगों को.............

जिस उम्मीद से केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना लाया था वह उद्देश्य मजदूरों से काफी दूर होता जा रहा है और इसमें दूसरे लोगों को काफी लाभ हो रहा है मनरेगा मजदूर केवल नाम का है और काम किसी और के माध्यम से हो रहा है जिसके कारण मजदूरों को काम नहीं मिलता है

जल गोडवा गांव निवासी शंकर ठाकुर 5 महीने से बैंक का चक्कर लगा रहा है फिर भी उन्हें सामाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिल पा रहा है जबकि वह केवाईसी भी कर चुका है

गिद्धौर प्रखंड के अंतर्गत पांडे ठीका के 65 वर्षीय बुजुर्ग को नहीं मिलता है वृद्धा पेंशन अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें और पूरी जानकारी सुने