गांव कापासेड़ा से नंदकिशोर साझा मंच के माध्यम से एक श्रोता से बात कर रहें हैं इनका नाम शकील जी से बात कर रहें हैं जो की कंपनियों में मज़दूर हैं. उनका कहना है की कंपनियों में काम करने के बावजूद इतना पैसा नहीं बच पाटा है जिस से की ये घर बना सकते लेकिन बारिश में घर गिरने के बाद इन्हें बंधन से लोन लेकर घर बना रहें हैं इसमें इन्हें सापताहिक क़िस्त देना पड़ता है और जो भी बचत था वो सारा लोखड़ौन में ख़तम हो गया.

Transcript Unavailable.

उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा से नौमान अब्बासी साझा मंच के माध्यम से जानकारी दे रहें हैं की भारतीय रेलवे ने लॉक डाउन के बाद फिर से सभी रेलों में जेनरल कोच की शुरुआत कर दी है. इन कोच को लॉक डाउन के समय बंद कर दिया गया था और सिर्फ रिज़र्वेशन ही चालु थी लेकिन अब फिर से जेनरल कोच की सुविधा को जारी कर दिया गया है.

उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा से नौमान अब्बासी साझा मंच के माध्यम से एक मज़दूर से बात कर रहें हैं, ये मज़दूर का कहना है की ये रेडी पर करते थे लेकिन लॉक डाउन के बाद से इन्हें कोई मिल रहा है तथा मछली बेचने हैं लेकिन भी कुछ अच्छा नहीं चल रहा है

उत्तर प्रदेश राज्य के जिला इटावा से नौमान एक मनरेगा मजदूर से बात कर रहे हैं। ग्राम कठफोरी से अशोक यादव साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि जब से लॉक डाउन हुआ है तब से उहे मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा है जिस वजह से वो काफी परेशान हैं। बता रहे है कि मनरेगा के तहत उन्होंने 8 साल मजदूरी की है और अब ठेकेदार द्वारा काम के लिए पूछे जाने पर कहा जाता है कि अभी कोई काम ही नहीं है।

Transcript Unavailable.

दिल्ली से रफ़ी जी ने साझा मंच के माध्यम से एक मजदुर से बात की। उन्होंने बताया कि वो कुछ दिन पहले टेक्सटाइल कम्पनी में काम करने आये हैं, उनके भाई कई सालों से टेक्सटाइल कंपनी में काम करते हैं। बता रहे हैं कि पीस रेट में कमी है, जिससे लोग परिवार को गांव में रख रहे हैं पहले माह में 20 से 25 हज़ार तक भी कमाई हो जाती थी लेकिन जब से लॉक डाउन लगा था तब से पहले जैसा काम नहीं रहा है पीस रेट कम हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा जिला के खड़कपुर प्रखंड से अशोक साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि वो सड़क निर्माण मजदूरी का काम करते है। साथ ही कह रहे है कि उन्हें 9 माह से वेतन नहीं मिला है जिस वजह से वो काफी परेशान हैं।

दिल्ली के गुरुग्राम रोड से नन्द किशोर की बातचीत साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से शिव शंकर से हुई। शिव शंकर कहते है कि काम बहुत ही मंदा चल रहा है। महीने में 15 दिन ही काम मिल पाता है। कभी प्रदुषण तो कभी लॉक डाउन आड़ा आ जाती है। 400 रूपए दिहाड़ी रहती है परन्तु काम करवा कर 300 रूपए ही देते है।प्रशासन से मदद लेने पर वो भी सुनवाई नहीं करते है ,गाँव वालों से डरते है।कार्यक्षेत्र में ईंट उठाने का काम दिया जाता है तो कभी ऐसे काम दिया जाता था जिससे वो कर नहीं पाते थे। कार्यक्षेत्र में सुरक्षा के साधन भी नहीं मिलते है ये पहले हॉटीकल्चर का कार्य करते थे माली डिपार्ट का ,जिसमे उनको 15 हज़ार रूपए मिलते थे। लॉक डाउन में काम से निकाल दिया ,जिसके बाद से दिहाड़ी में श्रमिक का काम करते है। इनके साथ इनके परिवार भी बाहर जा कर कार्टन में स्टीकर चिपकने का काम करते है ,जिसके उन्हें 5400 रूपए वेतन मिलते है। इससे गुज़ारा करना बहुत मुश्किल है। दूसरा कारण कि जनसंख्या बढ़ी हुई है ,पहले तो लेबर चौक में दिहाड़ी मिल जाती थी लेकिन अब नहीं मिलती है। बिहार में भी काम करना मुश्किल है क्योंकि वहां रेट कम मिलता है ,इसलिए लोग नगरों की ओर आना पसंद करते है। सरकार से आज तक कोई सहायता नहीं मिली ,बिहार से लेबर कार्ड भी नहीं बना।

दिल्ली आयानगर से रामकरण ,साझा मंच के माध्यम से एक श्रमिक से बात कर रहें हैं। इनका कहना है कि कंपनी इन्हें इनकी सैलरी नहीं दे रही है और अब लॉक डाउन के बाद से इन्हें काम भी नहीं मिल रहा है। इन्हें काफी समस्या हो रही है। इनका कहना है कि ये कंपनी में सोलरप्लांट में इलेक्ट्रीशियन का काम करते थे ,इनका लगभग बाइस हज़ार रुपए सैलरी थी। इनका पैतीस हज़ार कंपनी वाले नहीं दे रहें हैं, इनके पास सबूत भी है कि कंपनी ने इनके पैसे को जप्त किया हुआ है