दिल्ली के श्री राम कॉलोनी से हस्मत अली ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से जुल्फिकार अली से सरकार द्वारा लॉक डाउन बढ़ाये जाने के विषय पर खास बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि लॉक डाउन के कारण काम की कमी हो रही है ,माकन मालिक किराया मांगते हैं ,बिजली बिल में 8 यूनिट की दर से पैसे मांगते हैं ,राशन कार्ड में पिछले चार साल से बच्चों के नाम जोड़ना छह रहे लेकिन वो हो नाह पा रहा है,जॉब कार्ड नहीं बना है। सरकार द्वारा कोई भी लाभ लाभुकों तक नहीं पहुंच रहा है।

तमिलनाडु राज्य के तिरुपुर जिला सिडको से मीना कुमारी ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए सभी लोग कोरोना के प्रकोप से डरे हुए हैं

जिन इमारतों की उंचाइयां देखकर हमारी आंखें चौंधिया जाती हैं, जिन माॅल और पार्कों की खूबसूरती देखकर हम खुद पर फर्क किए बिना नहीं रह पाते, जिन रास्तों पर चलते हुए हमें मखमली एहसास होते हैं असल में महानगरों की ये सारी विलासिता श्रमिकों के खून पसीने से सींची गई है. कितनी अजीब बात है ना, कि हमारे विकास का द्वार खोलने वाले श्रमिकों के विकास के रास्ते हम ही नें बंद कर रखे हैं. यह बात इस समय और भी ज्यादा गंभीर है, क्योंकि देश कोरोना काल में जी रहा है. संकट के इस दौर को एक वर्ग ने छुट्टियां मनाने का बहाना समझा है और एक वर्ग है जो इस दीर्घकालीन अवकाश से घबराया हुआ है. शहर एक बार फिर बंद हो रहे हैं और उन्हें संवारने वाले मजदूर के सामने भूख-प्यास का संकट है. बीते एक साल में श्रमिकों ने कई बार खुद को ढांढस बंधाया है पर सरकार यह भरोसा पैदा नहीं कर सकी कि उनके साथ कुछ गलत नहीं होगा. प्रवास तब भी हुआ था, प्रवास आज भी हो रहा है. भेदभाव तब भी हुआ था, उलाहना आज भी हो रही है. बहरहाल आला नेताओं को श्रमिकों से क्या वास्ता. चुनावी रैलियों से फुर्सत मिले तो वे देश की समस्याओं पर गौर करें. कोरोना काल में जब आम जनता को संबंल की जरूरत है, तब दिग्गज कुर्सी की राजनीति में व्यस्त हैं. सरकार ने अपने चुनावी रुतबे को बरकरार रखने के लिए 44 श्रम कानूनों को खत्म करते हुए नए श्रम कानून को कुछ इस तरह थोपा कि मजदूर उसे सम्हाल ही नहीं पाए. कितनी अजीब बात है कानूनों में बदलाव का ये खेल तब खेला गया है जब देश का मजदूर कोरोना और बेरोजगारी की मार झेल रहा है और भूखे पेट वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं है. साथियों,आप सभी इस समय मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. पर सवाल ये है कि आखिर इस मुश्किल में सरकार का क्या फर्ज था? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को श्रमिकों के लिए संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए? क्या आपको नहीं लगता जितने लोग अस्पतालों में बिना ऑक्सीजन के मर रहे हैं, उतने ही लोग बेरोजगारी में भूखे पेट मौत की कगार पर खड़े हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को इस समय श्रम कानूनों में बदलाव करने की बजाए श्रमिकों के लिए भोजन, अस्पताल और रोजगार की व्यवस्था करना चाहिए थी?

दिल्ली के बहादुरगढ़ हरियाणा से शत्रोहन लाल कश्यप ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि पिछले एक साल से कोरोना के कारण हुए नुक्सान में सबसे ज्यादा परेशानी निम्न वर्ग जिसमे मजदुर आते हैं ,उन्हें हुई है।

दिल्ली के श्री राम कॉलोनी के थाना खजुरी खास से शाहनवाज़ की बातचीत साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से ई रिक्शा चालक से मोहसिन से हुई।मोहसिन कहते है कि अभी ई रिक्शा से 300 से 400 तक की ही कमाई हो पाती है। अभी लॉक डाउन से तो बिलकुल भी कमाई नहीं हो रही है। रोजमर्रे के खर्च निकालने में समस्या हो रही है

दिल्ली एनसीआर के मानेसर के खो गाँव से शंकर पाल ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि कोरोना के बिगड़ती स्थिति को लेकर मज़दूर हतास है। उन्हें भय सता रहा है कि कहीं हाल पिछले वर्ष की तरह न हो जाए ,कहीं उन्हें किराया,भोजन को लेकर समस्या न उत्पन्न हो जाए। कई लोग पलायन कर चुके है और कुछ लोग असमंजस की स्थिति में है कि पलायन करे या नहीं

महाराष्ट्र से विजय सालुंके ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि कंपनियों में मजदूरों की छटनी की जा रही है एवं श्रमिकों का कार्य भी मशीनों से कराया जाता है ,यह भी मजदूरों की छटनी का कारण है

दिल्ली के आईएमटी मानेसर से विकास ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि कंपनियों में मजदूरों की छटनी जारी है

हरियाणा राज्य के झज्जर ज़िला के बहादुरगढ़ से सतरोहन लाल कश्यप ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि दिल्ली में लगे लॉक डाउन से श्रमिकों में भय आ गया है की कही हरियाणा में भी लॉक डाउन न लग जाए। इस कारण श्रमिक पिछले वर्ष की पीड़ा को याद करते हुए ज़ल्द ही अपने घरों की ओर पलायन कर रहे है

आज हम बात करेंगे उन मजदूर श्रमिकों की जो काम की तलाश में बीते कई महीनों से इधर उधर भटक रहे हैं, हम बात उनकी भी करेंगे जिन्हें काम से निकाल दिया गया है। लॉकडाउन के चलते इन कंपनियों ने घाटे का हवाला देते हुए मजबूरों की संख्या कम कर दी, उनकी तनख्वाह घटा दी। कुछ कम्पनियों ने तो अपने मजदूरों की संख्‍या इसलिए भी घटा दी ताकि कम मजदूरों से ज़्यादा उत्पादन करवाया जा सके। कई कंपनियां तो ऐसी भी थीं जिन्‍होंने कर्मचारियों को अनिश्चितकालीन छुट्टी पर भेज दिया यानि उन्हें बिना बताये काम से निकाल दिया. ऐसे हालातों में मजदूरों के मन में अपने भविष्य को लेकर निराशा के कई सवाल उठ रहे हैं? लाखों की संख्या में मजदूर पलायन करके अपने गांव आ गए हैं क्योंकि जिस शहर में वो वर्षों से मजदूरी करके गुजारा कर रहे थे आज उस शहर में सन्नाटा पसरा है। देश में कोरोना की दूसरी लहर ने तबाही मचा दी है, महाराष्ट्र जैसे राज्य में मिनी लॉक डाउन लग चुका है, वहां से पलायन शुरू हो गया है। ऐसी आशंका जताई जा रही है अगर जल्द ही हालात कण्ट्रोल में नहीं हुए तो पूरे देश में फिर से लॉकडाउन लग सकता है।मजदूर इस भय से जी रहे हैं कि अगर दोबारा लॉकडाउन लग गया तो वो फिर खाने को मजबूर हो जाएंगे। पिछले वर्ष लॉक डाउन की स्थिति में सरकार ने दावा किया था कि किसी भी कर्मचारियों के वेतन की कौटती नहीं की जाएगी, कर्मचारियों की छटनी नहीं होगी, नौकरी से नहीं निकाला जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। कंपनियों ने लगातार श्रमिकों की छटनी की और अभी भी कर रही है। श्रमिक वर्ग अभी भी काम की तलाश में भटक रहे हैं। साथियों,तो हम आपसे जानना चाहते हैं कि सरकार ने जो बड़े बड़े वादे किए थे क्या उसका लाभ आपको मिला? सरकार के दावों की धरातल पर क्या स्थिति है? आप मुझे अपने या अपने आसपास की जमीनी सच्चाई बताएं जिससे हम जान सकें कि बड़े- बड़े वायदों की सच्चाई क्या है?आप हमें बताएं कि लॉकडाउन ने, आपके काम को किस प्रकार प्रभावित किया है ? पिछले एक वर्ष में आपके काम में किस प्रकार के बदलाव हुए हैं? क्या आपकी कम्पनी में कोरोना महामारी के कारण श्रमिकों की छटनी हुई है? अगर हाँ, तो आपने इसके लिए क्या प्रयास किये? इन सभी सवालों पर अपने विचार अपने फोन में नंम्बर तीन दबाकर ज़रूर रिकॉर्ड करें।