पिछले कुछ दिनों से हम लगातार सुन रहे हैं कि लॉकडाउन के बाद दुबारा काम शुरू होने पर कम्पनियों में पीस रेट पर काम करना अब श्रमिकों को रास नहीं आ रहा है। पीस रेट में हो रही लगातार कटौती और उसके भुगतान की अनिश्चितता ने पीस रेट से कामगारों का मोहभंग कर दिया है और वे फिर से शिफ़्ट में काम करने को प्राथमिकता दे रहे हैं, क्योंकि यहाँ मेहनताने की तय राशि का भुगतान निश्चित है। पिछली कड़ी में हमने इसी विषय पर अपने श्रमिक साथियों के विचार जानने की कोशिश की थी। उसी चर्चा को इस कड़ी में आगे बढ़ाते हुए यह समझने की कोशिश करते हैं कि लॉकडाउन के बाद हमारे श्रमिक साथियों का पीस रेट पर काम करने का अनुभव कैसा रहा है ?