विनय सिंग्हम बिरनी से झारखण्ड मोबाइल वाणी पे महंगाई पे एक कविता प्रस्तुत की जो इस प्रकार हैं- सुबह आँखे खुलती है तो दर क्जता हैं मन की आज कहीं पेट्रोल डीजल या गैस के दाम तो नहीं बढ़ रहे हैं और मानवता की कीमत तो नहीं घाट रही हैं, सिहर उठता है अंतरमन की कहीं आज कोई भवरी देवी तो नहीं गुम हो जाएगी, और ऑनर किलिंग के नाम पर कोई बेटी बहन को मरने कोई पिता भाई आदि मानव तो नहीं बन जायेगा, डरते हैं हम तुम क्यों की हमें डराया जाता हैं,सिसकता हूँ रोता हूँ की कहीं आंसू आँख से न निकल जाये, और डर के कहीं अन्दर न सुख जाये, सुबह आँखें खुलती हैं तो डर जाता हैं मन.