देश में सत्ता विकेन्द्रीकरण यानि स्थानीय सत्ता,स्थानीय लोगों के हांथों में हो इस उद्देश्य से पुरे देश भर में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई। इसी के मद्देनज़र झारखण्ड में 32 वर्षों के बाद वर्ष 2010 में पंचायत चुनाव कराया गया।राज्य में पंचायत चुनाव कराने के साथ साथ चुने हुए जनप्रतिनिधियों को कूल 29 तरह के अधिकार भी दिए गएँ।इसके आलावा पंचायतों का सर्वांगीण विकास हो सके इस उद्देश्य से पंचायतों को राशि भी उपलब्ध कराइ जाती है लेकिन अगर गौर किया जाये तो राज्य में पंचायतों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।श्रोताओं हम आपसे जानना चाहते हैं कि पंचायतों के विकास के लिए मिलने वाली राशि का इस्तेमाल पंचायतों के विकास कार्य में किया जाता है ? अगर हां,तो क्या कारण हैं कि पंचायतों का विकास सही ढंग से नहीं हो पा रहा है ? साथ ही हर एक पंचायत में पंचायत भवन निर्माण कराने का प्रवधान है और इसके लिए बाकायदा राशि भी आवंटित की जाती है बावजूद इसके कई पंचायतों में आज भी पंचायत भवन का आभाव है ,तो कई पंचायतों में पंचायत भवन का निर्माण कार्य अधर में लटका हुआ है आखिर इसके पीछे मुख्य क्या वजह है ?आखिर क्या कारण हैं कि विकास कार्य के लिए आवंटित राशि का उपयोग पंचायतों के विकास कार्य में नहीं लगाया जाता है ? श्रोताओं,आपको क्या लगता है कि अन्य योजनाओं के तरह इसमें भी राशि का बंदरबाट बड़े पैमाने पर हो रहा है ?अगर हां तो इसके लिए सरकार या उच्च अधिकारियों की ओर से क्या कोई कार्रवाई की जा रही है ? आपके अनुसार पंचायतों को आवंटित कोष का सही इस्तेमाल हो इसके लिए सरकार को किस तरह की पहल करने की जरुरत हैं ? साथ ही इसमें आम जनता की क्या भूमिका होनी चाहिए जिससे पंचायतों का सर्वांगीण विकास हो सके ? इस विषय पर आप अपनी राय एवं अपने पंचायत की स्थिति हमारे साथ जरूर बांटे नंबर 3 दबाकर।