यूं तो पूरी दुनिया ने बीते कुछ सालों में बहुत कुछ देखा है पर कामकाजी मजदूर वर्ग ने जो जिया है वो शायद ही समाज के किसी और तबके ने जिया हो. लॉकडाउन, बेरोजगारी, महंगाई, खाने की मारा मारी, योजनाओं के नाम पर मिला छलावा और कंपनी प्रबंधन की मनमानियां! इन सबके बाद भी काम तो करना ही है... पर कैसे? अधिकारों को तांक पर रखकर कोई भला कैसे काम कर सकता है? जब प्रबंधन नहीं सुनता है तो मजदूरों का एक हो जाना जरूरी है.. फिर ये एकता धरने के रूप में ही सामने क्यों ना आए! दोस्तों, अगर अपने ने भी अपने साथियों के साथ मिलकर अन्याय और शोषण के विरोध में धरना प्रदर्शन या फिर आंदोलन में भाग लिया है तो अपना अनुभव हमारे साथ साझा करें. अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

दिल्ली हरियाणा से शत्रोहन लाल कश्यप ने साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि बहादुरगढ़ हरियाणा के सेक्टर नंबर 16,17 में प्रवासी मजदुर काफी मात्रा में रहते हैं।और अपने जीवकोपार्जन के लिए अन्य राज्यों से आ कर के फैक्ट्रियों में काम करते हैं। लेकिन लॉक डाउन के बाद यहाँ की स्थिति संतोषजनक नहीं है। आज भी कंपनियों में काम न होना ,वेतन में कटौती तथा उन्हें पुरे महीने काम नहीं मिलने से प्रवासी मजदुर परेशान है।

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दिल्ली आईएमटी मानेसर कापसेड़ा से नन्द किशोर प्रसाद साझा मंच मोइली वाणी के माध्यम से भवन निर्माण में काम करने वाले श्रमिक राघवेंद्र से बातचीत की। राघवेंद्र ने बताया कि लॉक डाउन के बाद से स्थिति श्रमिकों के लिए बहुत ही खराब हो गयी है। उन्होंने बताया कि काम के दौरान यदि मजदुर को चोट लग जाती है तो कंपनी किसी प्रकार की कोई मदद मजदूरों को नहीं देती है। श्रमिकों को पीएफ या ईएसआइ की सुविधा भी नहीं दी जाती है। जिसमे केवल 600 सौ रूपए दिहाड़ी और 400 सौ लेबर का भुगतान किया जाता है।

दिल्ली के श्री राम कॉलोनी से हमारे श्रोता ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि जब से लॉक डाउन लगा है तब से काम की स्थिति बिगड़ चुकी है। खाने के लाले पड़ गए है। सही मज़दूरी में काम नहीं मिल पाता है। अगर काम मिल भी गया तो सही से रोजी रोटी नहीं चल पाती है

हरियाणा राज्य के बहादुरगढ़ से ेकश्यप साझा मंच के माध्यम से कह रहें हैं की लॉक डाउन के बाद से काम की काफी कमी आ गई है जिसका ख़ास कारन पीस रेट में बढ़ोतरी है ऐसे में श्रमिकों को महीना के तिस दिन पूरा काम नहीं मिल पाटा है और श्रमिक अपनी जीविका को ठीक ढंग से नहीं पूरा कर पाटा है.

महंगाई का कारण है बेरोजगारी भुखमरी भारत 60 परसेंट लोग बेरोजगार घूम रहे हैं देश के अंदर कितने लोग भुखमरी से मर रहे हैं महंगाई इतनी है कि आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है हर चीज महंगी है 2020 के लोकडाउन के दौरान दिल्ली से पलायन किया मजदूरों ने उन्होंने सोचा कि हम अपने गांव जाकर मजदूरी करेंगे उधर जब वह अपने गांव पहुंचे अनेक जिलों में अनेक प्रदेशों में पहुंचे वहां पर भी उनको काम नहीं मिला कुछ लोगों ने वहां पर ही आत्महत्या कर ली और कुछ लोग वापसी दिल्ली आ गए मगर दिल्ली के हालात इतने खराब हो गए के महानगरों में भी काम नहीं मिला मैं मो शाहनवाज साझा मंच मोबाइल वाणी से

बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िला के बिशनपुर पंचायत के ग्राम ख़ास पट्टी से हमारे श्रोता कह रहें हैं कि लॉक डाउन के समय से मध्याह्न भोजन मिलना बंद है। लॉक डाउन के समय एक बार ही बच्चों को राशन में चावल मिला ,वो भी जिन बच्चों को दस किलो मिलना था उन्हें आठ किलो तथा जिन्हें आठ किलो मिलना था उन्हें पांच किलो दिया गया। इसके अलावा और किसी भी तरह का पैसा नहीं मिला है।

गांव कापासेड़ा से नंदकिशोर साझा मंच के माध्यम से एक श्रोता से बात कर रहें हैं इनका नाम शकील जी से बात कर रहें हैं जो की कंपनियों में मज़दूर हैं. उनका कहना है की कंपनियों में काम करने के बावजूद इतना पैसा नहीं बच पाटा है जिस से की ये घर बना सकते लेकिन बारिश में घर गिरने के बाद इन्हें बंधन से लोन लेकर घर बना रहें हैं इसमें इन्हें सापताहिक क़िस्त देना पड़ता है और जो भी बचत था वो सारा लोखड़ौन में ख़तम हो गया.

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