उत्तर बिहार की जीवनदायिनी नदी बूढ़ी गंडक मूल पहचान खोते जा रही है। अब इसकी पहचान कूड़ा-कचरा ढोने वाली नदी के रूप में होने लगी है। स्थिति यह है कि शहर के हर नाले का बहाव नदी की ओर है। कचरा और औद्योगिक अपशिष्ट निष्पादन का यह आसान माध्यम बनी हुई है। प्रदूषण से इसकी कलकल करती धाराओं का रंग बदरंग हो चुका है। शहर की सभी नालियों का अंत बूढ़ी गंडक नदी में होता है। इन नालों के जरिए शहर भर की गंदगी अनवरत इस इसमे पहुंचती रहती है। चीनी मील, डेयरी समेत कई अन्य उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थो को नदी में प्रवाहित किए जा रहे है। आम लोग भी नदी में कूड़ा-कचरा फेकने से बाज नहीं आते। इस कारण कभी पूर्णत साफ दिखने वाली नदी का पानी अब जैसे काला हो गया है।न सिर्फ नदी की गहराई घट रही बल्कि इसका पानी जहरीला हो रहा है। नदी को प्रदूषित होने से रोकने की कोई व्यवस्था सरजमी पर आज तक नहीं दिखी। प्रदूषण की मार झेल रही नदी की तरफ किसी जनप्रतिनिधि ने भी ध्यान नहीं दिया ।