एक तो हम धरती को बेपानी करते जा रहे हैं। दूसरे जो कुछ पानी धरती के जल स्नोतों और भूगर्भ में शेष बचा है, उन्हें प्रदूषित, शोषित करने में कोई कोई-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हम जो पानी शहरों में पी रहे हैं, वह किसी धीमे जहर से कम नहीं है।दिल्ली का पानी तो सभी दस मानकों पर विफल साबित रहा। जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे।ताली दोनों हाथों के मिलने पर ही बजेगी। तभी संभव होगी एक बूंद जिंदगी की।पिछले कई वर्षों से अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया सूखे की चपेट में है। इससे निजात पाने के लिए स्थानीय निकाय ने टॉयलेट टू टैप नाम से वेस्ट वॉटर मैनेजमेंट की एक परियोजना शुरू की। परियोजना के तहत लोगों के घरों से निकलने वाले दूषित जल का सौ फीसद शोधन होता है। तीन प्रक्रियाओं के जरिए दूषित जल को पीने लायक पानी में बदला जाता है।दक्षिण भारतीय राज्य केरल में एक नदी है कोटम्परूर। एक दशक पहले जो नदी 12 किमी लंबी और सौ मीटर चौड़ी हुआ करती थी वह प्रदूषण और रेत खनन माफिया के चलते अब खत्म होने की कगार पर थी। नदी को सुधारने के लिए ग्राम पंचायत ने पहल की और यह नदी अपने पुराने स्वरूप में लौट आई। टॉयलेट फ्लश करने में पानी की सबसे अधिक बर्बादी होती है।इसे रोकने के लिए जापान ने एक नवोन्मेषी तरीका अपनाया। वहां की एक कंपनी ने शौचालय के फ्लश टैंक के ऊपर ही हाथ धोने के लिए वॉश बेसिन लगवा दिए। इससे हाथ धोने के बाद ये पानी फ्लश टैंक में चला जाता है और टॉयलेट फ्लश करने के लिए इस्तेमाल होता।कंबोडिया की राजधानी नॉम पेन्ह एक ऐसा शहर है जो तकनीक और विशेषज्ञता के मामले में भारत के दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों से काफी पीछे है। वर्ष 1993 तक नॉम पेन्ह की जल आपूर्ति भारत के किसी भी बड़े शहर की तुलना में बदतर थी। कुशल प्रबंधन और मजबूत राजनीतिक सहयोग के दम पर 2003 तक इस शहर ने लोगों को 24 घंटे ऐसे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की। ऐसे में भारत के राजनेताओं और विशेषज्ञों को खुद से एक सवाल पूछना चाहिए कि यदि नॉम पेन्ह जैसा छोटा शहर इस समस्या का समाधान निकाल सकता है तो दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहर 24 घंटे स्वच्छ जल आपूर्ति क्यों नहीं उपलब्ध करा सकते? हमारे देश में ही आखिर इस समस्या का हल क्यों नहीं निकल पा रहा आपके पास इस समस्या से उबरने का कोई सुझाव है तो हमारे साथ जरूर साझा करें अपने फोन में नंबर 3 दबा कर।अगर यह खबर अच्छी लगी तो लाईक का बटन जरूर दबायें।