हमारे देश में हर हिस्से में महिलाओं की स्थिति अलग—अलग है. कहीं पर महिला मतदाता केन्द्र बन रहे हैं और कई जगह मतदान केन्द्रों पर महिलाओं की संख्या न के बराबर है. ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया है झारखंड के धनबाद में. जहां महिला मतदाता पुरूषों के साथ हर क्षेत्र में बराबरी का हक रखती हैं, लेकिन वोट करने के मामले में पीछे हैं. साल 2014 के चुनावों में धनबाद, गिरिडीह, दुमका, गोड्डा और राजमहल में औसत 53.64 फीसद महिलाओं ने ही वोट किया था. झारखंड के 14 लोकसभा सीटों में से धनबाद और गिरिडीह पर 12 मई और राजमहल, दुमका एवं गोड्डा में 19 मई को मतदान होने वाला है. जिसमें महिलाओं की भागीदारी अहम मानी जा रही है. लेकिन दूसरा तथ्य है कि साल 2019 में 50.03 फीसदी महिलाओं की ही चुनाव में भागीदारी नजर आने का अनुमान है. विशेषज्ञों का कहना है कि महिला मतदाताओं का प्रतिशत यदि 70 फीसदी तक पहुंचा तो यह निर्णय में अहम भूमिका निभा सकता है. आपके क्षेत्र में महिला वोटरों की स्थिति कैसी है? क्या महिलाएं मतदान करने जाती हैं, या उनकी भागीदारी ना के बराबर है? इस विषय पर हमारे साथ साझा करें अपना अनुभव.
शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जहां महिलाएं पूरी जिम्मेदारी के साथ अपना काम करती नजर न आती हों? भले ही निजी सर्वेक्षण के अनुसार नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या में कमी आ रही हो, लेकिन उनके प्रति विश्वास में कोई कमी नहीं है. ऐसा ही एक उदाहण त्रिपुरा में पेश हो रहा है. जहां आगामी लोकसभा चुनाव में 60 मतदान केन्द्रों की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर होगी. गौरतलब है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने सीईओ को निर्देश दिया था कि प्रत्येक विधाभ्नसभा क्षेत्र में कम से कम एक महिला मतदान केंद्र स्थापित किया जाए. जिसके बाद केवल त्रिपुरा में ही 60 महिला मतदाता केन्द्र बनाएं गए हैं. यहां मतदान करने वालों में महिलाओं के साथ पुरूष भी शामिल होंगे लेकिन मतदान कराने से लेकर केन्द्र में सुरक्षा की जिम्मेदारी तक सब कुछ महिलाओं के हाथ में होगा. क्या आपके क्षेत्र में भी महिला मतदाता केन्द्रों की स्थापना की गई है? आपके क्षेत्र में महिलाओं के मतदान करने का प्रतिशत कैसा है? हमारे साथ साझा करें अपनी बात.
केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर के कृषि क्षेत्र में 40 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं और घर के संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है. एक और अच्छा पहलू यह है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा जलवायु परिवर्तन को लेकर ज्यादा सजग हैं. लेकिन इसका एक और छिपा हुआ हिस्सा है. दरअसल अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का सबसे अधिक असर कृषि और पानी पर पड़ता है, जिससे महिलाएं अधिक प्रभावित हो रही हैं. साल 2015 में वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें बताया गया था कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में जलवायु परिवर्तन को लेकर अधिक सजग हैं और पुरुषों की तुलना में आसानी से अपने जीवनचर्या को इसके अनुकूल बना सकती हैं. इसके बाद एक दूसरे अध्ययन में दुनिया भर के तापमान वृद्धि के आर्थिक नुकसान के आकलनों से संबंधित शोध पत्रों के विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर सामने आया कि महिला वैज्ञानिक इन आकलनों को अधिक वास्तविक तरीके से पेश करती हैं और अपने आकलन में अनेक ऐसे नुकसान को भी शामिल करती हैं जिन्हें पुरुष वैज्ञानिक नजरअंदाज कर देते हैं या फिर इन नुकसानों को समझ नहीं पाते. अपनी नजर में महिला और पुरूष में से कौन हैं जो पर्यावरण के प्रति ज्यादा सजग हैं? क्या आपको नहीं लगता कि पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी समान रूप से उठानी चाहिए? आप जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण सरंक्षण के लिए अपनी तरफ से क्या योगदान दे रहे हैं? हमारे साथ साझा करें अपने विचार.
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