श्रद्धा और विश्वास के लिए किसी को कहने की जरूरत नहीं होती है यस तो स्वता अपने अंतरात्मा में उपजती है। समस्तीपुर मोबाइल बानी शिवाजीनगर प्रखंड के जनता उच्च विद्यालय पटेल नगर चितौड़ा बेला के प्रांगण मे चल रहे। श्रीमद भागवत सप्ताह के पांचवें दिवस को आचार्य श्री वेदानंद शास्त्री ने भगवान् के अवतारों के प्रयोजन से कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सच्चे मन से क़ी गयी सेवा ही फलीभूत होती है । श्रद्धा और विश्वास के लिए किसी को कहने की जरुरत नहीं होती है। यह तो स्वतः अपने अंतरात्मा में उपजती है। उन्होंने भगवान के जन्मोत्सव को नन्द बाबा के घर आनंद की बात बताये ।सचमुच जब किसी गृहस्थ के घर पुत्र का प्रादुर्भाव होता है तो माता पिता सहित सभी परिजन पुरजन आनन्दित होते है। उन्हें लगता है क़ि मेरे घर पुत्र का आगमन हमारी सभी बाधाओ और दुर्दिन को मिटा देगा। पुत्र से ज्यादा सत्पात्र होने की बात है। ध्रुव एवं प्रह्लाद की कथा बताते हुए कहे की राजपुत्र होने के वावजूद उनलोगो का मन प्रभु का स्मरण एवं उनके दर्शन में लगा रहा। प्रत्येक मानव को अपने पुत्र को सत्पात्र जैसा संस्कार देना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण अपनी चार दिन की आयु से ही दुष्टो का संहार करने लगे। जब कंस का अत्याचार बहुत ही बढ़ गया तो भगवन को आना ही पड़ा। भगवान के अवतार से दुष्टो के साथ भक्तो का भी कल्याण हो जाता है। गोपियों का मन प्रभु श्रीकृष्ण के चरण में समर्पित था। जिनके मन में प्रभु के लिए जैसी भावना थी उनके लिए भगवान ने वैसा ही किये। जिन गोपियों के मन में उनको अपने पति के रूप में प्राप्त करने की थी। भगवान ने उनका चीरहरण करके उनके अन्तर के भेद को मिटाते हुए उनके साथ रासलीला भी किये। उन्होंने इंद्र एवं ब्रह्माजी के अहंकार को मिटाये। गोवर्धन पर्वत को अपनी बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली पर लगातार सात दिनों तक उठाये रखकर गोकुल के जान धन की