उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से फकरूद्दीन ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि पक्ष विपक्ष यह एक ऐसी श्रृंखला है जिसमें सभी लोगों को दोनों पक्षों को रखने का समान अवसर मिलता है। इसका अपना एक घोषणापत्र जारी किया गया था जिसे राजनीतिक दलों को प्रस्तुत किया गया था कि अगर आप हमसे वोट लेना चाहते हैं तो आपको हमारी इन मांगों को पूरा करना होगा। यह एक देश में एक नई क्रांति है। एक नई सोच की शुरुआत हुई है। जिससे की हम नागरिक भी अपने अधिकारों, अपनी जरूरतों को नेताओं के सामने, दलों के सामने रखेंगे, जो भी पक्ष हमारी मांगों को पूरा करने में अधिक सक्षम हो या हमारी मांगों को पूरा करने के लिए सहमत हो। हम इसके लिए मतदान करेंगे, यह एक बहुत अच्छी पहल है जो पूरे देश में क्रांति ला सकती है, इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि लोग अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होंगे, लोग अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होंगे, लोग सोचेंगे कि हम देश में क्रांति ला सकते हैं। हमारे इस क्षेत्र का विकास इसलिए किया जा सकता है क्योंकि हर जगह होने वाली समस्याएं अलग-अलग हो सकती हैं। कहीं सड़कों का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण है, कहीं पानी है, कहीं बिजली है, इसलिए हर जगह की जरूरतें अलग-अलग हैं, इसलिए हर जगह की जरूरतें भी अलग-अलग हैं। अगर लोगों को छोटे समूहों में बांटा जाए, तो वे अपनी मांगें मांगेंगे और लोगों के नेताओं को अपनी मांगें सौंपेंगे, फिर छोटी-छोटी मांगें पूरी होने पर उन्हें इस तरह से छोटे-छोटे लिंक मिलेंगे।

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से फकरूदीन ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि जब चुनाव आते हैं तो राजनेताओं की हकीकत सामने आ जाती है। हम एक समूह बनाये और अपनी समस्याओं को नेताओं के सामने रखें और उनसे मांग करें

उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से फकरुद्दीन ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि चुनाव लड़ने से पहले लोगों के पास जाने से पहले घोषणापत्र जारी करना चाहिए। वह जानती हैं कि लोगों के लिए चुनाव जीतने के बाद क्या करना है या क्या करना है या वह एक घोषणापत्र के माध्यम से लोगों को बताती हैं लेकिन महाराष्ट्र के एक गाँव में। ऐसे समूह हैं जिन्होंने अपना घोषणापत्र जारी किया है यानी लोगों द्वारा घोषणापत्र राजनीतिक दलों को जारी किया गया है कि आप यह काम तभी करेंगे।

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से फकरुद्दीन खान मोबाइल वाणी सुल्तानपुर के माध्यम से बता रहे है की राजनीतिक दल अपना घोषणापत्र जारी करते हैं जिसमें वे चुनाव जीतने के बाद इन सभी चीजों को करने का वादा करते हैं। इसी तरह, आजकल एक प्रवृत्ति है कि लोग, समूह, इलाके, गाँव भी अपनी कुछ मांगें करते हैं और अपना घोषणापत्र जारी करते हैं। जिसमें वे अपनी सभी समस्याओं को लिखते हैं और उन्हें नेताओं के सामने पेश करते हैं ताकि उनकी मांगों को पूरा किया जा सके।

भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

दोस्तों, प्रधानमंत्री के पद पर बैठे , किसी भी व्यक्ति से कम से कम इतनी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि उस पद पर बैठने वाला व्यक्ति पद की गरिमा को बनाए रखेगा। लेकिन कल के भाषण में प्रधानमंत्री ने उसका भी ख्याल नहीं रखा, सबसे बड़ी बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ खुले मंच से झूठ बोला। लोकतंत्र में आलोचना सर्वोपरि है वो फिर चाहे काम की हो या व्यक्ति की, सवाल उठता है कि आलोचना करने के लिए झूठ बोलना आवश्यक है क्या? दोस्तों आप प्रधानमंत्री के बयान पर क्या सोचते हैं, क्या आप इस तरह के बयानों से सहमत हैं या असहमत, क्या आपको भी लगता है कि चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाना अनिवार्य है, या फिर आप भी मानते हैं कि कम से कम एक मर्यादा बनाकर रखी जानी चाहिए चाहे चुनाव जीतें या हारें। चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई न करने पर आप क्या सोचते हैं। अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाइलवाणी पर।

2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।

हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।