नाम हयातुल्लाह चतुर्वेदी उम्र 80 साल 20 साल पहले रिटायर हो चुके हैं लेकिन पढ़ने का मोह नहीं छूट रहा है विषय भी ऐसा कि लोग पसीना छोड़ देते हैं लेकिन यही विषय उनकी पहचान बना हुआ है और आज वह देश के कोने-कोने में जाने जाते हैं चतुर्वेदी की उपाधि उन्हें 10 को पहले राष्ट्रीय कार्यक्रम में संस्कृत के प्रति अनन्य भक्त के स्वरूप दी गई है।

चायल तहसील क्षेत्र के मूरतगंज की प्रसिद्ध लाठी पिछले कुछ सालों से विलुप्त होती जा रही है। इसका मुख्य कारण है ग्रामीणों में लाठियों के खरीदारी में कमी एवं पीएसी और पुलिस महकमे में लाठियों की जगह रबर की लाठियों का प्रयोग होना है।         मूरतगंज की लाठियां पूरे प्रदेश भर में प्रचलित हैं। लाठी बनाने वाले हरिमोहन का कहना है कि उनके यहां दो पीढ़ियों से लाठी बनाने का कारोबार हो रहा है। फरुखाबाद और मिर्जापुर से कच्ची लाठियों को खरीदकर उसे सीधी करने के बाद पकाते है। ज्यादातर इन लाठियों को ग्रामीण सहित पुलिस थानों और चौकियों तथा पीएसी के लिए खरीदते रहें है। जो प्रदेश के कई जनपदों में जाती रहीं है। लेकिन पुलिस और पीएसी में जबसे प्लास्टिक की लाठियों का चलन होने लगा, तबसे लाठियों की खरीदारी कम हो गई है। शिवसेना और बजरंग दल जैसे संगठन भी मूरतगंज की लाठियों को खरीदकर प्रदेश के कई जनपदों में पहुंचाते रहे है।अब इसमें भी गिरावट आ रही है। वहीं पहले गांवो में हर घरो में एक लाठी हुआ करती थी। लेकिन अब धीरे धीरे लोगों में लाठियों के प्रति रुझान कम हो गया।

कौशांबी में सिस्टम की बेरुखी से रोजगार व व्यापार की अपार संभावना वाला ढलवा कढ़ाई उद्योग अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। मंझनपुर तहसील का गरौली गांव ढलवा कढ़ाई के निर्माण का बड़ा केंद्र है। मौजूदा समय मे कढ़ाई उद्योग को जीवित रखने वाले चंद कारीगर ही बचे हैं। जो पुश्तैनी कारोबार को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे। उम्मीद है, कोई न कोई जनप्रतिनिधि या फिर सरकार का नुमाइंदा उनकी पीड़ा सुन मदद का हाथ जरूर बढ़ाएगा।