देवरिया। जनपद के समस्त गो-आश्रय स्थलों में चारे के रूप में साइलेज अनिवार्य करने का सुखद परिणाम दिखने लगा है। गो आश्रय स्थलों में संरक्षित गोवंशों की सेहत सुधरी है, साथ ही उनके बीमार होने की दर भी घटी है, जिससे बीमार गोवंश के ईलाज में लगने वाली दवाओं की खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी आयी है। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अरविंद वैश्य ने बताया की जनवरी 2023 में वृहद गो-संरक्षण केंद्र मझौलीराज में 175 गोवंश संरक्षित थे, जिसके सापेक्ष 160 ओपीडी दर्ज की गई थी। इसकी तुलना में जनवरी 2024 में कुल 262 गोवंश संरक्षित थे और महज 113 ओपीडी दर्ज हुई। कान्हा गौशाला गौरी बाजार में जनवरी 2023 में 120 गोवंश संरक्षित थे जिसके सापेक्ष 122 ओपीडी दर्ज हुई, जबकि जनवरी 2024 में 143 गोवंश संरक्षित थे, जिसके सापेक्ष महज 44 ओपीडी ही दर्ज हुई। कमोबेश सभी गो-आश्रय स्थलों में ओपीडी में गिरावट दर्ज की गई है, जिसका परिणामस्वरूप जनवरी 2023 की तुलना में जनवरी 2024 में दवाओं की खपत में लगभग 40 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जिससे बड़ी मात्रा में शासकीय धन की बचत हुई है। गोवंश की मृत्यु दर में भी खासी गिरावट दर्ज हुई है। वेटनरी ऑफिसर डॉ अशोक कुमार त्रिपाठी बताया कि वर्तमान समय में नौ अस्थायी गो आश्रय स्थल में 517, पांच कान्हा गोशाला में 702, नौ कांजी हाउस में 337 तथा तीन बृहद गो आश्रय स्थल में 797 गोवंश संरक्षित हैं। जनपद में लागू व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक गोवंश को न्यूनतम तीन किलोग्राम साइलेज प्रतिदिन खिलाया जा रहा है। जनपद में सीतापुर की फर्म द्वारा 8.90 प्रतिकिलो की दर से साइलेज की आपूर्ति की जा रही है, जो भूसे की औसत कीमत 10 -12 रुपये प्रति किलो से काफी कम है। जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह ने बताया कि साइलेज का दोहरा लाभ है। यह भूसे से काफी सस्ता है, दूसरा इसमें मौजूद पोषक तत्व से गोवंश की विभिन्न रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है और वे कम बीमार पड़ रहे हैं, जिससे दवा के खर्च की भी बचत हो रही है।