भाटपार रानी, देवरिया : कल-कल करती छोटी गंडक नदी और उसके किनारे पांच एकड़ में फैले चनुकी के वरिकंटा वन के बीच आपस में पंख फैलाकर अटखेलिया करते मोर बरबस अपनी तरफ ध्यान आकर्षित कर लेते हैं। जब भी मौसम खुशगंवार होता है तो इनका मनोरम नृत्य देखने की बेचैनी ग्रामीणों को इस वन में खींच लाती है। ये मोर ग्रामीणों का काफी नुकसान भी करते हैं, लेकिन लोग सब कुछ बर्दाश्त कर इनको संरक्षण देने में लगे हैं। हालांकि वन विभाग ने अभी तक इनके संरक्षण की दिशा में कोई पहल नहीं की है। तहसील क्षेत्र के चनुकी के समीप आम के बागीचे में दो मोर सन 2000 में आए और उन्हें यहां की आबोहवा रास आ गई। इस घने बाग में ये दोनों रहने लगे। देखते ही देखते मोरों की संख्या यहां लगातार बढ़ती गई। इनकी संख्या आज ढ़ाई सौ से अधिक हो गई है। रिमझिम बरसात के दिनों में जब यह नृत्य करते है तो मोरों का मनोरम दृश्य देखने के लिए इलाके के लोग यहां दूर दूर से आ जाते है। इस बाग को अब मयूर वन के नाम से जाना जाने लगा है। ये मोर वन से निकलकर चनुकी गांव के ग्रामीणों के घर में घुस जाते हैं, लेकिन ग्रामीण इसका बुरा नही मानते। मोरों को अगर वन विभाग संरक्षण दे तो इस राष्ट्रीय पक्षी की तादाद और बढ़ सकती है। इस तरफ विभाग का ध्यान नही जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि विभाग अगर कोई कदम उठाता है तो हम उसका पूरा समर्थन व सहयोग करेंगे।