साथियों , हर वर्ष की तरह आज 12 अगस्त को पूरे विश्व में मनाया जा रहा है अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य युवाओं से जुड़े मुद्दों को अंतराष्ट्रीय समुदाय के ध्यान में लाना और आज के वैश्विक समाज में भागिदार के रूप में युवाओं की क्षमता का जश्न मनाना है । इस दिन की स्थापना 1999 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया भर के युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी।अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस हर साल एक विशेष थीम पर मनाया जाता है, जिसके केंद्र में युवाओं को सशक्त करने के प्रयास होते हैं। इस वर्ष का थीम है : 'क्लिक से प्रगति तक : सतत विकास के लिए युवा डिजिटल मार्ग ' . युवा नई तकनीकों को अपनाने और सकारात्मक रूप से बदलाव लाने में सबसे आगे है। युवा विकास के लिए यह शक्तिशाली विषय डिजिटलीकरण और सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति के बीच महत्वपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करता है। साथियों, इस अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर आप सभी युवाओं को मोबाइल वाणी के परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं।

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तमाम गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार इस समय देश में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर है। वहीं सरकारें हर छोटी मोटी भर्ती प्रक्रिया में सफल हुए उम्मीदवारों को नियुक्त पत्र देने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन कर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों को भी आमंत्रित कर रही हैं, जिससे की बताया जा सके कि युवाओं को रोजगार उनकी पार्टी की सरकार होने की वजह से मिल रहा है।

भारत में हर पाँच मिनट पर घरेलू हिंसा की एक घटना रिपोर्ट की जाती है। नेशनल फैमिली हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार सख्त घरेलू हिंसा कानून- 2005 होने के बावजूद देश में हर तीन महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 79.4% महिलाएं कभी अपने पति के जुल्मों की शिकायत ही नहीं करती। दोस्तों, हर रोज महिलाओं के खिलाफ जुर्म बढ़ रहे हैं , क्या अब हमारी संस्कृति को ठेस नहीं पहुंच रही , जिस पर इतने डींगे हाँकते है ? समाज में उत्पीड़न, शोषण और हिंसा का निरंतर बढ़ता ग्राफ अब बढ़ता ही जा रहा है। और जिस पर हमें अपनी चुप्पी तोड़नी ही होगी। हमें इस मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठानी ही होगी।

रूढीवाद सामाजिक विज्ञान के तहत स्थापित एक ऐसी विचारधारा है जो पारंपरिक मान्यताओं का अनुकरण तार्किककता या वैज्ञानिकता के बजाए केवल आस्था तथा प्राप्त अनुभवों के आधार पर करती है। यह सामाजिक और नैतिक मान्यताओं को चिरकाल तक प्रचलित मान्यताओं और व्यवस्थाओं के प्रति अपनी भागीदारी सिद्ध करती है। किसी भी समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता जैसी बुराई किसी भी देश की प्रगति को पीछे धकेल देती है। रूढ़िवादिता हमारे नवयुवकों को भाग्यवादिता की और ले जाती है। इसके फलस्वरूप् वे कर्महीन हो जाते है और असफलताओं में अपनी कमियों को ढ़ूढने की बजाए इसे भाग्य की परिणिति का रूप दे देती है। आज हम बात करेंगे रूढ़िवादी बनाम बेडियां।

जिले में सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान नेहरू युवा केंद्र ने यातायात नियमों के बारे में लोगों को जागरूक किया सड़क सुरक्षा कार्यक्रम का आयोजन 11 से 17 जनवरी तक किया गया जिसमें नेहरू युवा केंद्र के 25 सेवकों ने वाहन चालकों को यातायात पुलिस के सहयोग से यातायात के नियमों के बारे में जागरूक किया ।जिसे हर व्यक्ति को जानना आवश्यक होता है ।

सुनिए जेंडर हिंसा के खिलाफ चलने वाले इस कार्यक्रम, 'बदलाव का आगाज़', में आज सुनिए पतोत्री वैद्य जी को, जिनका कहना है युवाओं की सोच में एक नई उम्मीद और दृष्टिकोण है जो समाज में जेंडर के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए सक्रिय रूप से उतर रहा है। युवा समझते हैं कि जेंडर परिवर्तन का मतलब सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि सोच और आदतों में भी बदलाव लाना है।अब आप हमें बताएं कि जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ आप क्या सोच रहे हैं और इसे खत्म करने के लिए क्या कोशिश कर रहे हैं? अपने विचार और सुझाव हमें बताएं अपने फ़ोन में नंबर 3 दबाकर

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यूनेस्को की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 1.10 लाख ऐसे स्कूल हैं जो केवल एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इसके अलावा देश भर में शिक्षकों के लगभग 11.16 लाख पद खाली हैं और उसमें से भी तक़रीबन 70 फीसदी पद गांव के इलाके के स्कूलों में हैं। है ना मज़ेदार बात। जो गाँव देश की आत्मा है , जिसके लिए सभी सरकारें खूब बड़ी बड़ी बातें बोलती रहती है। कभी किसान को अन्नदाता , भाग्य विधाता, तो कभी भगवान तक बना देती है। उसी किसान के बच्चों के पढ़ने के लिए वो स्कूलों में सही से शिक्षक नहीं दे पाती है। जिन स्कूलों में शिक्षक है वहाँ की शिक्षा की हालत काफी बदहाल है. माध्यमिक से ऊपर के ज्यादातर स्कूलों में संबंधित विषयों के शिक्षक नहीं हैं. नतीजतन भूगोल के शिक्षक को विज्ञान और विज्ञान के शिक्षक को गणित पढ़ाना पड़ता है. ऐसे में इन बच्चों के ज्ञान और भविष्य की कल्पना करना मुश्किल नहीं है. लोग अपनी नौकरी के लिए तो आवाज़ उठा रहे है। लेकिन आप कब अपने बच्चो की शिक्षा के लिए आवाज़ उठाएंगे और अपने जन प्रतिनिधियों से पूछेंगे कि कहाँ है हमारे बच्चो के शिक्षक? खैर, तब तक, आप हमें बताइए कि ------आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में कितने शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है ? ------ क्या आपने क्षेत्र या गाँव के स्कूल में हर विषय के शिक्षक पढ़ाने आते है ? अगर नहीं , तो आप अपने बच्चों की उस विषय की शिक्षा कैसे पूरी करवाते है ? ------साथ ही शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है , ताकि हमारे देश का भविष्य आगे बढे।