बिहार राज्य के जिला कैमूर से सीताराम , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि जिसका भी कार्यकाल हो, जो भी मंत्री का कार्यकाल हो, जो भी गरीबों का अधिकार हो और जो भी हमारे बिहार के भीतर हो। कंपनी के अभाव में, हमारे बिहार के लोग दूसरे राज्य में जाकर अपना जीवन यापन करते हैं, इसलिए इस तरह की समस्या हमारे पूरे भारत में सबसे आम है। अगर हम बिहार के राज्यों में हैं, तो मैंने भारत सरकार और बिहार सरकार से संपर्क किया है कि भारत के भीतर जितनी कंपनियां हैं, उतनी बिहार के भीतर भी कंपनियां हों ताकि बिहार के लोग बिहार के भीतर रह सकें। कंपनी को किसी भी समस्या का सामना नहीं करना चाहिए और हर जिले में कंपनियों का गठन किया जाना चाहिए, हर ब्लॉक और पुलिस अधिकारियों को बहाल किया जाना चाहिए और किसी भी कंपनी में उपस्थिति होनी चाहिए। जो भी क्षेत्र या ग्रामीण क्षेत्र या शहरी क्षेत्र में जो भी सार्वजनिक कार्य करना है, वे अपना काम करेंगे और युवाओं को परिवार में वापस लाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करेंगे। लेकिन जब से हम स्वतंत्र हुए हैं, तब से ये कंपनियां भारत में हैं, हमारे बिहार में कोई भी कंपनी ठीक से नहीं चल रही है।
मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?