नमस्कार, आदाब दोस्तों ! स्वागत है आपका मोबाइल वाणी और माय कहानी की खास पेशकश कार्यक्रम भावनाओं का भवर में।दोस्तों समस्त मानव जगत को कुदरत ने बनाई है। और यह कुदरत का करिश्मा ही है की दुनिया का हर इंसान किसी न किसी तरह से एक दूसरे से अलग है , चाहे वो शारीरिक तरीके से हो या मानसिक तरीके से। इन्ही में से कुछ लोग बेहद खास भी होते है, किसी न किसी हुनर से सराबोर। पर इसका मतलब यह नहीं होता है कि जिन में गगन चुम्बी प्रतिभा नहीं है वो बेकार है या किसी के लिए कोई मायने नहीं रखते है। लोग अपनी खुद की पहचान को ताख पर रख कर दूसरे का जीवन जीना चाहते है पर भूल जाते है की हम जिन्हें खास समझते है कई बार उनकी जीवन भी काफी चुनौतीपूर्ण होती है। तो चलिए , आज क कड़ी में बात करते है की क्यों हमें खुद को और अपने आसपास के लोगो को उनके बास्तविक रूप में ही स्वीकार करना चाहिए और अगर ऐसा न हुआ तो हमारे मानसिक स्वस्थ्य और उसका क्या प्रभाव पड़ता है। आखिरकार मानसिक विकार किसी की गलती नहीं इसलिए इससे जूझने से बेहतर है इससे जुड़ी पहलुओं को समझना और समाधान ढूंढना। तो चलिए, सुनते है आज की कड़ी।....... साथियों, ऐसा देखने को मिलता है कि आज के पढ़े लिखे और सभ्य समाज में भी शारीरिक और मानसिक रूप से असामान्य लोगों को अलग दृष्टि से देखा जाता है आखिर इस तरह के लोगों के व्यवहार के पीछे क्या कारण हैं ? आपको को क्या लगता है ऐसा क्यों होता है कि समाज में एक सामान्य व्यक्ति अपने से अलग लोगों को स्वीकार नहीं कर पाता ? आपके अनुसार समाज में फैले इस तरह की भेदभाव की भावना को कैसे दूर किया जा सकता है ? दोस्तों, आपके मन में आज के विषय से जुड़ा कोई भी सवाल है तो जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 दबाकर। हम आपके सवाल का जवाब ढूंढ कर आप तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी सुनने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://www.youtube.com/@mykahaani

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल। लाली देखन मै गई मै भी हो गयी लाल। दिल्ली में बैठ कर INDIA is shinhing को अंग्रेजी में कहने से जनता और ज़ोर ज़ोर से नारा लगाने लगती है। शायद इसी टमाटर की वजह से हम विश्व की 5 वीं या तीसरी अर्थव्यवस्था भी बन जाए। कौन जानता है ? वैसे भी आजकल INDIA कहने से मामला कुछ गड़बड़ाता ही जा रहा है। अब इंडिया कहे या भारत , ये भी सवाल नया बन कर उभर रहा है। लेकिन इंडिया को छोड़ जो किसान हमारे भारत में रहते है , उन्हें तो टमाटर की लाली से कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है। झारखण्ड राज्य की राजधानी रांची से तक़रीबन 100 किलोमीटर दूर बड़कागांव में हर रोज़ सुबह सुबह सब्ज़ी की मंडी लगती है। उस मंडी में पिछले 15 सालों से सब्ज़ी बेच रहे एक सब्ज़ी वाले ने बताया कि पिछले 15 सालों में उन्होंने टमाटर को कभी भी इतना महंगा नहीं देखा। पिछले 1 महीने से खुद उन्होंने टमाटर को चखा भी नहीं है। एक किसान बलराम महतो ने बताया कि वे तो 50 रु किलो के भाव से टमाटर बेच दे रहे है। बाकि सुनने में आ रहा है कि यहाँ से मात्र 30 किलोमीटर दूर हज़ारीबाग शहर में 250 के भाव से टमाटर बिक रहा है। पिछले दिनों किसान आंदोलन में हमारी सरकारी जनता ट्रैक्ट्रर चलाते और जींस पहले लोगो को किसान मानने को तैयार ही नहीं थी. और वही सरकारी जनता आज किसानो को टमाटर के बहाने जींस पहनाने में लगी है। बात साफ़ है कि कम्पनियों की सरकारों के प्रवक्ता.. देश को टमाटर कम्पनी बनाने के चक्कर में लगी हुई है। और हमें और आपको टमाटर के बहाने टमाटर ही बने रहना देना चाहती है। ताकि हम सोते जागते , उठते-बैठते टमाटर -टमाटर ही करते रहे. तो अब सवाल ये है कि टमाटर के भाव बढ़ जाते हैं तो किसान को इसका फायदा क्यों नहीं मिलता? क्योंकि सौ रुपये किलो के टमाटर में अस्सी रुपये बीच वाले खा लेते हैं। इस मुल्क में किसानों के नाम पर बहुत से लोगों को बहुत कुछ मिल जाता है। नोट वाले नोट ले जाते हैं, वोट वाले वोट ले जाते हैं, राज करने वाले राज करने लगते है और मुर्ख बनाने वालों को नए नए तरीके मिल जाते है। बात बस इतनी सी है कि अगर किसानो को फायदा मिलना शुरू हो जाएगा तो बीच के कई लोगों को घाटा हो जाएगा। तो साथियों, आप मुझे बताइए कि आपके यहाँ मॅहगाई के क्या हालात है ? इस महँगाई में गुज़ारा कैसे हो रहा है ? और आपको राजीव की डायरी कैसी लगी ? किन-किन मुद्दों पर आपने वाले वक़्त में बात करना चाहते है ? अपनी बात बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन और बताएं अपने विचार। नमस्कार