सीतापुर। ब्लॉक स्तर के जिम्मेदार अफसर व कर्मियों की लापरवाही से करीब 347 अपात्र व्यक्तियों को आवास योजना ग्रामीण का लाभ दिया गया है। इन्हे एक करोड़ 74 लाख रुपये दिए गए। विभिन्न स्तरों से इसका खुलासा होने के बाद लाभार्थियों के खाते में भेजी गई धनराशि की वसूली की तैयारी की जा रही है। सीडीओ की सख्ती के बाद सभी बीडीओ को शीघ्र वसूली के निर्देश दिए गए हैं। जिले के 19 ब्लॉक क्षेत्रों की विभिन्न ग्राम पंचायतों में पीएम और सीएम आवास योजना के लाभार्थियों काे आवासीय सुविधा दिए जाने में गड़बड़झाला किया गया है। अपात्रों का चयन कर धनराशि उनके खाते में भेजी गई है, जबकि तमाम पात्र भटक रहे हैं। प्रभावितों की ओर से इसकी शिकायतें निरंतर की जा रही हैं।
सीतापुर शहर कोतवाली पुलिस ने ऑनलाइन ठगी का शिकार हुए एक युवक के चार लाख 44 हजार रुपये दो दिन में ही वापस करवा दिये। पुलिस ने एक बैंक खाते को फ्रीज करते हुए पीड़ित की धनराशि उसके खाते में वापस कराई। रामकोट के सहसापुर गांव निवासी देवेंद्र कुमार मौर्य ने बताया कि 31 अक्तूबर को उसके पास एक फोन आया। ठग ने ट्रेडिंग कंपनी का एजेंट बताते हुए पैसा निवेश किए जाने की बात कही। ठग ने सारी जानकारी देते हुए पीड़ित को झांसे में ले लिया। पहले देवेंद्र ने 16 हजार 500 रुपये कंपनी के खाते में भेज दिए। ठग ने धीरे-धीरे लॉट (ट्रेडिंग का एक शब्द) खरीदने की बात कहकर रुपये ले लिए। फिर घाटा होने की बात कहकर डराते हुए और रुपये देने की बात कही। इस तरह से उसने चार लाख 44 हजार 500 रुपये ठग लिए।
सीतापुर जिले में चल रही गन्ना मिलों का पेराई सत्र शुरू हो गया है। गन्ना किसान मेहनत से उगाए गन्ने को मिल तक पहुंचाने की जद्दोजहद में जुटे हैं। इस दौरान इन गन्ना किसानों को ठगने के लिए एजेंट भी सक्रिय हो गए हैं। ऐलिया ब्लॉक के टिकरा बाजार, इमलिया सुल्तानपुर, फरर्कपुर, चांदूपुर व अन्य जगहों पर खुलेआम अवैध गन्ना मंडियां चल रही हैं। सरकार द्वारा निर्धारित गन्ना मूल्य से करीब सौ रुपये सस्ता गन्ना बेचना किसानों की मजबूरी है। पेड़ी की फसल की पर्ची गन्ना मिलों द्वारा समय से उपलब्ध नहीं कराई जाती है, जिससे किसानों के आगे खेत को मजबूरी में खाली करने के लिए गांव-गांव घूमने वाले इन एजेंट का सहारा लेना पड़ता है। दूसरी ओर जिन लोगों के खेत में गन्ना बोआ नहीं गया है, उनका नाम सर्वे में शामिल कर उन्हें समय से पर्चियां दे दी जाती हैं। इन्हीं पर्चियों के आधार पर ये एजेंट गन्ना किसानों को ठग लेते हैं। गन्ना एजेंट ही गन्ने का मूल्य न्यूनतम करीब 200 रुपये निर्धारित कर देते हैं। बाद में सरकारी रेट पर इसे मिल में सप्लाई कर हजारों रुपये कमाते हैं। इस खेल में गन्ना पर्यवेक्षक से लेकर मिल के अधिकारी तक शामिल रहते हैं।
सरकारी संस्था आईसीएमआर के डाटाबेस में सेंध लगाकर चुराया गया 81 करोड़ लोगों का डाटा इंटरनेट पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। लीक हुए डाटा में लोगों के आधार कार्ड से जुड़ी जानकारी, पासपोर्ट, नाम, फ़ोन नंबर, पते सहित तमाम निजी जानकारियां शामिल हैं। यह सभी जानकारी इंटरनेट पर महज कुछ लाख रुपये में ऑनलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध है। इसे डाटा लीक के इतिहास का सबसे बड़ा डाटा लीक कहा जा रहा है, जिससे भारत की करीब 60 प्रतिशत आबादी प्रभावित होगी।