उत्तरप्रदेश राज्य के महोबा ज़िला से मोबाइल वाणी संवाददाता की बातचीत पिरु से हुई। पिरु बताते है कि इनके गाँव काली पहाड़ी में क्रेशर से काम बहुत होता है। इससे धूल बहुत होता है। खदान से उड़ने वाली धूल से बीमारी होने का ख़तरा अधिक रहता है।गाँव वाले आँख ,पेट ,छाती की बीमारी से अधिक पीड़ित रहते है। गाँव वालों को खदानों में थोड़ा ही काम मिलता है जिसकी मज़दूरी कम है ,लगभग 300 से 400 रूपए। लोगों के बाल बच्चे है तो वो गाँव में ही रहकर या आसपास के क्षेत्र में काम करते है। अगर कही काम नहीं मिलता है तब ही ग्रामीण खदानों में काम करते है। जब खदानों में विस्फोट होता है तो आवाज़ें बहुत होती है ,इससे अब तक कोई दुर्घटना होने की ख़बर नहीं मिली है। खदान से सबसे ज़्यादा होने वाली समस्या धूल की है ,इससे निजात दिलाने के लिए प्रधान अभी तक शुरुआत नहीं किये है।
उत्तरप्रदेश राज्य के महोबा ज़िला से मोबाइल वाणी संवाददाता की बातचीत एक बच्ची आरती से हुई। आरती चौथी कक्षा की छात्रा है। ये बताती है कि इनके गाँव में पत्थर के बहुत खदान है। खदान में काम होने के कारण बहुत धूल होता है। इस कारण बच्चों को बाहर जा कर खेलने नहीं दिया जाता है। इनके पापा को भी धूल के कारण ह्रदय रोग हो गया है। इनके घर में बड़ा भाई और मम्मी रोजगार कर जीविका चलाती है। बच्चे बीमार न हो जाए इसीलिए बच्चों को बाहर जाने नहीं दिया जाता है। खदान में जो विस्फोट होता है ,उससे भी लोग डर के माहौल में रहते है कि कहीं लोग पत्थरों से घायल न हो जाए। इनके गाँव के लोग इस समस्या से निदान पाने की कोशिश किये भी है तो उनकी सुनवाई नहीं हो पाई है। इस कारण अब ग्रामीण इस समस्या को लेकर आवाज़ नहीं उठाते है।खदानों में गाँव के लोगों को काम भी कम मिलता है।
उत्तरप्रदेश राज्य के महोबा ज़िला से मोबाइल वाणी संवाददाता की बातचीत चुन्नी लाल से हुई। चुन्नी लाल यह बताते है कि वह पत्थर खदान में मजदूरी करते है , पत्थर तोड़ने का काम करते है। उनको मजदूरी करने के छह सौ रुपये मिलते है। पत्थर के खदान में काम होने के कारण गाँव में बहुत धुल उड़ती है , बहुत शोर होता है। बच्चे , बूढ़े घर से बाहर नहीं निकल पाते है। गाँव में चारों तरफ बड़े बड़े गड्ढे है। पेंड़ -पौधे भी लगा नहीं पाते है और सांस , फेफड़ों की बीमारियाँ बहुत होती है। बीमार होने पर लोगों को झाँसी लेकर जाते है। इलाज़ कराने में बहुत पैसा खर्च होता है। गाँव के प्रधान भी इसे रोकने का प्रयास नहीं करते है। गाँव के लोग इस खदान का विरोध भी करते है लेकिन बंद नहीं हो पाया। पहाड़ों को तोड़ने के लिए विस्फोटक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण बहुत शोर होता है। खदान के कारण कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। कई लोग पहाड़ से गिर कर और अन्य कारणों से मर चुके है। गाँव में पेंड़ नहीं लग पाते है। जो लोग पहाड़ तोड़ते है वो लोग भी पेंड़ नहीं लगाते है।
अगर इस जहां में मजदूरों का नामोंनिशां न होता, फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता!! नमस्कार /आदाब दोस्तों,आज 1 मई को विश्व अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या मई दिवस मना रहा है।यह दिन श्रमिक वर्ग के संघर्षों और विजयों से भरा एक समृद्ध और यादगार इतिहास है। साथियों,देश और दुनियाँ के विकास में मजदूर भाई-बहनों का योगदान सराहनीय है।हम मजदूर भाई-बहनों के जज्बे को सलाम करते हैं और उनके सुखमय जीवन की कामना करते हैं। मोबाइल वाणी परिवार की तरफ से मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?
मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?
भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
नमस्कार दोस्तों, मोबाइल वाणी पर आपका स्वागत है। तेज़ रफ्तार वक्त और इस मशीनी युग में जब हर वस्तु और सेवा ऑनलाइन जा रही हो उस समय हमारे समाज के पारंपरिक सदस्य जैसे पिछड़ और कई बार बिछड़ जाते हैं। ये सदस्य हैं हमारे बढ़ई, मिस्त्री, शिल्पकार और कारीगर। जिन्हें आजकल जीवन यापन करने में बहुत परेशानी हो रही है। ऐसे में भारत सरकार इन नागरिकों के लिए एक अहम योजना लेकर आई है ताकि ये अपने हुनर को और तराश सकें, अपने काम के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़रूरी सामान और औजार ले सकें। आज हम आपको भारत सरकार की विश्वकर्मा योजना के बारे में बताने जा रहे हैं। तो हमें बताइए कि आपको कैसी लगी ये योजना और क्या आप इसका लाभ उठाना चाहते हैं। मोबाइल वाणी पर आकर कहिए अगर आप इस बारे में कोई और जानकारी भी चाहते हैं। हम आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे। ऐसी ही और जानकारियों के लिए सुनते रहिए मोबाइल वाणी,
Transcript Unavailable.
पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके