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गोरखपुर फल मंडी भाव 4 मार्च
गोरखपुर सब्जी मंडी भाव 4 मार्च
जन्म से आठ साल की उम्र तक का समय बच्चों के विकास के लिए बहुत खास है। माता-पिता के रूप में जहाँ हम परवरिश की खूबियाँ सीखते हैं, वहीँ इन खूबियों का इस्तेमाल करके हम अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा दे सकते है।आप अपने बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाने और उन्हें सीखाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते है? इस बारे में 'बचपन मनाओ-बढ़ते जाओ' कार्यक्रम सुन रहे दूसरे साथियों को भी जानकारी दें। अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में दबाएं नंबर 3.
जन्म से आठ साल की उम्र तक का समय बच्चों के विकास के लिए बहुत खास है। माता-पिता के रूप में जहाँ हम परवरिश की खूबियाँ सीखते हैं, वहीँ इन खूबियों का इस्तेमाल करके हम अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा दे सकते है।आप अपने बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाने और उन्हें सीखाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते है? इस बारे में 'बचपन मनाओ-बढ़ते जाओ' कार्यक्रम सुन रहे दूसरे साथियों को भी जानकारी दें। अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में दबाएं नंबर 3.
आज के इस दौर में आने वाली पीढ़ी के लिए यह चिंतनीय विषय बन गया है, कि आज हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को किस प्रकार की शिक्षा प्रदान दें। जिससे कि हमारे सभी पक्षों का विकास संभव हो सके। शिक्षा का मूल लक्ष्य मनुष्य के अंदर संस्कार, सद्गुण और आत्मनिर्भर बनाना है। किन्तु आज हम आधिकतर बच्चों को आज की शिक्षा से अमर्यादित, अहंकारी आंधी बनते देखते हैं, इस समय बच्चों में सर्टिफिकेट के लिए होड़ लगी हुई है और तो और आधिकतर लोगों का देखने का नजरिया भी यही है की जो जितने अधिक कागज के टुकड़ों (डीग्रियों) को प्राप्त कर लेता है,समाज के लोगों की नजरों में वह उतना ही महान होता है बाहरी आडंबर के चलते हम अपनी सभ्यता को भूलकर पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव में स्वयं को उद्दंड स्वभाव वाले बनाने के रास्ते पर चल पड़े हैं। आज बच्चे तर्कहीन मशीन रट्टू तोते बनते जा रहे हैं इस तरह वे अपने बौद्धधिक स्तर का विकास नहीं कर पाते। और समाज में भी पिछड़ जाते हैं। गांधी जी ने “यंग इण्डिया” में लिखा है “विध्यार्थी को राष्ट्र का निर्माता बनना है” हमारी पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए जिससे राष्ट्र निर्माण हो सकें, हमारे बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें बच्चे निम्न विचारों का त्यागकर सकें। जाती, धर्म, वर्ण,प्रांत,वर्ग, जैसी संकीर्णताओं से बाहर निकल सकें। मानवता का प्रसार हो विध्यार्थियों का मानसिक व शारीरिक विकास हो सके। पढ़ाई या ज्ञान मुख्यतः 2 तरीकों से अच्छी तरह प्राप्त होता है।पहला तरीका है की विद्यार्थी स्वयं प्रेक्टिकल करके देखे,और दूसरा है कि पुस्तकों, ग्रन्थों आदि के द्वारा, दूसरे तरीके से सटीक तरह से सीखना संभव नहीं है क्योकी इस तरह से सीखने में अनुभव नहीं मिल पाता है, दूसरे तरीके से सीखना आसान भी है और इसमें अनुभव भी होता है। किंतु यह तभी संभव है, जब हम किसी बात की प्रायोगिक तरीके से पुष्टि करें। आज हमें ऐसी शिक्षा के अनुशरण करने की जरूरत है जो बच्चों में कौशल विकसित कर सके। इस समय में बेरोजगारी अपना विकराल रूप ले चुकी है। ऐसे में जरूरत है की हम कोई काम या कौशल सीखें जिससे यह समस्या का भी हल हो सके। शिक्षा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक मनुष्यों में दया, प्रेम,अपनत्व,उदारता जैसे गुण विकसित नही हो जाते, क्योंकी इन गुणो के आभाव में मनुष्य मनुष्यता को भूल कर पशुओं से भी विकृत दशा में पहुंच जाता है।
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भोजन से केवल भूख ही शांत नहीं होती बल्कि इसका प्रभाव तन, मन एवं मस्तिष्क पर पड़ता है। कहा गया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन। हम सभी भलीभांति जानते हैं कि तले हुए,मसालेदार, बासी,रूखे एवं गरिष्ठ भोजन से मन मस्तिष्क और शरीर में दर्जनों विकार जन्म लेते हैं। भूख से अधिक या कम मात्रा में भोजन करने से हमारा तन रोगग्रस्त बनता जाता है। आयुर्वेद के मुताबिक दिन में दो बार भोजन करना सेहत के लिए बहुत ह लाभकारी होता है। दिन में 6 घंटे के अंतराल के बाद आप दो बार भोजन कर सकते हैं। जो व्यक्ति दिन में दो बार भोजन करता है उसे भोगी कहा जाता है। दो बार खाना खाने से सही पाचन होता है। भोजन से ऊर्जा के साथ-साथ सप्त धातुएं (रक्त,मांस,मज्जा,अस्थियां आदि) पुष्ट और मजबूत होती हैं। केवल खाना खाने से ऊर्जा नहीं मिलती,खाना खाकर उसे पचाने से ऊर्जा प्राप्त होती है। परंतु भागदौड़ एवं व्यस्तता के कारण मनुष्य शरीर की मुख्य आवश्यकता भोजन पर ध्यान नहीं देता। जल्दबाजी में जो मिला,सो खा लिया या चाय-नाश्ता से काम चला लिया। इससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है और भोजन का सही पाचन नहीं हो पाता। भोजन का सही पाचन हो सके इसके लिए इन बातों पर गौर करें। एक प्रसिद्ध कहावत है कि 'सुबह का खाना स्वयं खाओ,दोपहर का खाना दूसरों को दो और रात का भोजन दुश्मन को दो।' वास्तव में हमें सुबह 10 से 11 बजे के बीच भोजन कर लेना चाहिए ताकि दिनभर कार्य करने के लिए ऊर्जा मिल सके। कुछ लोग सुबह चाय-नाश्ता करके रात्रि में भोजन करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता। दिन का भोजन शारीरिक श्रम के अनुसार एवं रात का भोजन हल्का व सुपाच्य होना चाहिए। रात्रि का भोजन सोने से दो या तीन घंटे पूर्व करना चाहिए। तीव्र भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए। नियत समय पर भोजन करने से पाचन अच्छा होता है। हाथ-पैर,मुंह धोकर आसन पर बैठकर भोजन करने से यश एवं आयु बढ़ती है। खड़े होकर जूते पहनकर सिर ढंक कर भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन को ठीक तरह चबाकर करना चाहिए। वरना दांतों के द्वारा पीसने का काम हमारी आंतों को करना पड़ेगा जिससे भोजन का पाचन सही नहीं होगा। भोजन करते समय मौन रहना चाहिए। इससे भोजन में लार मिलने से भोजन अच्छी तरह से पचता है। टीवी देखते हुए अखबार पढ़ते हुए नहीं खाना चाहिए। स्वाद के लिए नहीं,स्वास्थ्य के लिए भोजन करना चाहिए। स्वादलोलुपता में भूख से अधिक खा लेना बीमारियों को दावत देना है। भोजन हमेशा शांत एवं प्रसन्न चित्त होकर करना चाहिए। भोजन करने के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए। भोजन के बाद घुड़सवारी,दौड़ना,बैठना,शौच आदि नहीं करना चाहिए। भोजन के बाद दिन में टहलना एवं रात में सौ कदम टहलकर बाईं करवट लेटने या वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। भोजन के एक घंटे बाद मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। रात्रि को दही,सत्तू,तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। दूध के साथ नमक,दही,खट्टे पदार्थ,मछली, कटहल नहीं खाना चाहिए। शहद और घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। दूध-खीर के साथ खिचड़ी नहीं खानी चाहिए।
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