पूरी दुनियां के पुरूष प्रधान समाज में लिंग के आधार पर महिलाओं को सामाजिक भागीदारी बढ़ाने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया। शिक्षा का हक़ अपनी इच्छा से विवाह करने का हक़ पहले पति के न रहने पर दूसरे पुरुष से विवाह करने का हक़ तथा पैतृक जमीनों अथवा परिवार की समृद्धि के लिए खरीदी जाने वाली जमीनों में महिलाओं को कोई हक़ हिस्सा नहीं देने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। किंतु अब शिक्षा के बढ़ते प्रभाव और टेक्नोलॉजी तथा संचार माध्यमों के निरंतर विकास के कारण समाज में तेजी से महिलाओं को भी बराबरी का दर्जा मिल रहा है। निश्चय ही यह एक बड़े सामाजिक बदलाव और सच्चे अर्थों में प्रगति तथा विकास को बढ़ावा देने वाली सकारात्मक सोच और नई दिशा मिलने का प्रमाण है।आज पैतृक जमीनों और परिवार की समृद्धि के लिए खरीदी जाने वाली जमीनों में महिलाओं का नाम भी नजर आने लगा है। महिलाओं के मान सम्मान के लिए उन्हें बराबरी का दर्जा देने के लिए इस बदलाव की जरूरत भी है। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि महिलाओं को उनके हक़ और बराबरी का दर्जा मिलने से उनकी अहमियत कार्य दक्षता पुरुषों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही है। उद्यमशील महिलाएं सामाजिक परिवर्तन के साथ ही अपने कौशल का लोहा मनवाने में कामयाब हो रही हैं। अब वक्त आ चुका है कि पुरूषों को भी बेझिझक सभी क्षेत्रों में महिलाओं को उनका हक हिस्सा देने तथा प्रतिनिधित्व का पर्याप्त अवसर देने के लिए आगे आना होगा। आरक्षित पदों पर ग्राम प्रधान के पद से लेकर संसद सदस्य राज्यपाल और राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित महिलाएं बड़ी ही कुशलता से समाजिक हित के कार्यों को गति देने में लगी हुई हैं। किंतु आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष प्रधान समाज उन्हें प्रतिनिधित्व का पर्याप्त अवसर नहीं दे रहा है। विशेष कर महिला ग्रामप्रधानों को विकास खंड कार्यालयों तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता है। बल्कि प्रतिनिधि के रूप में परिवार के पुरुष सदस्य ही उन्हें घरों से बाहर नहीं निकलने देते। यह एक दु:खद स्थिति है इससे महिलाओं को लिंग भेद के शोषण का शिकार हो कर जीना पड़ रहा है। सरकार के द्वारा जमीनों की रजिस्ट्री महिलाओं के नाम पर कराने पर दी जाने वाली छूट के कारण आज बड़े पैमाने पर महिलाएं भू संपत्ति में अपना हक़ पाने लगी हैं। इससे घर के कामों के साथ ही कृषि,पशुपालन, स्वयं सहायता समूहों से जुड़ कर छोटे मोटे उद्योग धंधों के जरिए महिलाएं अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं। किंतु "महिलाओं का विकास गांव का विकास" सुनिश्चित करने के लिए हमारे पुरुष प्रधान समाज में अभी भी महिलाओं को और अधिक अवसर देने की दरकार बनी हुई है।