कई बार काम के लिए पूरा दिन भी कम पड़ जाता है। हमें अपने काम को अगले दिन के लिए छोड़ना पड़ता है। उस वक्त मन में बस एक ही ख्याल आता है कि काश दिन कुछ और लंबा होता। काश दिन में 24 के बजाए 25 घंटे होते। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो बता दें कि आपकी ये ख्वाहिश भी पूरी होने वाली है। दिन लंबा होते जा रहा है। कुछ सालों बाद दिन 24 के बजाए 25 घंटे होने वाले हैं। जी हां हैरान मत होइए ये कोई मजाक नहीं बल्कि शोधकर्ताओं ने अध्ययन के बाद कहा है। इसके पीछे खगोलीय घटनाएं शामिल है, जिसकी वजह से आने वाले कुछ सालों में दिन में 24 घंटे के बजाए 25 घंटे होंगे। दरअसल चंद्रमा और धरती के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। चंद्रमा से दूरी बढ़ने की वजह से धरती पर दिन लंबे होते जा रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 1.4 अरब साल पहले धरती पर पर दिन मात्र 18 घंटे का होता था, लेकिन धीरे-धीरे दिन में घंटे बढ़ते चले गए। प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 1.4 अरब सा्ल पहले चंद्रमा हमसे करीब था, लेकिन धीरे-धीरे उसके पृथ्वी के चारों ओर अपनी धूरी पर घूमने के तरीके को बदला, जिसकी वजह से धीरे-धीरे वो हमसे दूर हो रहा है। धरती पर एक दिन 24 घंटे का होता है, ये कोई भी आसानी से बता सकता है लेकिन क्या हमेशा ये दिन की समय सीमा यही थी और आगे भी यही रहेगी। वैज्ञानिकों ने दावा किया गया है कि आने वाले समय में दिन की अवधि 24 घंटे से ज्यादा हो सकती है क्योंकि ये बीते हजारों साल से बढ़ रही थी। एक समय पर धरती का दिन 24 घंटे से कम होता था और अनुमान है कि यह समय के साथ बढ़ता रहेगा। ऐसा समय भी भविष्य में आ सकता है जब दिन का समय 24 नहीं 25 घंटे का होगा। लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 24 घंटे में एक बार पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करती है, जो एक दिन को दिखाता है। धरती के धुरी पर घूमने की अवधि यानी एक दिन के हिसाब से ही इंसान अपने कामकाज और सोने के घंटे तय करता है। यानी एक तरह से धरती के घूमने का ये समय इंसान को एक संतुलित जिंदगी देता है लेकिन हमेशा से दिन इसी तरह 24 घंटे का नहीं था। वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुत समय पहले पृथ्वी का दिन बहुत छोटा था। पहले पृथ्वी ने ऐसे दिनों का अनुभव किया है जो अब की तुलना में छोटे थे। करीब एक अरब साल पहले दिन की लंबाई केवल लगभग 19 घंटे थी। धरती के बनने के समय पृथ्वी अपनी धुरी पर 10 घंटे से भी कम समय में घूमती थी। यानी एक दिन महज 10 घंटे का था। ग्रह वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का तेज घूमना मंगल के आकार के प्रोटोप्लैनेट के साथ एक विशाल, चंद्रमा-निर्माण प्रभाव का परिणाम था। इसने चंद्रमा बनाने के लिए ग्रह की सतह के पर्याप्त हिस्से को तोड़ते हुए पृथ्वी की कोणीय गति को तेज कर दिया। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का दिन 24 घंटे से भी अधिक लंबा हो जाएगा। ग्रह के पिघले हुए कोर, महासागरों या वायुमंडल में सूक्ष्म परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कुछ मिली सेकेंड बढ़ गए हैं। पृथ्वी का घूमना वास्तव में इसके ग्रह की उत्पत्ति की कहानी का प्रमाण है। कोई ग्रह कितनी तेजी से घूमता है यह इस बात से निर्धारित होता है कि इसका निर्माण कैसे हुआ जब प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क में सूर्य की परिक्रमा करने वाली धूल, चट्टानें और गैस अंतरिक्ष में एक साथ आए। अपनी गति की वजह से जैसे-जैसे चंद्रमा धरती से दूर हो रहा है, धरती की गति भी कम हो रही है, क्योंकि ब्रह्मांड में पृथ्वी की गति दूसरे ग्रहों से प्रभावित होती है, जो उस पर बल डालते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक लाखों वर्षों के पृथ्वी और चंद्रमा की गति के अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी और चंद्रमा के बीच दूरी बढ़ रही है। जिसकी असर दिन के घंटों पर पड़ता है। चंद्रमा से मिले आंकड़ों के विश्लेषण से पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि ज्वालामुखी संग्रहों के कारण चंद्रमा की सतह पर फैली चट्टानों के नीचे प्राकृतिक रूप से पानी हो सकता है। जियोसाइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रमा की ऊपरी सतह और अंदरूनी हिस्से के बीच में पर्याप्त मात्रा में पानी है, हालांकि रिपोर्ट में कहा गया कि आंतरिक स्रोतों से चांद पर पानी होने का पता नहीं चलता है।