हर व्यक्ति के जीवन में गुरू का महत्व शीर्ष पर रहा है। साथ ही गुरूओं का भी मूल दायित्व यही है कि अच्छी शिक्षा और संस्कारों से देश के भविष्य नौनिहालों को पोषित करें तथा समाज और राष्ट्र को एक सही सकारात्मक दिशा दें। आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, हमारे बीच ऐसे बहुत से लोग हैं जो कि अपने मोबाइल फ़ोन में भी फिंगर प्रिंट लॉक लगा कर रखते हैं। डिजिटलाइजेशन के आज के इस दौर में बड़ी औद्योगिक इकाईयों, यूनिवर्सिटियों, मेडिकल कॉलेजों, आईटी कंपनियों, पॉलीटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेजों, बैंकों, बीमा कंपनियों, शॉपिंग मॉल, अखबारों के दफ्तरों और बहुत से सरकारी संस्थानों में डिजिटल उपस्थिति अर्थात हाजिरी लगाई जा रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश के सरकारी परिषदीय स्कूलों में जैसे ही डिजिटल हाजिरी की व्यवस्था लागू करने की बात उठी उत्तर प्रदेश के सभी शिक्षक विरोध पर उतर आए। नतीजा यह हुआ कि सीएम योगी आदित्यनाथ को दो महीने तक के लिए डिजिटल हाजिरी लगाने का आदेश ठंढ़े बस्ते के हवाले करना पड़ा। आइए जानते हैं सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की समस्याओं के बारे में उत्तरप्रदेश के सरकारी स्कूलों के शिक्षक लंबे समय से पुरानी पेंशन व्यवस्था ओपीएस अर्थात ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही शिक्षकों की यह भी शिकायत है कि बच्चों को पढ़ाने के अलावां उनसे चुनाव में मतदान, मतगणना, जनगणना, मतदाता सूची, स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन (संख्या) बढ़ाने, योग दिवस व अन्य राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने, आधार, टीसी, मुल्यांकन, ट्रेनिंग, सर्वे, मासिक बैठकें, टीएलएम, खेल,पौधरोपण,सांस्कृतिक कार्यक्रम, रसोइया चयन, मीना मंच, परीक्षा ड्यूटी, आॅडिट, स्वास्थ्य और शिक्षा जागरूकता रैलियां निकालने समेत दर्जनों कार्य कराए जाते हैं जिससे शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के अलावां अन्य कार्यों को पूरा कराने में उलझ कर रह जाते हैं। लेकिन वास्तविकता के धरातल पर देखा जाए तो सभी सरकारी विभागों के कामकाज की तरह ही शिक्षकों के कार्य भी दोष पूर्ण रहते हैं। बेहतरीन शिक्षा देने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थानों का दावा है कि हमारे संस्थानों में सरकारी ट्रेंड शिक्षकों का एक दिन भी काम कर पाना मुश्किल है। उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षा और शिक्षकों का राजनीति से जुड़ाव ही इसके हासिए पर पहुंचने की मूल वजह है। प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में 3.5 वर्ष के बच्चों के एडमिशन हो रहे हैं जबकि सरकारी स्कूलों में कक्षा एक में एडमिशन के लिए 6 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित की गई है। ऐसे में सरकारी स्कूलों में नामांकन (एडमिशन) कम हो रहे हैं। दूसरी बड़ी वजह मिड-डे-मील योजना में बच्चों को परोसा जाने वाला भोजन है। मध्यवर्गीय संभ्रांत परिवारों के लोग मिड-डे-मील और सरकारी शिक्षकों की नेतागिरी के कारण ही अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में नहीं कराना चाहते हैं। समय आ गया है कि अब सरकार को रेल सेवा, स्वस्थ सेवा,तहसीलों और जिले के सरकारी प्रशासनिक अधिकारियों की सेवाएं, एंबुलेंस सेवा, आपदा प्रबंधन सेवा, पुलिस विभाग की सेवाओं की तरह ही शिक्षकों के यूनियन अर्थात संगठन पर भी रोक लगानी चाहिए। ताकि पढ़े लिखे लोगों को अपनी शिक्षा सेवा जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का बोध होता रहे। प्रति माह भारी भरकम वेतन पाने वाले शिक्षक अपने नैतिक कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों से बचते हुए दर्जनों बहाने बना कर शिक्षण कार्यों से दूर रह कर सिर्फ एक बड़ा वोट बैंक बन कर सरकारों के साथ लगातार सौदेबाजी करते रहे हैं। एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ शिक्षक ने बताया कि सरकार यदि सिर्फ कक्षा 8 तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मेडिकल इंजीनियरिंग और सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं सेवायोजन में सिर्फ 10% वरीयता देने की घोषणा कर दे तो सभी सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को बैठाने के लिए जगह कम पड़ जाएगी। देश का हर नागरिक अपने बच्चों को सिर्फ सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाना चाहेगा। इससे शिक्षक शिक्षा और पढ़ाई लिखाई में व्यापक बदलाव हो जाएगा। सरकार खुद ही प्राइवेट शिक्षण संस्थानों के हांथों की कठपुतली बन कर हुई है।