शब्द को साक्षात परम् ब्रम्ह अर्थात ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शब्दों को हमारे विचारों की मुद्रा भी कहा गया है। इन शब्दों में अद्भुत अतुलनीय शक्ति होती है। शब्दों से बने मंत्रों से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। शब्दों का अपना कोई आकार नहीं होता। फिर भी मनुष्य के मन पर इन शब्दों का बहुत ही व्यापक और अमिट प्रभाव पड़ता है। शब्द हमारे जीवन की दशा और दिशा बदलने में सक्षम होते हैं। इतिहास में ऐसे लाखों प्रमाण मिलते हैं जिसमें कि शब्दों के रूप में प्राप्त हुए उपदेशों, व्यंग्य और चुनौतियां बड़ी घटनाओं का कारण बनीं। शब्द हमारे मानसिक पटल का दर्पण माने गए हैं, अर्थात शब्दों के उच्चारण और उनके प्रस्तुतिकरण से ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है। जिस प्रकार एक वाद्य यंत्र की पहचान उसके स्वर से होती है, ठीक उसी तरह व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी के माध्यम से बोले गए शब्दों के द्वारा होती है। शब्दों के प्रयोग में मनुष्य के व्यवहार और उसके आचरण की सुचिता झलकती है। शब्द अदृश्य होते हुए भी बड़ी सशक्तता के साथ श्रोताओं को प्रभावित करते हैं। शब्दों में मनुष्य के पारिवारिक, सामाजिक संबंधों के निर्माण तथा विध्वंस शक्ति होती है। स्नेहिल शब्दों का प्रभाव औषधि के समान कल्याणकारी होता है। जिस प्रकार से द रोगी व्यक्ति को शांति प्रदान करती है उसी प्रकार शालीनता से प्रयोग किए गए शब्द सुनने वाले के मन में शांति और उल्लास का संचार करते हैं। क्रोधित अवस्था में बोले गए शब्द विष के समान मनुष्य के अंतःकरण को उद्विग्न बना देते हैं। वाणी द्वारा शब्दों का प्रयोग करते हुए विवेक का प्रयोग परम आवश्यक है। विवेकहीन होकर प्रयोग किए गए शब्द मधुर संबंधों को भी नष्ट कर देते हैं। मनुष्य के मन में उतरना तथा मन से उतरना शब्दों के प्रयोग पर ही निर्भर करता है। कड़वे, क्रोध एवं असभ्य शब्दों का प्रयोग शस्त्रों के घाव से भी घातक और भयंकर होता है। शस्त्र का घाव तो कुछ समय के बाद भर जाता है, लेकिन शब्दों द्वारा घायल हुआ मनुष्य का मानस पटल जीवन भर नहीं भर पाता है। शब्दों का प्रभाव बड़ा तीव्र त्वरित और प्रबल होता है। शब्द विष भी हैं और अमृत भी। शब्दों के सांचे में ही मानवीय संबंधों का ताना- बाना निर्मित होता है। माधुर्य एवं सौम्यता से परिपूर्ण शब्दावली में शत्रु को भी मित्र बनाने की क्षमता होती है। शब्द वरदान भी बन जाते हैं और अभिशाप भी। शब्दों से ही मनुष्य का व्यक्तित्व और उसके गुण दोष परिलक्षित होते हैं।