कस्बे में बहुरूपिए को देखते ही जुटी बच्चों की भीड़ खजनी गोरखपुर।। कस्बे में जोकर के वेश में एक बहुरूपिया घूमता मिला। अपने मुंह से लंगूर (काले बंदर) की आवाजें निकालते हुए जैसे ही छलांग लगाता था। बच्चे पीछे हट जाते थे।वह अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए घरों और दुकानों में पहुंच कर लोगों से पैसे मांगता हुआ घूम रहा था। पूछने पर उसने बताया कि उसका नाम राजू है और वह दिल्ली से आया है, साथ ही यह भी बताया कि उसके गुरू किसन बहुरूपिया हैं और उनका यू-ट्यूब चैनल भी इसी नाम से चलता है। देखने पर पता चला कि हजारों की संख्या में लोग इनसे मनोरंजन पा रहे हैं। अपनी कला से स्थानीय लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने और उनसे कुछ रूपए कमाना ही इनका रोजगार है। बंदर, भालू, जोकर, शंकर, अघोरी, राक्षस, अपराधी और रामायण तथा महाभारत काल के पात्रों के रूप बनाना इनका पेशा है। पेट की खातिर या यूं कहें कि रोजी-रोटी कमाने के लिए लोग विभिन्न प्रकार के उपक्रम करते हैं। मेहनत,मजदूरी,व्यापार और नौकरी जैसे विभिन्न माध्यमों से जीविकोपार्जन के उपाय समाज में प्रचलित है। किंतु बहुरूपिया बन कर अपनी कला से रोजी-रोटी कमाने की एक बहुत ही पुरानी प्रथा रही है। पौराणिक काल और राजाओं महाराजाओं के दौर से ही देश में यह एक सदियों पुरानी परंपरा रही है। राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में आज भी बहुरूपिया कलाकारों की जमात मौजूद है। जिसमें एक ही कलाकार द्वारा विभिन्न पात्रों का हूबहू स्वांग रचकर सीमित साधन,पात्रानुकूल वेशभूषा व बोली,विषयगत हाव-भावों का मनोरंजक प्रस्तुतीकरण बहुरुपिया कला को प्रदर्शित करता है। बहुरुपिया कलाकारों का अभिनय इतना स्वाभाविक होता है कि असल और नकल में भेद कर पाना मुश्किल हो जाता है। अमूमन बहुरुपिया कलाकार जो ‘मेकअप’ करते हैं, उसे ‘रंगोरी’ कहा जाता है। इसके लिए ये स्वयं रंगों का निर्माण करते हैं। प्राकृतिक पदार्थों से रंग बनाना इनकी गोपनीय कला है, जिसके बारे में ये ही जानते हैं। कला प्रदर्शन के बाद रंग उतारने के लिए ये एक विशिष्ट प्रकार का ‘रिमूवर’ बनाते हैं, जिसे इनकी भाषा में ‘उतरहट’ कहा जाता है। विशेष बात तो यह है कि साज-सज्जा करने के लिए ये कलाकार आपस में अपनी गोपनीय कला नहीं बताते हैं।