बदायूं के किशोर न्याय बोर्ड ने एक महिला का आपत्तिजनक वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित करने के आरोपित दो किशोरों को सजा न देकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 15-15 दिन की सेवा का दंड देकर न्याय के वास्तविक अर्थ को सामने रखा है। न्याय को संवेदनशील भी होना चाहिए, और बात जब किशोरों की हो तो इस बात पर भी विचार किया जाना जाहिए कहीं उन पर सजा का नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। इस प्रकरण में पुलिस ने चार्जशीट लगा दी थी और सुनवाई के दौरान दोनों किशोरों ने अपने अपराध को स्वीकार किया था। साथ ही यह भी कहा था कि उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि वे कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं, उन्हें गलती सुधारने का अवसर दिया जाए। किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान मजिस्ट्रेट पंकज पांडेय, सदस्य अरविंद गुप्ता, प्रमिला गुप्ता ने किशोरों को दोषी तो माना, लेकिन उन्हें सुधरने का अवसर भी दिया। किशोरावस्था में बच्चे अक्सर ऐसी कई गलतियां कर जाते हैं, जिनकी गंभीरता का उन्हें अहसास नहीं होता। अब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों की सेवा के दौरान उन्हें सामाजिक दायित्व का भी बोध होगा। आज के दौर में किशोरों को सेवाभाव की सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ने की महती आवश्यकता है। न्याय का अर्थ सिर्फ यह नहीं कि आरोपित को सजा ही सुनाई जाए, दोषी व सुधरने का अवसर दिया जाना भी न्याय है। जब इस तरह सामाजिक दायित्वों से ओतप्रोत निर्णय सामने आते हैं तो न्याय वास्तविक अर्थों में प्रकट होता इसी तरह कुछ दिन पहले ही राज्य सूचना आयोग ने भी सूचना के अधिक के तहत जानकारी न उपलब्ध कराने पर एक अभिनव निर्णय सुनाया था। जिसमें कि आरोपित बिजली विभाग के अभियंता दो अनाथालयों में जाकर बच्चों को एक समय का भोजन कराएं जिसका खर्च 25 हजार से अधिक न हो। वस्तुतः दंड का उद्देश्य आरोपित को उसकी गलतियों का अहसास कराना होता है और इस तरह की सजाओं से भी लोगों को सीख दी जा सकती है। कोई यदि अपनी गलती स्वीकार कर रहा हो तो उसे प्रायश्चित का पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए,बशर्ते की उसका अपराध बड़ा ना हो।
