बेटों की चाह में बार-बार अबॉर्शन कराने से महिलाओं की सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है। उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ भी खराब होने लगती है। कई मनोवैज्ञानिको के अनुसार ऐसी महिलाएं लंबे समय के लिए डिप्रेशन, एंजायटी का शिकार हो जाती हैं। खुद को दोषी मानने लगती हैं। कुछ भी गलत होने पर गर्भपात से उसे जोड़कर देखने लगती हैं, जिससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि * -------आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? * -------भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा के आपको क्या सम्बन्ध नज़र आता है ?
जन्म से आठ साल की उम्र तक का समय बच्चों के विकास के लिए बहुत खास है। माता-पिता के रूप में जहाँ हम परवरिश की खूबियाँ सीखते हैं, वहीँ इन खूबियों का इस्तेमाल करके हम अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा दे सकते है। आप अपने बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाने और उन्हें सीखाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते है? इस बारे में 'बचपन मनाओ-बढ़ते जाओ' कार्यक्रम सुन रहे दूसरे साथियों को भी जानकारी दें। अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में दबाएं नंबर 3.
अगर आपको भी गुस्सा आ रहा है, तो उसे शांत करने के है कई तरीके | सुनिए इस कहानी को, और जानिये कि गुस्से को कैसे कर सकते है कम |
भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
आज की कड़ी में हम सुनेंगे डिजिटल पेमेंट से जुड़ी बातें। आप डिजिटल पेमेंट का उपयोग करते हैं या नहीं और आपको ऐप से पैसों का लेन देन करना कैसा लगता है ? हमारे साथ अपने अनुभव और विचार जरूर साझा करें
आपका पैसा आपकी ताकत की आज की कड़ी में हम सुनेंगे यूपीआई ट्रांजैक्शन और डिजिटल बैंकिंग सुरक्षा के बारे में।
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में।
मोबाइल वाणी आपके लिए लेकर आया है रोजगार समाचार। यह नौकरी उन लोगों के लिए है जो बिहार पंचायत राज विभाग द्वारा निकाली गयी लेखपाल – आईटी सहायक के 6,570 पदों पर कार्य करने के लिए इच्छुक है । साथ ही बिहार पंचायती राज विभाग में 4,270 पद पुरुष उम्मीदवारों और 2,300 पद महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किए गए हैं। इन पदों पर वेतनमान 20,000 रुपये प्रतिमाह दिया जाएगा । इन पदों के लिए वैसे उम्मीदवार आवेदन कर सकते है, जिन्होंने किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से 10वीं, 12वीं उत्तीर्ण / स्नातक डिग्री या समकक्ष योग्यता आवेदन करने वाले उम्मीदवार के पास कक्षा 10वीं, 12वीं उत्तीर्ण परीक्षा की अंकसूची ,स्नातक डिग्री ,समकक्ष योग्यता प्रमाण पत्र,आधार कार्ड,सक्षम अधिकारी द्वारा जारी स्थायी जाति / जाति सत्यापन प्रमाण पत्र,राज्य स्तर का मूल निवास प्रमाण पत्र,समेत अन्य आवश्यक दस्तावेजों की जरूरत होगी। इन पदों पर आवेदन करने के लिए आयु सीमा 18 -35 वर्ष रखी गई है , आयु में छूट मानदंडों के अनुसार दिया जाएगा । साथ ही आवेदनकर्ताओं का चयन लिखित परीक्षा ,दस्तावेज़ सत्यापन एवं साक्षात्कार पर आधारित होगा।इन पदों पर आवेदन करने के लिए आवेदन शुल्क बिल्कुल निशुल्क है।यदि आप के पास मांगी गयी सारी योग्यताएं है तो आप अपना आवेदन आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन कर सकते है। अधिक जानकारी के लिए आप इस वेबसाइट पर जा सकते हैं वेबसाइट है। state.bihar.gov.in .याद रखिये आवेदन करने की अंतिम तिथि 14 मई 2024 रखी गयी है। तो साथियों अगर आपको यह जानकारी लाभदायक लगी तो मोबाइल वाणी एप्प पर लाइक बटन दबाये साथ ही फ़ोन पर सुनने वाले श्रोता 5 दबाकर इसे पसंद कर सकते है। नंबर 5 दबाकर यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ बाँट भी सकते हैं।
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा असली डीएपी की पहचान करने के बारे में जानकारी दे रहे है अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें
हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।