किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें
गौनाहा ,भदरवा ,मटेरिया ,नौ माह से तनख्वा नहीं मिला ,रोजगार सेवक कुछ नहीं कर रहे है।
आपका पैसा आपकी ताकत की आज की कड़ी में हम सुनेंगे अपने श्रोताओं की राय
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नमस्कार थरोवत मोबाइल बारी आप सभी का स्वागत है । मैं विमलेश का जी थरोवत मोबाइल बारी हूं जो गवनहा से गवनहा ब्लॉक तक बैठा हूं । सांडी पंचायत में दो साल पहले मनरेगा के तहत मजदूरों द्वारा काम किया जा चुका है , लेकिन उन मजदूरों की मजदूरी का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है । मजदूरों की मजदूरी का भुगतान एक सप्ताह के भीतर करना होता है । आओ , हमारे साथ कुछ मजदूर हैं । चलो उनसे बात करते हैं । हां , घर की तकाना मणिर मिया । हमारी या पंचायत दर्शंडी मजदूर मनरेगा में मजदूरी होगा हाँ कहो दूस साल पहले अच्छा तो वैसे अभी नहीं से मिला नहीं से मिला है अभी हाँ सारा जब कटवा कीना बा कहाँ बा जब का गीला रंग है अच्छा आप तक वदर राख ले बड़े ये मजदूरी अभी नहीं सा लोग देना है ये नहीं सैमी कितना दिन काम के लिए बड़े सर एक दिन की मजदूरी लिखें , इस प्रकार सात दिन एक मजदूरी से काम किया गया है , लेकिन उनकी मजदूरी का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है । इसके लिए मैं मोबाइल फोन के माध्यम से ब्लॉक के मनरेगा पीओ और मुखिया से बात करूंगा ।
कोई मान देह नहीं बिहार की आशा दीदी का
हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार बीस तीन सालों में दुनिया के पांच बड़े व्यापारियों की संपत्ति में दोगुने से ज्यादा का इजाफा हुआ है, जिस समय इन अमीरों की दौलत में इजाफा हो रहा था, ठीक उसी समय पांच मिलियन लोग गरीब से और ज्यादा गरीब हो रहे थे। इससे ज्यादा मजे की बात यह है कि हाल ही में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की बैठक में शीर्ष पांच उद्योगपतियों ने एक नई रणनीति पर चर्चा और गठबंधन किया।
गम्हरिया ,गौनाहा ,मनरेगा मजदूर को नही मिली पाई है मजदूरी ,जॉब कार्ड वार्ड मुखिया का लगा है
गम्हरिया ,गौनाहा ,मनरेगा मजदूर को नही मिली पाई है मजदूरी
दोस्तों, दुनिया भर में काम के घंटे घटाए जाने की मांग बढ़ जा रही है, दूसरी तरफ भारत काम के घंटों को बढ़ाए जाने की सलाह दी जा रही है। भारत में ज्यादातर संस्थान छ दिन काम के आधार पर चलते हैं, जिनमें औसतन 8-9 घंटे काम होता है, उस हिसाब से यहां औसतन पैंतालिस घंटे काम किया जाता है। जबकि दुनिया की बाकी देशों में काम के घंटे कम हैं, युरोपीय देशों में फ्रांस में औसतन 35 घंटे काम किया जाता है, ऑस्ट्रेलिया में 38 घंटे औसतन साढ़े सात घंटे काम किया जाता है, अमेरिका में 40 घंटे, ब्रिटेन में 48 घंटे और सबसे कम नीदरलैंड में 29 घंटे काम किया जाता है। दोस्तों, बढ़े हुए काम घंटों की सलाह देना आखिर किस सोच को बताता है, जबकि कर्मचारियों के काम से बढ़े कंपनी के मुनाफे में उसका हक न के बराबर या फिर बिल्कुल नहीं है? ऐसे में हर बात पर देशहित को लाना और उसके नाम पर ज्यादा काम की सलाह देना कितना वाजिब है? इस मसले पर अपना राय को मोबाईल वाणी पर रिकॉर्ड करें और बताएं कि आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, आप भले ही मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में, इसे रिकॉर्ड करने के लिए दबाएं अपने फोन से तीन नंबर का बटन