मौदहा हमीरपुर। मौदहा विकासखंड का नदी किनारे बसा हुआ अति पिछड़ा गांव किसवाही अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है, जहाँ पर सड़कें, स्वास्थ्य सेवा, व शिक्षा का आज भी आभाव हैं। विकास कार्यों के लिए सरकार द्वारा आने वाली धनराशि को प्रधान व सचिव मिलकर ठिकाने लगा रहे हैं तो वहीं ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए आंशू बहाते नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि मौदहा विकास खंड के किशवाही, परहेटा गढ़ा जैसे दर्जनों गांव नदी किनारे अंतिम छोर पर बसे हुए हैं जहां ना तो अधिकारी की नजर जाती है और ना ही किसी नेता की, जिसके चलते आज भी आजादी के 75 वर्ष गुजर जाने के बाद भी यहां के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।चुनाव के दौरान विकास करने की घूंटी पिलाकर जनप्रतिनिधि भोले भाले ग्रामीणों का वोट लेने के बाद पांच साल मुड़कर नही देखते जिससे यहां के ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। गांव के अंदर के हालात देखें तो यहां की दलदल भरी सड़कों को देखकर दुर्दशा का अंदाजा लगाया जा सकता है जिसमे लोगों का पैदल चलना भी दूभर है, अगर शिक्षा की बात करें तो नन्हे मुन्ने को अपने गांव किशवाही से मुंडेरा गांव शिक्षा प्राप्त करने के लिए नदी में पड़ी टूटी हुई नाव से जान जोखिम में डालकर जाना पड़ता है ग्रामीणों ने बताया कि गांव के बाहर से निकली हुई चंद्रावल नदी पर सैकड़ो बार आला अधिकारियों को व नेताओं को ज्ञापन दिए गए मगर आज तक किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया जिसके चलते बारिश के मौसम में ग्रामीण अपने गांव में ही कैद होकर रह जाते हैं विडंबना तो यह है कि अगर गांव का कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो वह समय से अस्पताल नहीं पहुंच पाता और रास्ते में ही दम तोड़ देता है। गांव के हालात इतने खराब हैं कि यहां की दलदल भरी सड़कों को देखकर इस गांव के बच्चे कुंवारे बैठे हैं और लोग अपनी बेटियों की शादी इस गांव में करने से मना कर देते हैं।अब सवाल यह उठता है कि राज्य व केंद्र सरकार की तमाम विकास कार्य की योजनाओं का आने वाला करोड़ों रुपया आखिर कहां जा रहा है ग्रामीणों ने कहा की सरकार द्वारा विकास कार्यों के लिए आवंटित धन से गांव का तो कोई विकास नहीं हुआ है लेकिन हां विकास के नाम पर वोट मांगने वाले प्रधान जी का विकास जरूर दिखाई दे रहा है। इन सभी समस्याओं के चलते जब ग्राम प्रधान से बात की गई तो उन्होंने नमामि गंगे योजना के ऊपर ठीकरा फोड़ते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया। अगर ग्रामीणों की माने और इसकी निष्पक्षता से जांच की जाए तो इस सरकारी धन के बंदर बांट में शामिल लोगों के चेहरे जरूर उजागर हो जाएंगे जो एक जांच का विषय है।