दैनिक जीवन में हम बहुत सी पाखंड की बाते देखते है। कोइ सिद्ध पुरूष यह दावा करता है कि पुत्र देने की सिद्धियां उस के पास है, तो काई धनवान बनने तो बीमारियां दूर करने का जीवन का संकट हर लेने का दावा करता है। तब लोग उनकी और आकर्षित होते है और हाथ जोड़कर अपनी मनोकामाना पूरी करने की बात करते है। मनोकामनाओं की पूर्ति का जाल फैलाकर धूर्त और पाखंडी लोगों को लुटने का कारोबार शुरू करते है। आज हम बात करेंगे ऐसे धुर्त और पाखंडी लोगों के षडयंत्र की। यह पाखंडी इतने धुर्त होते है कि इनके सामने बड़े बड़े विद्वान भी धोखा खा जाते है। यह पांखडी ग्रुप बना कर काम करता है। इनके ग्रुप में जो डीलडौल हो और किसी महात्मा जैसे दिख सकता हो को सिद्ध पुरूष बना देते है।
अंधविश्वास लोगों के शोषण को बढ़ावा तो देता ही है, साथ में सामाजिक विकास भी बाधित करता है। अंधविश्वास के कारण आयोजित रस्मों, रिवाजों और समारोहों में लोग अपनी उर्जा, समय तथा धन की बर्बादी करते है। यह देश की आर्थिक उत्पादकता कम करने का कार्य करता है। महिलाओं को देवी मानने वाले इस देश में प्रायः महिलाओं केा जादू.-टोना के संदेह पर नंगा घुमाया जाता है, इस से महिलाओं के शोषण को बढ़ावा मिलता है। मानसिक रोगियों को भूत या बुरी आत्माओं के प्रभाव में बता कर उन्हें समुचित उपचार से वंचित रखा जाता है। देश के अलग-अलग राज्यों में अंधविश्वास उन्मूलन के लिए कानून भी बने है। दो दिन पहले हमने 75 वा गणंत़त्र दिवस मनाया है। आज हम बात करेंगे देश में 7 दशक से अधिक समय पूर्ण हो गया लेकिन अंधविश्वास उन्न्मूलन के बने कानून कितने करागर है इस पर कभी चिंतन या मंथन करने की हमनें जरूरत नहीं समझी है।
हमारा जन्म मां के गर्भ में होता है, गर्भ में संपूर्ण शारीरिक विकास की प्रक्रियां में हम गर्भ की नाल से जुड़े होते है, यह हमें सुरक्षित रखता है। क्यों कि तब हम पूर्णतः स्वतंत्र होते है, किसी वस्तू की जिज्ञासा नहीं होती है, न भविष्य की कल्पना, न अतित की चिंता होती है। लेकिन जैसे ही मां की गर्भ से बहार आते तब हमारी नाल काटी जाती है तब हमारा संबंध में मा के गर्भ की बहार की दुनिया से जुड़ता है। जहा जिज्ञासा, भविष्य की कल्पना, अतित की चिंता से लेकर अस्तित्व का विषय जुड़ जाते है। गर्भ में हम सुरक्षित महसूस करते थे, लेकिन जैसी ही गर्भ के बहार नई दुनिया में प्रवेश करते तब स्वंय को असुरक्षित महसूस करते है। मां के गर्भ से निकला शिशु प्रारंभिक अवस्था में सामन्य आवाज में भी भयभीत होता है, आवाज की ध्वनी अधिक हो तो वह रोने लगता है। मां के गर्भ से बहार निकलने के बाद शिशु का ब्रेन सामन्यतः पूर्ण खाली होता है, असुरक्षा की भवाना उसके ब्रेन के अर्धचेतन अवस्था में रिकार्ड होने लगती है। इसी असुरक्षा की भावना से भय की शुरूआत यही से होती है।
भगवे वस्त्रधारी बाबा मेरे दरवाजे पर आया और कहा बच्चा आपका हाथ दिखाए। मुझे हाथ दिखाने में कोई इच्छा नहीं थी मैने उसे चले जाने को। वह खड़ा ही था कि इतने में एक और सज्जन सफेद वस्त्र धारी जो साधु से लगते थे आकर खडा हो गए तथा भगवे वस्त्र वाले से पूछा क्या तुम अंतर ज्ञानी हो और उसने जेब में से हाथ निकाल कर बंद मुट्ठी दिखाई और पूछा बताओ इसमें क्या है भगवे कपड़े वाले ने कुछ गणना करके कहा इस हाथ में भांग है। उस सज्जन ने हाथ खोलकर दिखाया तो उसमें भभूती थी। तब उस सफेद वस्त्रधरी ने मुझे और भगवाधारी बाबा से कहा तुम दोनों अपने मन की कुछ बातें सोच लो और एक दूसरे से कह दो यह कहकर वह कुछ दूर पर जाकर खड़े हो गया। मैं इन सब चीजों में विश्वास नहीं करता था परंतु इस तमाशे में कुछ मजा आने लगा मैंने भगवे वस्त्र वाले से कहा कि मुझे अपनी पत्नी के स्वास्थ्य की चिंता है तथा भगवे वस्त्रधारी ने मुझ से कहा कि मुझे अपनी लड़की की शादी की चिंता है ।
सतगुरू कबीर कहते है अखिल विश्व में प्रकृति और पुरूष अर्थात जड और चेतन दो तत्वों की सत्ता है। इन दोनो के गुण धर्मो से पृथक तीसरे तत्व की अनूभूति किसी को नही होती है। ग्रह हमारी प्रुथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर आकाश में स्थित है और अपनी अपनी धुरी पर स्थित होते हुए निरंतर गतिशील है निज जड़ पिंड ग्रह मुनष्यों पर कुपित तथा टेढे कैसे हो सकते है फिर भी अज्ञान और भ्रम की महामहिमा में इन ग्रह्रों के चक्कर में सामान्य जन ही नहीं तो बडे-बडे विद्वान ज्ञानी, विज्ञानी, महात्मा, पंडित, तथा सिद्ध नामधारी भटक रहे है। आकाश में फैले ग्रह निरे जड़ है उनका मनुष्यों के सुख-दुख से कोई संबंध नहीं है। अतः उनका मनुष्य पर खुश या नाखुश होना सर्वर्था निराधार है। जरा सोचें यह ग्रह गैर हिंदूओं पर यह खुश या नाखुश क्यों नहीं होते हैं। जबकि गैर हिंदू भी इसी धरा पर रहते है।
एक बाबा हमारे घर के सामने आकर एक सिद्ध पुरूष होने का दावा करता है। यह सिद्ध करने के लिए वह एक चमत्कार कर दिखाता है। घर के सदस्य से एक ग्लास या लोटे में पानी मांगता है, फिर उस पर हाथ रख कर कुछ मंत्र उच्चारण करता है और फिर वह आपकों प्रसाद के रूप वह पानी आपके हाथ पर रख कर कहता है इसे ग्रहण करो। आप देखते है इस बाबा ने हमारे द्वारा घर से लाए गए पानी को मीठा कर दिया है। फिर क्या है हम उस बाबा के चरणों में गीर पड़ते है उसे अपने जीवन में चमत्कार करने की बात करते है और फिर यह बाबा आपको अपने मायाजला में फंसा कर आपकों से कुछ राशि या अन्य वस्तुएं मांग कर चलता बनता है। इस तरह के कई उदाहरण गांवों में आने वाले बाबाओं के देखा करते है। कहते है ने चमत्कार को नमस्कार होता है। आज हम बात कर रहे है चमत्कार और उसे पीछे छुपे हुए कारणों की।
हमें स्कूलों में पढ़ाया गया है सौंर मंडल में ग्रह, उपग्रह और तारे किस तरह विद्यामान है। लेकिन ज्योतिष में जो 9 ग्रह रखे जाते है उस में तारे, ग्रह व उपग्रह सभी को एक ही श्रेणी में रखा गया है, यानी ग्रह ही दर्शाया गया है। ज्योतिष सही होगा तो फिर हमें स्कूलों में गलत पढ़ाया गया होगा या फिर स्कूल में सही पढ़ाया गया है तो फिर ज्योतिष गलत है। स्कूलों में वैज्ञानिक तत्थों के आधार सौंर मंडल पढ़ाया गया ऐसे में ज्योतिष में गलत ढंग से ग्रहों का उल्लेख किया गया है। ........ जरा सोचे बीते वर्षों में जिन नए ग्रहों की खोज हुई ज्योतिष में उसे क्यो शामिल नहीं किया गया। ज्योतिष के अनुसार अन्य ग्रह मानव जीवन को प्रभावित कर रहे होंगे तब यह नए ग्रह क्या चुप बैठते होंगे।
भारतीय मानसिकता का अध्ययन बताता है कि ईश्वर व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा व आस्था की जडे़ काफी गहराई तक स्थापित हो चुकी है। शिक्षा के प्रसार व इस के बाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित करने के लिए विवेकवादी, तर्कशील, रेषनालिस्ट जैसे संगठनों द्वारा समाज में अंधविश्वास उन्मूलन के लिए किए जाने वाले जनजागरण अभियान के दौरान यह आरोप भी उठते है कि यह लोग हमारे इश्वर व धर्म का विरोध करते है। अंधविश्वास उन्मूलन यानी श्रद्धा व आस्था का विरोध माना जाता है। इश्वर व धर्म के प्रति यही श्रद्धा व आस्था अंधविश्वास उन्मूलन के अभियान को प्रभावित भी करने लगता है। समाज में अंधविश्वास उन्मूलन के साथ ईश्वर व धर्म की कथित रूप से गढ़ी गई परिभाषा से बहार निकलना कठीन हो जाता है। आज हम बात करेंगे क्या ईश्वर व धर्म अंधविश्वास का मूल कारण है?
हम विज्ञान पर आधारित जीवन जी रहे हैं। हमारे जीवन को विज्ञान ने सरल बना दिया है। विज्ञान के बगैर दैनिक जीवन की कल्पना करना निरर्थक है। दैनिक जीवन में हम विज्ञान के अनेक उपकरणों का उपयोग करते हैं। जीवन में विज्ञान का महत्व समझते हुए ही प्राथमिक स्तर से ही विज्ञान की शिक्षा दी जा रही है। लेकिन जीवन से हम विज्ञान को जोड़ पाने में असमर्थ रहे हैं । प्रकृति में घटीत होने वाली घटनाओं को समय और परिस्थिति नुसार उसे चमत्कार मान लिया जाता है लेकिन आज विज्ञान के बदौलत हम जान चुके है कि चमत्कार जैसा कुछ नहीं है।
जितनी भी आरंभीक संस्कृतियां है उन सभी में देवता के रूप में सूर्य को प्रमुख स्थान प्राप्त है। दरअसल सूर्य से संपूर्ण मानवजाति लाभाविंत होती है। सूर्य के दो मूलभूत गुण है उर्जा व प्रकाश। उर्जा से जीवन चलता है और प्रकाश अंधकार को चीरकर जीवन को आगे बढ़ाता है। आकाश में सूर्य के आगमन के साथ ही आदिम मनुष्य अपने आसपास को दखने में समझने में समक्षम हो जाता था। इस लिए ऋग्वेद की सबसे अधिक ऋचाएं उषा यानी भोर का समय को समर्पित है। हम बात कर रहे है अंतर्मन की चेतना का प्रकाश पर्व दीपावली हमारे यहां दीपावली के अवसर पर तेल के जलते दीपकों की पंक्तियों से घर को जगमग करने की पंरपरा मूलतः उर्जा यानी जीवन एवं प्रकाश यानी ज्ञान के प्रति उसी आदिम आवश्यकता की स्मृति से आई है। हालांकि इस परंपरा को आमतौर पर भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद लौटने पर अध्योयावासियों द्वारा उनका स्वागत किए जाने तथा उल्लास व्यक्त किए जाने से जोड़ा जाता है।