"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री अशोक झा ऑर्गेनिक खेती या प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी दे रहें हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

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दोस्तों , सरकार कानून में संसोधन कर रही है , नए-नए बिल ला रही है। कहीं सड़को के नाम बदले जा रहे है, तो कहीं पर योजनाओं के नाम बदले जा रहे है। चापलूसों ने भी अपना नाम बदल कर वक्ता रख लिया है और कान में इयरफोन लगा कर अपने आप को नेता जी से ऊपर समझने लगे है। तो जब पूरा देश ही नाम बदलने के चक्कर के लगा हुआ है , तो हमारी देश की जनता जिसे हम नागरिक कहते है , उन्होंने भी महँगाई का नाम बदल कर उसका तोड़ निकाल लिया है। अब लोग महँगाई से लड़ने के लिए किलो में नहीं बल्कि पाव में खरीददारी कर रहे है। एक ज़माना था , जब लोग कहते थे कि एक सेब रोज़ खाइए और डॉक्टर को दूर भगाइए। आज लोग सेब को देख कर ही दूर भाग रहे है। दाल, तेल, मसालों और सब्ज़ियों के बाद अब आम आदमी फल का केवल नाम ही सुन पा रहा है। आने वाले वक़्त में ये खतरा है कि लोग आश्चर्य से ये न बताये कि आज मैंने अंगूर देखा था , बिल्कुल हरा हरा गोल गोल। दोस्तों, आप हमें बताइए कि इस बढ़ती महँगाई में आपका गुज़ारा कैसे हो रहा है ? क्या आप मौसमी फल खा पा रहे है ? बढ़ती महँगाई ने आपके घर और रसोई को किस कदर प्रभावित किया है। अपनी बात, राय विचार और अनुभव बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन साथ ही मोबाइल वाणी ऐप में रिकॉर्ड करने के लिए दबाएँ ऐड का बटन। दोस्तों, समाज के हर मसले पर हमें बोलना होगा। क्योंकि हमारा मानना है कि बोलेंगे तो बदलेगा

चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं और इनका महत्व तभी है, जब वे निष्पक्ष तरीके से हों और इसमें शामिल होने वाले हर दल, हर व्यक्ति को समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं, जिससे किसी को यह न लगे की उसके साथ भेदभाव किया गया है। चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए भारत में अलग से एक संस्था बनाई गई है, जिसे चुनाव आयोग के नाम से जाना जाता है। आजादी के बाद से अब तक इसे एक निष्पक्ष इकाई के तौर पर ही माना जाता रहा है। एक समय था जब, पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन आयोग की ईमानदारी का दूसरा नाम बन गये थे। लेकिन अब उसकी निष्पक्षता को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। चयन प्रक्रिया में बदलाव के लिए पेश किया गया विधेयक कानून बनता है तो सोचिए कि देश में न्यायपूर्ण और स्वतंत्र चुनाव करवाना संभव हो पाएगा? चुनाव आयुक्तों के चयन की प्रक्रिया को बदलकर सत्तारूढ़ दल चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं? इसके अलावा ऐसा करने के अलावा और क्या मंशा हो सकती है? इस बारे में ताज़ा जानकारी के लिए सुनें हमारा कार्यक्रम, 'पक्ष और विपक्ष'। और हाँ, कार्यक्रम के अंत में अपनी राय रिकॉर्ड करना ना भूलें। अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए दबाएं नंबर 3 जरूर दबाएं.

जलवायु की पुकार कार्यक्रम के अंतर्गत इस अंतिम प्रोमों में हम जानेंगे कि हमने जलवायु से सम्बंधित अनेक बातें की हैं और जानकारियों पर विचार भी किया है

कच्चे धागों से बनी पक्की डोर है राखी, प्यार और मीठी शरारतों की होड़ है राखी। भाई की लंबी उम्र की दुआ है राखी, बहन के स्नेह का पवित्र प्रतीक है राखी। कलाई पर रेशम का धागा है, बहन ने बड़े प्यार से बांधा है, बहन को भाई से रक्षा का वादा है। दोस्तों ,सावन पूर्णिमा के दिन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन मनाया जाता है,रक्षाबंधन का त्योहार भाई और बहन के लिए बेहद ही खास दिन होता है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर भारतीय संस्कृति की पहचान कायम करती है, तो भाई बहन को रक्षा करने का वचन देता है। श्रोताओ मोबाइल वाणी परिवार की और से आप सभी को राखी के त्यौहार ढेर सारी शुभकामनाएं !

भारतीय संविधान में भारत को ‘राज्यों के संघ’ के रूप में संबोधित किया गया है। इसके विपरीत संविधान में कहीं भी महासंघ या फेडरेशन (फेडरेशन ) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। संघवाद सत्ता का वह स्वरूप है जहां सत्ता एक से ज्यादा स्तरों पर बटी होती है। भारत में यही व्यवस्था है, और इसी के चलते यहां सत्ता का बंटवारा केंद्र और राज्य के स्तर पर किया गया है। सहकारी संघवाद में केंद्र व राज्य एक-दूसरे के संबंधों में एक-दूसरे के सहयोग से अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं। सहकारी संघवाद की इस अवधारणा में यह स्पष्ट किया जाता है कि केंद्र और राज्य में से कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है।

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री अशोक झा जीवामृत और घनामृत खाद बनाने के बारे में जानकारी दे रहें हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.

अभी हाल में ही सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय, भारत सरकार ने जुलाई महीने का नया आकंड़ा ज़ारी किया है। इस आंकड़े के अनुसार , सब्जियों और अन्य खाने का सामान महंगा होने से खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई है , जो कि पिछले 15 महीनो में सबसे ज्यादा है। मतलब कि जुलाई महीने में पिछले डेढ़ साल की सबसे ज्यादा महँगाई थी। लेकिन क्या कभी आपने किसी नेता का बढ़ती महँगाई पर बयान सुना। पहले टमाटर महँगा था तो उसे छोड़ने के लिए बोला गया। अब कुछ दिन में आटा और दाल खाने के लिए भी मना किया जाएगा। उसके बाद हम लोग हवा पीकर न्यू इंडिया को बनाने में अपना योगदान देंगे। कौन जाने ...? बाकि लाल किले की प्राचीर से आपने देश के प्रधानमंत्री का भाषण सुन ही लिया होगा। सरकार ने तो पहले से ही कह दिया था कि जो सत्तर साल में नहीं हुआ, उसे ही कर के दिखाएंगे और एकदम नया इंडिया बनाएंगे। तो वो तो बन ही रहा है। एक दम से रिन जैसा सफ़ेद। बाकि आप बताईये दोस्तों, आपके क्षेत्र में महंगाई के क्या हालात है ? इस बढ़ती हुयी महँगाई ने आपके और आपके परिवार में खान पान को किस तरह से प्रभावित किया है ? आने वाले वक़्त में आप किन-किन मुद्दों पर बात करना चाहते है ? और आपको राजीव की डायरी कैसी लग रही है। अपनी बात बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन और बताएं अपने विचार।

राजनीति तय करती है कि समाज की दशा और दिशा क्या होगी, राजनीति यह भी तय करती है कि देश का भविष्य क्या होगा? इसे समाज का अगुआ माना जाता है। इसलिए राजनीति कभी हल्के उद्देश्यों के साथ नहीं की जाती, और यह देश के सबसे बड़े पद पर बैठे लोगों से जुड़ी हो तो उनसे और अतिरिक्त गंभीरता और सतर्कता की उम्मीद की जाती है। राजनीति और देश के भविष्य की गंभीरता को महान समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया बेहतर ढंग से समझाते हुए कहते हैं कि “जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।” लोहिया जब वे यह बात कह रहे थे उस समय देश में नेहरू जैसा महान व्यक्ति देश का नेतृत्व कर रहा था।