वाराणसी में सर्दी में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी तिब्बत और मानसरोवर से काशी आते हैं। इस दौरान सैलानियों से इनकी निकटता भी होती है। इनके प्रति प्यार प्रदर्शित करने के लिए सैलानी इन्हें बेसन और मटर के सेव खिलाते हैं जो ये बड़े चाव से खाते हैं। सैलानियों का प्यार वापसी की यात्रा में हेडेड गल के लिए काल बन जाता है। सेव खाने से इनके शरीर में फैट की मात्रा अधिक हो जाती है जो इनकी मौत का कारण बनती है। 30 फीसदी अत्यधिक फैट के कारण वापसी की उड़ान के दौरान बीच रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। पक्षी वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा बर्ड रिंगिंग तकनीक के माध्यम से किया है। वापसी में हेडेड गल की मौत का सिलसिला विगत पांच-सात वर्षों सेबढ़ गया है। हेडेड गल प्राकृतिक खुराक और प्रजनन के अनुकूल वातावरण की तलाश में यहां आते हैं। पक्षी विज्ञानियों ने वर्ल्ड बर्ड रिंगिंग एसोसिएशन की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि लौटने वाले ब्लैक हेडेड गल और व्हाइट हेडेड गल की संख्या में 30 फीसदी तक की कमी हो रही है। डाटा के परीक्षण से पता चला कि उनमें फैट की मात्रा आश्चर्यजनकढंग से बहुत अधिक थी। पक्षी जब वापसी की उड़ान आरंभ करते हैं तो बीच में विश्राम नहीं करते। अधिक थकने के बाद भी वे उड़ते रहते है और उनकी मौत हो जाती हैबर्ड रिंगिंग या बर्ड बैंडिंग पक्षी की व्यक्तिगत पहचान और अध्ययन के लिए लगाए. जाते हैं। उनके पैर अथवा पंख में धातु या प्लास्टिक की अंगूठीनुमा टैगलगाया जाता है जो चिप के माध्यम से कंम्प्यूटर से जुड़ा होता है। टैग पर यूनिक नंबर और संपर्क का पता अंकित होता है। पहली बर्ड बैंडिंग योजना जर्मनी में जोहन्स थिएनेमैन ने 1903 में शुरू हुई थी। 1908 में हंगरी के आर्थर लैंडस्बोरो थॉमस, 1909 में ब्रिटेन के हैरी वाइटबी ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए।