सतगुरू कबीर कहते है अखिल विश्व में प्रकृति और पुरूष अर्थात जड और चेतन दो तत्वों की सत्ता है। इन दोनो के गुण धर्मो से पृथक तीसरे तत्व की अनूभूति किसी को नही होती है। ग्रह हमारी प्रुथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर आकाश में स्थित है और अपनी अपनी धुरी पर स्थित होते हुए निरंतर गतिशील है निज जड़ पिंड ग्रह मुनष्यों पर कुपित तथा टेढे कैसे हो सकते है फिर भी अज्ञान और भ्रम की महामहिमा में इन ग्रह्रों के चक्कर में सामान्य जन ही नहीं तो बडे-बडे विद्वान ज्ञानी, विज्ञानी, महात्मा, पंडित, तथा सिद्ध नामधारी भटक रहे है। आकाश में फैले ग्रह निरे जड़ है उनका मनुष्यों के सुख-दुख से कोई संबंध नहीं है। अतः उनका मनुष्य पर खुश या नाखुश होना सर्वर्था निराधार है। जरा सोचें यह ग्रह गैर हिंदूओं पर यह खुश या नाखुश क्यों नहीं होते हैं। जबकि गैर हिंदू भी इसी धरा पर रहते है।

अकसर किसी प्रतिष्ठान या घर के दरवाजे पर हम देखा करते हैं कि नीबू मिरची बंधी हुई है तो कही आपको काले कपड़े की बनी छोटी सी गुड़िया टंगी हुई मिलेगी। बगैर किसी वैज्ञानिक कारण के इस तरह के टोटके हम करते आते हैं। कई बार यह टोटके इस लिए भी हम करने लगते है कि इसे करने से हमारे उपर आने वाले संकट टलने की बात कहीं जाती है या, कोई जादू-टोना नहीं कर पाएगा। लेकिन हम इस बात का विश्लेषण नहीं करते है कि वाकई में इस में कोई वास्तविकता होगी तो, फिर का इस का उपयोग हमनें अपने देश की सीमाओं पर करना चाहिए जहा हमेशा दुश्मन देशों द्वारा आक्रमण करने का भय बना रहता हैं। यह सब हमारे मन का वहम है, डर है। जीवन में कर्मयोगी बन कर हमें हमारे भीतर के डर को भगाने की आवश्यकता है। आज हम बात करेंगे उन टोटको या अंधविश्वास से जुड़े अन्य विषयों पर जो दैनिक जीवन में हमारे साथ जुडी हुई है।

एक बाबा हमारे घर के सामने आकर एक सिद्ध पुरूष होने का दावा करता है। यह सिद्ध करने के लिए वह एक चमत्कार कर दिखाता है। घर के सदस्य से एक ग्लास या लोटे में पानी मांगता है, फिर उस पर हाथ रख कर कुछ मंत्र उच्चारण करता है और फिर वह आपकों प्रसाद के रूप वह पानी आपके हाथ पर रख कर कहता है इसे ग्रहण करो। आप देखते है इस बाबा ने हमारे द्वारा घर से लाए गए पानी को मीठा कर दिया है। फिर क्या है हम उस बाबा के चरणों में गीर पड़ते है उसे अपने जीवन में चमत्कार करने की बात करते है और फिर यह बाबा आपको अपने मायाजला में फंसा कर आपकों से कुछ राशि या अन्य वस्तुएं मांग कर चलता बनता है। इस तरह के कई उदाहरण गांवों में आने वाले बाबाओं के देखा करते है। कहते है ने चमत्कार को नमस्कार होता है। आज हम बात कर रहे है चमत्कार और उसे पीछे छुपे हुए कारणों की।

हमें स्कूलों में पढ़ाया गया है सौंर मंडल में ग्रह, उपग्रह और तारे किस तरह विद्यामान है। लेकिन ज्योतिष में जो 9 ग्रह रखे जाते है उस में तारे, ग्रह व उपग्रह सभी को एक ही श्रेणी में रखा गया है, यानी ग्रह ही दर्शाया गया है। ज्योतिष सही होगा तो फिर हमें स्कूलों में गलत पढ़ाया गया होगा या फिर स्कूल में सही पढ़ाया गया है तो फिर ज्योतिष गलत है। स्कूलों में वैज्ञानिक तत्थों के आधार सौंर मंडल पढ़ाया गया ऐसे में ज्योतिष में गलत ढंग से ग्रहों का उल्लेख किया गया है। ........ जरा सोचे बीते वर्षों में जिन नए ग्रहों की खोज हुई ज्योतिष में उसे क्यो शामिल नहीं किया गया। ज्योतिष के अनुसार अन्य ग्रह मानव जीवन को प्रभावित कर रहे होंगे तब यह नए ग्रह क्या चुप बैठते होंगे।

भारतीय मानसिकता का अध्ययन बताता है कि ईश्वर व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा व आस्था की जडे़ काफी गहराई तक स्थापित हो चुकी है। शिक्षा के प्रसार व इस के बाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित करने के लिए विवेकवादी, तर्कशील, रेषनालिस्ट जैसे संगठनों द्वारा समाज में अंधविश्वास उन्मूलन के लिए किए जाने वाले जनजागरण अभियान के दौरान यह आरोप भी उठते है कि यह लोग हमारे इश्वर व धर्म का विरोध करते है। अंधविश्वास उन्मूलन यानी श्रद्धा व आस्था का विरोध माना जाता है। इश्वर व धर्म के प्रति यही श्रद्धा व आस्था अंधविश्वास उन्मूलन के अभियान को प्रभावित भी करने लगता है। समाज में अंधविश्वास उन्मूलन के साथ ईश्वर व धर्म की कथित रूप से गढ़ी गई परिभाषा से बहार निकलना कठीन हो जाता है। आज हम बात करेंगे क्या ईश्वर व धर्म अंधविश्वास का मूल कारण है?

हम विज्ञान पर आधारित जीवन जी रहे हैं। हमारे जीवन को विज्ञान ने सरल बना दिया है। विज्ञान के बगैर दैनिक जीवन की कल्पना करना निरर्थक है। दैनिक जीवन में हम विज्ञान के अनेक उपकरणों का उपयोग करते हैं। जीवन में विज्ञान का महत्व समझते हुए ही प्राथमिक स्तर से ही विज्ञान की शिक्षा दी जा रही है। लेकिन जीवन से हम विज्ञान को जोड़ पाने में असमर्थ रहे हैं । प्रकृति में घटीत होने वाली घटनाओं को समय और परिस्थिति नुसार उसे चमत्कार मान लिया जाता है लेकिन आज विज्ञान के बदौलत हम जान चुके है कि चमत्कार जैसा कुछ नहीं है।

भारतीय संविधान को 74 वर्ष पूर्व 26 नवंबर 1949 को लिख कर पूर्ण हुआ था। और 26 जनवरी 1950 को देश प्रजातांत्रिक घोषित हुआ था। संविधान के 465 अनुच्छेद में एक अनुच्छेद 51 (ए) एच भी है। इस अनुच्छेद के अनुसार वैज्ञानिक सोच, चेतना का विकास, मानवतावाद, किस भी घटीत धटना के पीछें की सत्यता की जांच व सुधार की भावना विकसित करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा। और इस के संचालन के लिए राज्य कटिबध्द होगे। लेकिन ऐसा हमें कही दिखाई नहीं देता है। वैज्ञानिक सोच व मानवतावादी आम जनमानस के लिए यह एक मात्र शब्द है। जो अपनी यथार्थ के मुल विषय को छू भी नहीं पाता है।

महात्मा बुद्ध, आदिगुरु शंकराचार्य, गुरु रामानंद और स्वामी विवेकानंद आदि ने जहां दुनिया में शांति, त्याग और अध्यात्म का परचम लहराया वहीं पिछले कुछ दशकों से उभरने वाले किस्म-किस्म के बाबाओं ने राष्ट्र के मुख पर कालिख पोतने का काम किया है। अपनी अनुयायी स्त्रियों के शारीरिक शोषणए हत्या.अपहरण से लेकर अन्य जघन्य अपराध करने वाले बाबाओं का प्रभाव इस कदर बढ़ता जा रहा है कि आज जनता को तो छोड़िये, राजनेता, अभिनेताए अधिकारी, और बुद्धिजीवी वर्ग भी इनसे घबराने लगा है। आखिर इन बाबाओं के महाजाल का समाजशास्त्र क्या है? इनके पीछे जनता के भागने का अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान क्या है?एक सवाल यह भी कि आखिर ढोंगी बाबाओं से छुटकारा पाने के क्या उपाय हैं?

जितनी भी आरंभीक संस्कृतियां है उन सभी में देवता के रूप में सूर्य को प्रमुख स्थान प्राप्त है। दरअसल सूर्य से संपूर्ण मानवजाति लाभाविंत होती है। सूर्य के दो मूलभूत गुण है उर्जा व प्रकाश। उर्जा से जीवन चलता है और प्रकाश अंधकार को चीरकर जीवन को आगे बढ़ाता है। आकाश में सूर्य के आगमन के साथ ही आदिम मनुष्य अपने आसपास को दखने में समझने में समक्षम हो जाता था। इस लिए ऋग्वेद की सबसे अधिक ऋचाएं उषा यानी भोर का समय को समर्पित है। हम बात कर रहे है अंतर्मन की चेतना का प्रकाश पर्व दीपावली हमारे यहां दीपावली के अवसर पर तेल के जलते दीपकों की पंक्तियों से घर को जगमग करने की पंरपरा मूलतः उर्जा यानी जीवन एवं प्रकाश यानी ज्ञान के प्रति उसी आदिम आवश्यकता की स्मृति से आई है। हालांकि इस परंपरा को आमतौर पर भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद लौटने पर अध्योयावासियों द्वारा उनका स्वागत किए जाने तथा उल्लास व्यक्त किए जाने से जोड़ा जाता है।

भारत में जादू-टोना हमारी अंधविश्वासी मान्यताओं और लोक कथाओं का एक हिस्सा है। माना जाता है कि जादू-टोना विशेष शक्तियों द्वारा संचालित किया जाता है। जिसके माध्यम से व्यक्ति या वस्तुओं को प्रभावित किया जा सकता है। उन्हें नुकसान पहुंचाया जा सकता है। जब कि यह एक प्रकार का अंधविश्वास है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। जादू-टोना की सहायता से किसी को भी बीमार किया जा सकता है या उसे मारा जा सकता है। हमारे समाज में यह एक आम भ्रांति है। इनसे बचाव के लिए किई निरर्थक टोटके भी बताए जाते है। जिसमें घोडे की नाल, पीले कपड़े में चावल बांधना आदि शामिल है। कई बीमारियां जैसे लिव्हर की बीमारियां, पेट का अल्सर, आदि असाधरण बीमारियां आसानी से समझ में नहीं आती है। और कुछ दिनों बाद तकलीफ यानी दर्द देते रहते है। कई बार इसे किसी का जादू-टोना समझकर अज्ञानवश निर्दोष लोगों को परेशान किया जाता है।