नियम क्या हैं, ये क्यों बनाए जाते हैं और इनसे क्या बदलता है... इन तीनों सवालों से अक्सर जनता परेशान रहती है, जनता की परेशानी उसे मिलने वाले नित नए सबक के बावजूद भी बनी रहती है। परेशान जनता यह मानना ही नहीं चाहती है नियम उसकी भलाई के लिए ही होते हैं।हमारे देश में नियमों की तब तक ही अहमियत होती है जब तक वे हमारी मौज मस्ती में बाधा नहीं बनते, एक बार अगर ये नियम हमारी मौज मस्ती में बाधा बनने लगते हैं तो हम बिना इनके बारे में सोचे और भविष्य की परवाह किए इनसे बचने की तरकीबें निकालने लगते हैं। दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, क्या आपको भी लगता है कि सरकारों को इस पर पूर्णत प्रतिबंध लगा देना चाहिए, या फिर ऐसे ही थोड़े से पैसे के लालच में उन व्यापारियों को खुली छूट होनी चाहिए जो इसका व्यापार करने में लगे हैं।

बाईस जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन हो रहा है, उद्घाटन से पहले हर कोई राम नाम की लूट में लगा हुआ है। इस लूट में सबका हिस्सा है, लड़ाई उसके बाद भी है क्योंकि इसमें शामिल पार्टियों को लग रहा है कि उन्हें इस लूट का कम हिस्सा मिल रहा है। इस लड़ाई के सबसे मजबूत खिलाड़ी हैं धर्म और राजनीति जो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। चारों पीठों के शंकराचार्यों में से एक का कहना है कि राम मंदिर का उद्घाटन अगर प्रधानमंत्री उद्घाटन करेंगे तो हम वहां ताली बजाएंगे क्या? प्रधानमंत्री जिनके प्रयासों से यह सब हो रहा है, उनके समर्थक कह रहे हैं कि उन्होंने तो आज से तीस साल पहले कसम खाई थी कि जब तक राम लला को भव्य मंदिर में नहीं बिठा देंगे वह अयोध्या नहीं आएंगे। अब वे राम जी को लेकर आ रहे हैं।

हिटलर जो सोच और करना चाह रहा था उसे तानाशाही कहते हैं, यह सोच किसी भी व्यक्ति में तब आती है जब उसके अनुयाई मानने वाले लोग आंख मूंदकर उसके सही और गलत हर फैसले को मानने लगते हैं। ऐसा करने के लिए आवश्यक होता है कि अनुयाइयों को इसकी आदत लगा दी जाए, जैसा कि इन दिनों भारत में हो रहा है।

एक सामान्य समझ है कि कानून और व्यवस्था जनता की भलाई के लिए बनाई जाती है और उम्मीद की जाती है कि जनता उनका पालन करेगी, और इनको तोड़ने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। इसके उलट भारतीय न्याय संहिता में किये गये हालिया बदलाव जनता के विरोध में राज्य और पुलिस को ज्यादा अधिकार देते हैं, जिससे आभाष होता है कि सरकार की नजर में हर मसले पर दोषी और पुलिस और कानून पूरी तरह से सही हैं।

जनभावनाओं को खुश करने से इतर सरकार के क्या काम हैं? संविधान की भावना के अनुसार सरकार का काम है कि देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करे, जिससे देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़े। राम मंदिर बनने पर शायद ही किसी को कोई आपत्ति हो, पर इस बात पर आपत्ति बनती है कि इसकी कीमत क्या है? देश की बीस प्रतिशत आबादी को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर या फिर विज्ञान के सहारे आगे बढ़ रहे देश को पीछे की तरफ ले जाकर। राम मंदिर जनभावनाओं का मसला है तो फिर प्रधानमंत्री और सरकार का क्या काम है? दोस्तों, आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, राम मंदिर के निर्माण में संविधानिक पदों पर बैठे लोगों का क्या काम? इस मसले पर आप जो भी सोचते हैं उसको रिकॉर्ड करें ग्रामवाणी पर अपने फोन से तीन नंबर का बंटन दबाकर या फिर मोबाईलवाणी के एप पर जाकर।

यह भावनाओं के आहत होने का दौर है पता नहीं चलता कब किसकी कौन सी भावना आहत हो जाए। इन खिलाड़ियों के ऐसा करने के पीछे का कारण एक बाहुबली नेता के सहयोगी का एक खेल संघ के अध्यक्ष पद पर चुना जाना। इससे पहले वह नेता ही बीते दशक भर से इस संघ को चला रहा था, उस पर नाबालिगों के यौन शौषण के आरोप हैं, पुलिस इसकी जांच कर रही है लेकिन इस जांच के क्या नतीजे होंगे उसको क्या सजा मिलेगी यह सब सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है । *------दोस्तों आपको क्या लगता है क्या हमारे देश के पहलवान जो यौन शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं वे अपनी जगह पर ठीक हैं या उनमें कुछ है जो उन्हें गलत साबित करता है, उन्हें किसी के हाथ का खिलौना बनाता है। हो सकता है कि आप इन दोनों में से किसी एक विचार से सहमत हों। वह विचार चाहे जो भी हो उसे कहिए, बोलिए, हमें बताइए, क्योंकि एक महान लोकतंत्र के लिए लोगों का बोलना ज़रूरी है

भारतीय संसद के इतिहास में न विपक्ष का हंगामा नया है और न उनका सदन से निष्कासन, हाल के सालों में इस तरह के निलंबन की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं, इसमें भी निलंबन उनका होता है जो सदन में अपनी बात पुरजोर तरीके से रखकर सरकार का विरोध करते हैं। लोकतंत्र और संसद जो सहमति और असहमति का मिला जुला रूप हैं, उसमें इस तरह की कार्रवाईयों का क्या औचित्य है?

इसके बरक्स एक और सवल उठता है कि क्या सरकारें चाहती हैं कि वह लोगों का खाने-पीने और पहनने सहित सामान्य जीवन के तौर तरीकों को भी तय करें? या फिर इस व्यवसाय को एक धार्मिक समुदाय को निशाना बनाने के लिए इस तरह के आदेश जारी किये जा रहे हैं। सरकार ने इस आदेश को जारी करते हुए इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि उसके एक आदेश से कितने लोगों की रोजी रोटी पर असर पड़ेगा

बीते दिनों महिला आरक्षण का बहुत शोर था, इस शोर के बीच यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए की अपने को देश की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाले दल के आधे से ज्यादा भू-भाग पर शासन होने के बाद भी एक महिला मुख्यमंत्री नहीं है। इन सभी नामों के बीच ममता बनर्जी इकलौती महिला हैं जो अभी तक राजनीति में जुटी हुई हैं। वसुंधरा के अवसान के साथ ही महिला नेताओं की उस पीढ़ी का भी अवसान हो गया जिसने पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय तक महिलाओं के हक हुकूक की बात को आगे बढ़ाया। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जबकि देश में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की बात की जा रही है। एक तरफ महिला नेताओं को ठिकाने लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ नया नेतृत्व भी पैदा नहीं किया जा रहा है।

“यह देश संविधान से चलता है’, यह एक लाइन जो हम हर दूसरे दिन किसी न किसी के मुंह से सुनते ही रहते हैं। सविंधान पर इतनी आस्था के बाद भी देश में संविधानिक मूल्यों की भावनाओं का अभाव है। संविधान के प्रति पैदा हुए इस "अभाव" के भाव के लिए वही लोग जिम्मेदार हैं, जो हर एक बात पर कहते हैं कि यह देश संविधान से चलता है।