काशीपुर में म्यूजिक पार्ट्स बनाने वाली एक फैक्ट्री बंद होने के चलते कई श्रमिकों के आगे रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. श्रमिक वेतन सहित अन्य देयकों के लिए श्रम विभाग के दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं लेकिन मायूस होकर लौट रहे. 2009 में बाजपुर रोड स्थित आलू फार्म के पास म्यूजिक पार्ट्स बनाने वाली एक फैक्ट्री लगी थी. इस फैक्ट्री में काशीपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, पौड़ी के 50 से अधिक श्रमिक 6 से 12 हजार के वेतन पर कार्यरत हैं. सोमवार की सुबह श्रमिक ड्यूटी पहुंचे तब गेट पर मौजूद कर्मचारियों ने बताया कि फैक्ट्री की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. जिसे आगे चलाना संभव नहीं है और फैक्ट्री को बंद कर दिया गया है. कर्मचारियों ने श्रमिकों की फैक्ट्री मालिक से फोन पर बात कराई. उन्होंने फोन पर श्रमिकों को कहा कि जिसको काम करना है वह दिल्ली आकर उनकी फैक्ट्री में कर सकता है और जिसे नहीं करना वह अपना इस्तीफा लिखकर दे दें. अब श्रमिक अपने वेतन और नौकरी के लिए परेशान हैं. क्या आपके क्षेत्र में भी श्रमिकों के साथ ऐसा छलावा हो रहा है? यदि हां, तो मोबाइल वाणी के जरिए अपनी आवाज बुलंद करें.
उत्तराखंड में पहले ही मजदूरों के लिए काम की कमी है और उनका पलायन जारी है, इस बीच जो कुछ काम मनरेगा के तहत होता है, उसमें भी उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिल रहा है. गौरतलब है कि भिलंगना ब्लाक में मनरेगा के कार्यों का करीब ढाई करोड़ का भुगतान लंबे समय बाद भी नहीं हुआ है. मनरेगा के कार्यों का भुगतान न होने के कारण श्रमिकों के सामने आर्थिक संकट बना हुआ है, लेकिन केंद्र सरकार श्रमिकों के भुगतान हेतु बजट नही दे रही है. जिससे श्रमिकों में रोष है. बीते कुछ सालों में मनरेगा के जॉब कार्डधारकों ने अपने-अपने गांव में आजीविका संवर्द्धन, सिंचाई गूल, नर्सरी, औषधि, भूमि सुधार, सुरक्षा दीवार, बाढ़ नियंत्रण, गोशाला आदि कार्यों में काम किया है, लेकिन भुगतान के लिए वे ठेकेदारों से लेकर अधिकारियों के तक के चक्कर काट रहे हैं. पूरे विकास खंड में मनरेगा योजना के तहत श्रमिकों की ढाई करोड़ की देनदारी बाकी है. आपके क्षेत्र में मनरेगा के कार्यों की क्या स्थिति है? क्या वहां मजदूरों को समय पर वेतन दिया गया है? वे अपने क्षेत्र में किस तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं? हमारे साथ इस विषय पर साझा करें अपनी बात.
मुरादाबाद मंडल के पंजीकृत 9429 निर्माण श्रमिकों को प्रदेश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के तहत 9 करोड़ 87 लाख 77 हजार रुपये की धनराशि की स्वीकृति के प्रमाण पत्र प्रदान किए गए. इतना ही नहीं श्रमिकों के पंजीकरण शुल्क में भी कमी कर दी है. पहले 50 रुपये श्रमिकों को पंजीकरण कराने के लिए देने होते थे लेकिन अब 20 रुपये जमा करने पर ही पंजीकरण किया जा रहा है. इसके अलावा शिशु हित लाभ योजना में 3123 श्रमिकों को लाभ दिया गया है. इसी तरह 2358 को चिकित्सा सुविधा, श्रमिक, कन्या विवाह योजना के अंतर्गत 477, मृत्यु एवं विकलांग सहायता योजना के तहत 29 और अंत्येष्टि सहायता योजना के तहत 29 श्रमिक को अनुदान राशि के प्रमाणपत्र दिए गए थे.
पश्चिम बंगाल के चाय बागान वाले क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दा ‘चाय के बंद पड़े बगान’ और ‘श्रमिकों का न्यूनतम वेतन तय नहीं होना’ है. उत्तर बंगाल में चाय बगान वाले क्षेत्र दार्जिलिंग, तराई और दोआर्स हैं. यहां के करीब 300 बागानों में ऐसे तीन लाख श्रमिक काम करते हैं जो समय-समय पर बेरोजगार हो जाते हैं. तराई और दोआर्स के क्षेत्र में पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दार्जिलिंग और कूचबिहार जिले और असम का कुछ हिस्सा शामिल है. गौरतलब है कि कूचबिहार और अलीपुरद्वार में 11 अप्रैल को मतदान होगा जबकि जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग और राजगंज में 18 अप्रैल को चुनाव होंगे. विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से जुड़ी ट्रेड यूनियनों का कहना है कि वे लोग चाय बागानों में न्यूनतम वेतन लागू करने की मांग लंबे समय से करते आए हैं लेकिन यह मुद्दा सुलझा नहीं है. आपके क्षेत्र में इस बार लोकसभा चुनाव का प्रमुख मसला क्या है? क्या आपके क्षेत्र में भी श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है? यदि हां तो मोबाइल वाणी के जरिए सबके सामने रखें अपनी राय.
एशियाई कंपनियां ज्यादा प्रदूषण वाले शहरों में रहने वाले अपने कर्मियों को लुभाने के लिए उन्हें तरह-तरह के लाभ देने के वादे कर रही हैं. ऐसे शहरों में काम करने के लिए कंपनियों को प्रतिभाशाली कर्मचारियों की कमी से जूझना पड़ रहा है. ऐसे में वह लोग जो पहले एशिया में बढ़ते आर्थिक अवसरों की ओर आकर्षित हुए थे, अब उन्हें स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं इन इलाकों में काम नहीं करने को मजबूर कर रही हैं. लिहाजा कंपनियों को भर्ती करने और अपने विशेषज्ञ कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में करीब 92 प्रतिशत लोग वायु प्रदूषण के स्तर से अवगत हैं और वह इसे स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा मानते हैं. यही वजह है कि मोटी तनख्वाह देने वाली कंपनियों को अपने कर्मचारियों को अतिरिक्त प्रोत्साहन देना पड़ रहा है. क्या आप भी महसूस करते हैं कि प्रदूषण की वजह से लोग महानगरों में काम करने से बचने लगे हैं? क्या आपको नहीं लगता कि प्रदूषण कम करने की दिशा में हमें भी मिलकर प्रयास करना चाहिए? इस विषय पर हमारे साथ साझा करें अपनी राय.
नौकरी करते हुए जो लोग ऊंची डिग्री हासिल करना चाहते हैं. उनके लिए अच्छी खबर है. केंद्र सरकार ने ऊंची डिग्री हासिल करने वाले अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाली प्रोत्साहन राशि को पांच गुना तक बढ़ाने को मंजूरी प्रदान कर दी है. गौरतलब है कि पीएचडी जैसी ऊंची डिग्री हासिल करने वाले कर्मचारियों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को 10000 से बढ़ा कर 30000 रुपये कर दिया गया है. कार्मिक मंत्रालय को कर्मचारियों के लिए ऊंची डिग्री हासिल करने पर प्रोत्साहन राशि बढ़ाने के लिए 20 साल पुराने नियमों में संशोधन करना पड़ा. पुराने नियमों के तहत अब तक नौकरी के दौरान उच्च डिग्री हासिल करने वाले कर्मचारियों को एकमुश्त 2000 रुपये से 10000 रुपये तक की प्रोत्साहन राशि दी जाती थी. अब न्यूनतम प्रोत्साहन राशि को 2000 रुपये से बढ़ा कर 10000 रुपये कर दिया गया है. क्या आपको लगता है कि इस प्रयास से केन्द्रीय कर्मचारी उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित होंगे? और क्या होगा इसका आम आदमी पर असर? हमारे साथ साझा करें अपने विचार.
मनरेगा योजना तहत जिले में वर्ष 2019-20 लिए 91 करोड़ 90 लाख 26 हजार रुपये का लेबर बजट पेश किया गया। यह जानकारी डीसी प्रदीप सभ्रवाल ने संबंधित विभागों के अधिकारियों की बैठक में दी।उन्होंने बताया कि मनरेगा योजना तहत 25,01,623 दिहाड़ियां पैदा करके 58,384 परिवारों को रोजगार मुहैया करवाया जाएगा। इस योजना तहत 2,956 तरह के विभिन्न प्रकार के काम करवाने का लक्ष्य रखा गया है। ग्रामीण छप्पड़ों का विकास, गलियों, नालियों, रास्तों को पक्का करने, पंचायती जमीनों में सुधार लाने, नहरी ड्रेनो की खलाई करने, ग्रमीण क्षेत्रों में पार्किग का निर्माण, आंगनबाड़ी केंद्रों के निर्माण, श्मशानघाटों की चारदीवारी, खेल ग्राउंड बनाने, इंटरलॉकिंग गलियों व रास्ते बनाने के कार्य करवाए जाएंगे। इसी योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में तीन लाख से अधिक पौधे लगाए जाएंगे।
दूसरी बार सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी सरकार को एक सर्वे से झटका झटका लग सकता है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2011-12 और 2017-18 के बीच ग्रामीण भारत में करीब 3.2 करोड़ कैजुअल मजदूरों ने अपनी नौकरी खो दी, जो पिछले सर्वेक्षण में 29.2 प्रतिशत थी। नौकरी गंवाने में लोगों में लगभग तीन करोड़ खेती करने वाले थे। NSSO द्वारा जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) 2017-18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 के बाद से खेत में काम करने वाले लोगों की संख्या में 40 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है, जिसे सरकार ने जारी करने से मना कर दिया। कैजुअल लेबर से मतलब ऐसे लोगों से है जिन्हें अस्थाई रूप से काम रखा जाता है।
बीए, बीएससी व बीकॉम कोर्सेज के विद्यार्थियों को कॉलेज से पास होते ही नौकरी मिल सके। इसके लिए उच्च विभाग की ओर से प्लान तैयार किया गया है। और सभी कॉलेजों को नोटिफिकेशन भेज कर श्रेयस योजना के अंतर्गत कॉलेजों को नाम दर्ज करवाने के लिए आदेश जारी किए थे। इसके बाद काॅलेज के विद्यार्थियों को विभिन्न उद्योंगो में ट्रेंनिग करने का मौका मिलेगा। योजना सरकार ने लांच की थी ताकि युवाओं में प्रशिक्षण और कौशल निखार किया जा सके। विद्यार्थियों को बैकिंग, फाइनेंशियल सर्विस, हेल्थ केयर, टूरिज्म, हॉस्पिटेलिटी, इलेक्ट्रॉनिक्स, मीडिया एंड इंटरटेनमेंट, टेलीकोम व अन्य क्षेत्रों में ट्रेनिंग मिलेगी। छह माह ट्रेनिंग, हर महीने मिलेंगे 7500 रुपए| विद्यार्थियों को छह माह की ट्रेनिंग दी जा जाएगी। इस दौरान छात्रों को हर माह वेतन के रूप में 7500 रुपए प्रतिमाह दिए जाएंगे। इसमें से 6 हजार रुपए इंडस्ट्री की ओर से देने का प्रावधान है साथ ही 1500 रुपए एनएपीएस की ओर से दिए जाएंगे। ताकि छात्रों को आर्थिक तंगी न आए।
भारत में बेरोजगारों की तादाद इस रफ्तार से बढ़ रही है कि इंजीनियरिंग, बी. टेक और मास्टर्स करके भी युवा सालों तक नौकरी के लिए भटक रहे हैं। बीते एक साल के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो बेरोजगारी दर में भारी इजाफा हुआ है। ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ (CMIE) के मुताबिक पिछले वर्ष फरवरी 2018 में जहां बेरोजगारी दर 5.9 फीसदी थी, वहीं 2019 में यह 7.2 फीसदी हो चुकी है। नौकरी के लिए पढ़े-लिखे युवा किस कदर भटक रहे हैं इसका अंदाजा महाराष्ट्र स्थित चिंचावाड़ में आयोजित एक रोजगार मेले से मिला। न्यूज़ ऐजेंसी रॉयटर्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में यहां पहुंचे बेरोजगारों का दर्द बयां किया गया है।
