साथियों, क्या आपने इस कोरोना काल के दौरान आपने शिक्षकों को तलाशने की कोशिश की? क्या आपने उनसे उनका हाल जाना? क्या आपके आसपास ऐसे लोग हैं जो पहले शिक्षक थे लेकिन कोविड काल में नौकरी जाने के बाद अब कोई दूसरा काम कर रहे हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत है? स्कूल बंद होने और शिक्षकों के ना रहने से आपके बच्चों की पढ़ाई पर कितना असर पड़ा है? अगर आप शिक्षक हैं, तो हमें बताएं कि कोविड काल के दौरान आपको किस तरह की परेशानियां आईं और क्या अब आपके हालात पहले जैसे हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

दोस्तों, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन एकोनॉमी की रिपोर्ट कहती है कि मई के दौरान बेरोजगारी दर 12 फीसदी दर्ज की गई है, जबकि अप्रैल के दौरान यह आंकड़ा 8 फीसदी का था. आंकड़ों को अगर देखें तो इस अवधि में करीब 1 करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. जाहिर है कि हालात सुधरने में काफी वक्त लगने वाला है. साथियों, हमें बताएं कि अगर आपको पहले की तरह काम नहीं मिल पा रहा है तो इसकी क्या वजह है? क्या कंपनी और कारखानों के संचालक ज्यादा नियुक्तियां नहीं करना चाहते? क्या वे पहले की अपेक्षा कम वेतन दे रहे हैं और क्या आपको कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है? क्या काम मांगने के लिए लिखित आवेदन देने के 15 दिन बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ? क्या मनरेगा अधिकारी बारिश या कोविड का बहाना करके काम देने या किए गए काम का भुगतान करने में आनाकानी कर रहे हैं? दोस्तों, अपनी बात हम तक पहुंचाएं ताकि हम उसे उन लोगों तक पहुंचा सकें जो आपकी समस्या का समाधान कर सकते हैं. अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

साथियों, कहने को तो देश में अनलॉक हो चुका है. सारी गतिविधयां फिर से पटरी पर आ रही हैं पर जो हाशिए पर अब भी है वो है गरीब और उसकी थाली. हालांकि सरकार ने राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 80 करोड़ लोगों तक भोजन पहुंचाने का प्रयास किया है लेकिन अब भी 20 करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग हैं जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. इन लोगों के साथ दिक्कतें ये हैं कि उनके राशन कार्ड आवेदन प्रक्रिया में उलझे हुए हैं. कई गांवों में राशन डीलरों की मनमानी और भ्रष्ट्राचार की बातें भी सामनें आईं हैं. और ये बातें हमें नहीं, वे लोग कह रहे हैं...जिनका राशन पाना हक है.. तो चलिए उन्ही से सुनते हैं उनकी बातें...

नमस्कार साथियों, देश में एक ओर चुनावी तैयारियां चल रही हैं तो वहीं दूसरी ओर हजारों मतदाता अपने—अपने हक के लिए धरना दिए बैठे हैं. किसान इस बात से परेशान ​हैं कि सरकार उन्हें कॉरपोरेट के हाथों की कठपुतली बनाने की तैयारी कर रही है और गरीब इस बात से दुखी हैं कि उनकी थाली में राशन नहीं पहुंच रहा. इन सबके बीच मध्यम वर्ग में जीने वाला आदमी अब बढ़ती हुई महंगाई से त्रस्त हो गया है। विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें। 

भारत में गरीबी रेखा से नीचे वाले घरों में रहने वाले बुजुर्गों के लिए सरकार ने इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना की शुरूआत की. हालांकि पेंशन योजना के तहत राशि इतनी कम है कि बैंक जाने-आने में ही उतने पैसे खर्च हो जाएं पर मसला ये नहीं है. बल्कि समस्या ये है कि इस योजना का लाभ पाने वालों की संख्या बहुत कम है.विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर। 

बीड़ी मजदूर और सुलगते सवाल कार्यक्रम में आज का विषय है, बीड़ी श्रमिक जॉब कार्ड! जब हम इस बारे में बात करने के लिए बीड़ी श्रमिकों के बीच गए तो पता चला कि अधिकांश को इस व्यवस्था के बारे में पता ही नहीं है. उन्हें नहीं पता है कि बीड़ी श्रमिक जॉब कार्ड भी बनता है. वे नहीं जानते कि इस कार्ड के जरिए उन्हें श्रमिकों के लिए बनाई गईं सरकारी योजनाओं का फायदा मिल सकता है. वे नहीं पता कि इस कार्ड के जरिए उनके बच्चों को स्कूल में स्कॉलरशिप मिल सकती है... ये सारी बातें आप खुद ही सुनिए बीड़ी श्रमिकों जुबानी..

दोस्तों, हमारी पिछली कड़ी सुननें के बाद बहुत से लोगों ने उज्जवला योजना के तहत पंजीयन करवाया है साथ ही बहुत से ऐसे लोग भी सामने आए हैं जिन्हें योजना का लाभ मिलने में दिक्कतें आ रही हैं. आखिर इन सब परेशानियों का हल क्या है ? जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें

कोरोना संकट के बीच देश में करोड़ों गरीब बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें स्कूल बंद होने और सरकारी लेटलतीफी के कारण मिड-डे मील मिलना मुश्किल हो गया है। मोबाइल वाणी के अगस्त -सितंबर 2020 के बीच हुए सर्वे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। बिहार , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखण्ड में लॉकडाउन के कारण करीब 63 % बच्चों को मिड डे मील के बदले,सूखा राशन या कोई मौद्रिक सहायता नहीं मिल पाया है।