हंसता खेलता बचपन.. जो कभी आंगन तो कभी घर की मुंडेर पर झूलता था... कभी मां के पल्लू से लिपटता तो कभी पिता की उंगली पकड़कर खेत की मेड़ों पर दौड़ता था... आज वो गहरी नींद में है... मौत की नींद में. उसके जाने के बाद से आगंन, घर की मुंडेर, खेत की मेड़ सब सूने हैं.. कोई नहीं जो मां के आंचल से झूले, पिता की उंगली थामे.. कुछ है तो बस बेबसी.. और आंखों की पोरों से बहते आंसू.. दोस्तों यह दर्द है बिहार के उन परिवारों का जिन्होंने हाल ही में चमकी बुखार या दिमागी बुखार कहे जाने वाले एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कारण अपने मासूमों को हमेशा के लिए खो दिया. इन परिवारों का दर्द शायद ही कोई समझ सके और इन्होंने जो खोया है उसकी पूर्ति भी शायद अब कोई नहीं कर सकता.. यदि हम कर सकते हैं तो बस इतना कि अब किसी और परिवार पर यह विपत्ति ना आए. इसी ध्येय को साथ लेकर मोबाइलवाणी शुरू कर रहा है जनशक्ति अभियान. तो आप भी इस मुहिम को हिस्सा बनें और अपनी बात रिकॉर्ड करें फोन में नम्बर 3 दबाकर
