आदिवासी बाहुल्य पहाड़ों की धरती झारखंड में महिला किसान जैविक खेती कर लाभ कमा रही हैं। जहां पहले ये महिलाएं अपने पिता या पति की कृषि कार्यों में सहायता करती थी, वहीं अब वे घर की कमाऊ सदस्य हैं, अपने परिवार की मुखिया हैं, गांव के विकास की धुरी हैं। इन महिलाओं की जैविक खेती के बारे में जानकारी हैरान करने वाली है। नीम, गोबर, गौमूत्र आदि के इस्तेमाल से खाद भी महिलाएं खुद ही तैयार करती हैं, जिससे कि खेती की लागत काफी कम हुई है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिला किसान सशक्तिकरण योजना में प्रशिक्षण हासिल कर ग्रामीण महिलाएं अब गांव के दूसरे किसानों को भी प्रशिक्षित कर रही हैं। पश्चिमी सिंहभूमि जिले के खूंटपानी ब्लॉक की एक महिला किसान के मुताबिक उन्होंने पिछले साल 15 हजार रुपए में करेले की खेती करके 70-80 हजार रुपए कमाए। गौरतलब है कि ग्रामीण महिलाएं खेती से कमाई इसलिए कर पा रही हैं, क्योंकि वो बाजार से न तो खाद खरीदती हैं और न ही बीज। यूरिया-डीएपी की जगह गौमूत्र से जीवामृत बनाया जाता है, तो फसल में कीट और रोग लगने पर नीम-धतूरा जैसे घरेलू चीजों से नीमास्त्रा और ब्रह्मास्त्र, जो कि फसलों को कीटों से होने वाले नुकसान से बचाने में सफल साबित हो रहा है। तो श्रोताओ, आपको क्या लगता है बड़े स्तर पर जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए। अपने विचार रकॉर्ड करवाएं।