कितनी अजीब बात है, केन्द्र और राज्य सरकारें जिस किसान के बल पर चुनाव जीत और हार रही हैं उसी किसान के परिवार की वास्तिविक स्थिति से संबंधित कोई भी नया डाटा उनके पास नहीं है. यानि देश को यह पता ही नहीं है कि वर्तमान में किसान परिवारों की स्थिति कैसी है? इस बात का खुलासा राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय ने किया है. विभागीय अधिकारियों ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया है कि साल 2013 में आखिरी बार किसान परिवारों की स्थिति पर सर्वे हुआ था, तब से अब तक यह काम दोबारा नहीं हुआ. यानि नई सरकार के आने के बाद किसानों के पारिवारिक—आर्थिक हालात सुधरे या खराब हुए हैं इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है. कृषि मंत्रालय की मानें तो वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने संबंधी अंतर-मंत्रालयी समिति की उपलब्ध रिपोर्टो के अनुसार समिति ने कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन सर्वेक्षण की 70वीं पारी के इकाई स्तरीय आंकड़ों से प्राप्त कृषि परिवारों की आय के अनुमानों को आधार माना है. यानि सरकार किसानों की आय को दोगुना करने का जो दावा कर रही है वह उनकी साल 2013 की स्थिति के आधार पर कर रही है न कि वर्तमान स्थिति के अनुसार. ऐसा ही एक पेंच किसान आत्महत्या के मामलों में भी है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की बेबसाइट पर 2015 तक की किसान आत्महत्याओं संबंधी जानकारी तो है लेकिन साल 2016 से अब तक के तथ्य गायब हैं. क्या आपको नहीं लगता कि देश के किसानों से संबंधित वो सच जो दुनिया के सामने आने चाहिए थे, उन्हें केन्द्र और राज्य सरकारें योजनाओं के नीचे दबाने की कोशिश कर रहीं हैं? चुनाव से पहले सामने आ रही इस प्रकार की रिपोर्ट से क्या वर्तमान सरकार पर लोग दोबारा विश्वास जता पाएंगे? हमारे साथ साझा करें अपने विचार?