अन्ना आंदोलन के बाद साल 2014 लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार अहम मुद्दा था, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में रोजगार सबसे अहम मुद्दा होने वाला है. इसका दावा चुनावी आंकड़ों पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म्स की रिपोर्ट में किया गया है. इस रिपोर्ट में यूपी में भी इस मुद्दे को सबसे अहम मुद्दा बताया गया है. लखनऊ में एडीआर की रिपोर्ट जारी की गई. एडीआर के मुताबिक इस बार रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है. हेल्थ दूसरा बड़ा मुद्दा होगा. इसी क्रम में लाॅ एंड आर्डर तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा होने वाला है. सर्वे में भ्रष्टाचार अहम मुद्दों की लिस्ट में सबसे आखिरी स्थान पर है. यानी जनता भ्रष्टाचार से ज्यादा रोजगार को लेकर फिक्रमंद है. सर्वे में ये भी सामने आया कि अहम मुद्दों को लेकर जनता मौजूदा सरकार के परफाॅर्मेंस से संतुष्ट नहीं है. इसके अलावा एडीआर की रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि राजनीतिक पार्टियों में आपराधिक व आर्थिक रूप से मजबूत लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है. सभी दलों ने ऐसे लोगों को अपनाया है. उत्तर प्रदेश के 34 एमएलए की आय में 300 गुना की वृद्धि दर्ज की गई. कई विधायकों की औसत संपति 2007 में एक करोड़ रुपये थी. वह 2017 में बढ़कर सात करोड़ रुपये हो गई है. साथ ही फिर से चुनाव लड़ने वालों की आय में करीब 60 गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. क्या वाकई रोजगार का मसला इस बार राज्य और केन्द्र सरकारों के लिए चुनाव हारने की वजह बन सकता है? आपकी नजर में नेताओं की संपत्ति में होता इजाफा और देश में कम होते रोजगार के अवसरों में क्या ताल्लुक हो सकता है? क्या आप या आपके आसपास कोई बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है? यदि हां तो उनके विचार हम तक पहुंचाएं.