सऊदी अरब, वह जगह जो भारतीय कामगारों के लिए सबसे बड़ी पनाहगार मानी जाती रही है, वह अब श्रमिकों को डराने लगी हैं. विदेश मंत्रालय के मुताबिक कुवैत में 483, क़तर में 212, बहरीन में 121 और ओमान की जेलों में 59 भारतीय कैदी मौजूद हैं. इन सभी देशों में कुल 4,705 भारतीय कैदी मौजूद हैं. यह तो सरकारी आकंडे हैं, जबकि हजारों ऐसे भी श्रमिक हैं जो लापता हैं. भारत यात्रा के दौरान सऊदी अरब के शहजादे मोहम्मद बिन सलमान ने इनमें से 850 कैदियों को रिहा करने का एलान किया है, लेकिन हजारों लोगों का क्या जो अब भी जेल में ही रहने वाले हैं. सऊदी अरब के बाद युनाइटेड अरब अमीरात दूसरे नंबर पर आता है जहां की जेलों में 1,606 भारतीय कैदी हैं. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से अधिकांश वीजा नियमों में उलझे हुए हैं और सालों से अपनी पेशी का इंतजार कर रहे हैं. गौरतलब है कि सरकार ने 1 अगस्त 2018 से 31 दिसंबर 2018 तक के लिए एक एमनेस्टी स्कीम भी चलाई थी, जिसके तहत वीजा रेग्युलराइज करने का काम किया गया था. इस दौरान कुल 6,823 भारतीयों ने भारतीय मिशन से मदद की गुहार लगाई थी, जिनमें से 1,949 सिर्फ तेलंगाना राज्य के थे जबकि 1,064 आन्ध्र प्रदेश के रहने वाले थे. इस दौरान 4,034 लोगों को इमरजेंसी सर्टिफिकेट के जरिए बिना किसी खर्चे के मुफ्त भारत वापस लाया गया. 2,802 ऐसे भी लोग थे जिन्हें शॉर्ट टर्म वीजा दिलाने में मदद की गई. इस दौरान मिडिल ईस्ट देशों में फंसे 230 भारतीयों को फ्री विमान सेवा के जरिए देश वापस लाया गया. लेकिन अब भी हजारों लोगों को मदद का इंतजार है. क्या आपके आसपास ऐसा कोई श्रमिक परिवार है, जिसका कोई अपना दूसरे देश गया हो और वहां की कानूनी पेचेदगियों में फंस गया है? विदेश जाने वाले कर्मचारी और मजदूर किस तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं और सरकार को उनके लिए क्या कदम उठाने चाहिए? इस संबंध पर हमारे साथ साझा करें अपने विचार.